फाइलेरिया की दवा खाइए, एनीमिया भी भगाइए



  • इस बीमारी से बचाव के लिए एलबिंडाजोल और डीईसी नाम की दवा खिलाई जा रही
  • एलबिंडाजोल खाने से कीड़े मर जाते हैं और पाचन तंत्र सही काम करने लगता है जिससे खत्म हो जाता है एनीमिया   
  • सात दिसंबर तक चलेगा प्रदेश के 19 जनपदों में ये एमडीए अभियान

लखनऊ - प्रदेश में एनीमिया से ग्रसित महिलाओं के लिए अलर्ट होने वाली खबर है। इस समय फाइलेरिया से बचाव के लिए एलबिंडाजोल और डीईसी नाम की दवा सूबे के 19 जनपदों में खिलाई जा रही है। एलबिंडाजोल पेट के कीड़े मारने के काम में भी आती है जो कुपोषित करने में सहायक होते हैं। जाहिर सी बात है कि आप ये दवाएं खा लेंगे तो फाइलेरिया से भी बचे रहेंगे और एनीमिया ग्रसित होने से भी। फाइलेरिया का ये अभियान सात दिसंबर तक चलेगा।

क्वीन मैरी अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एसपी जैसवार के मुताबिक प्रदेश में एनीमिया से ग्रसित महिलाओं की कमी नहीं है। खून की कमी मूलतः पाचन तंत्र के सही काम न करने या पोषक खाना न खाने के कारण होती है। पाचन तंत्र के गड़बड़ होने का एक मुख्य कारण पेट में कीड़ों का होना भी है। कीड़े मारने की दवा एलबिंडाजोल खाने से कीड़े मर जाते हैं और पाचन तंत्र सही काम करने लगता है।   

उन्होंने बताया कि पेट में कीड़े होने पर पाचन तंत्र यकीकन प्रभावित होता है। कीड़ा हाजमा नहीं होने देता है और पोषण को आधा कर देता है। लिहाजा फाइलेरिया की दवा खाने में कोई हर्ज नहीं है। इससे आप फाइलेरिया से भी बचेंगे और एनीमिया भी नहीं होगा।  

केजीएमयू के बाल रोग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ शालिनी त्रिपाठी के मुताबिक यूं भी बच्चों को साल में एक-दो बार एलबिंडाजोल खिलाया जाता है। लिहाजा फाइलेरिया की दवा खाने में कोई हर्ज नहीं है। इससे जहां बच्चे फाइलेरिया से बचेंगे। साथ ही उनके पेट के कीड़े भी मर जाएंगे और उनका पाचनतंत्र सही हो जाएगा। बस दो साल से कम उम्र के बच्चों को ये दवा न खिलाई जाए।

फाइलेरिया नियंत्रण अधिकारी डॉ.सुदेश कुमार ने बताया कि फाइलेरिया का मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) राउंड 22 नवंबर से चल रहा है जो 7 दिसंबर तक चलेगा। इसमें आशा-एएनएम लोगों को अपने सामने दवा खिलाएंगी। उन्होंने बताया कि साल में एक बार ये दवाएं पांच साल तक खा लेने पर उस व्यक्ति को फाइलेरिया होने की आशंका काफी कम हो जाती है। डॉ. सुदेश के मुताबिक दो साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवतियों व गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति को ये दवाएं नहीं खानी हैं।

प्रदेश में जिन 19 जनपदों में एमडीए राउंड चलाया जा रहा है। उनमें लखनऊ, बरेली, पीलीभीत, शाहजहाँपुर, अयोध्या, बाराबंकी, अमेठी, अंबेडकरनगर, आजमगढ़, मऊ, बलिया, सोनभद्र, जौनपुर, भदोही, जालोन, हमीरपुर, चित्रकूट, बांदा और महोबा शामिल हैं।  

फाइलेरिया के लक्षण : आमतौर पर फाइलेरिया के कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते, लेकिन बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्या दिखाई देती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाथी पांव और हाइड्रोसिल (अंडकोषों की सूजन) भी फाइलेरिया के लक्षण हैं। चूंकि इस बीमारी में हाथ और पैर हाथी के पांव जितने सूज जाते हैं इसलिए इस बीमारी को हाथीपांव कहा जाता है। वैसे तो फाइलेरिया का संक्रमण बचपन में ही आ जाता है, लेकिन कई सालों तक इसके लक्षण नजर नहीं आते। फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को विकलांग बना देती है बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।