‘‘छुआछूत की बीमारी नहीं हैं एड्स और फाइलेरिया’’



  • सीएचओ, एएनएम और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को दोनों लाइलाज बीमारियों के बारे में किया गया जागरूक

गोरखपुर - एड्स और फाइलेरिया दोनों ही लाइलाज बीमारियां हैं और दोनों में बचाव सबसे कारगर है । यह किसी को छूने, साथ रहने और एक दूसरे के कपड़े का इस्तेमाल करने से नहीं होती हैं । यह बातें पिपराईच सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डॉ मणि शेखर ने कहीं। वह राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी द्वारा आयोजित एड्स संबंधित उन्मुखीकरण कार्यशाला को सम्बोधित कर रहे थे। कार्यशाला में फाइलेरिया रोगी नेटवर्क के द्वारा लाइलाज बीमारी फाइलेरिया के बारे में भी सीएचओ, एएनएम और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को जानकारी दी गयी ।

सीएचसी अधीक्षक ने अग्रिम पंक्ति कार्यकर्ताओं से अपील किया कि आपसी समन्वय स्थापित कर लोगों को इस बीमारी से बचाएं । जनजागरूकता के जरिये इनसे बचाव संभव है । स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी संजय सिंह ने कहा कि गांव में होने वाली बैठकों में इन बीमारियों के बारे में लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए ।

एचआईवी परामर्शदाता मनीषा राव ने प्रतिभागियों को बताया कि इस बीमारी का संक्रमण असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित का खून चढ़ाने, एक ही सीरिंज से नशा करने और एचआईवी संक्रमित मां से बच्चे में हो सकता है । यह बीमारी रोगी को छूने, गले लगाने, रोगी के कपड़े पहनने, रोगी की वस्तुएं इस्तेमाल करने और मच्छर काटने से नहीं होती है । जब एचआईवी संक्रमण के कारण मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त होने लगती है तो उसे एड्स रोगी कहते हैं । सरकार द्वारा एड्स रोगियों को इलाज की सुविधा दी जा रही है, जिससे वह लम्बा जीवन जी सकते हैं । मां से बच्चे में एचआईवी के संक्रमण को रोकने के लिए गर्भावस्था में ही इसकी जांच की जाती है और अगर मां में एचआईवी की पुष्टि होती है तो बचाव के उपाय किये जाते हैं ।

कार्यक्रम में पहुंची मटुरा फाइलेरिया समूह की सदस्य मटुरा देवी ने बताया कि यह बीमारी मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होती है । संक्रमण के पांच से पंद्रह वर्ष बाद लक्षण नजर आते हैं । हाथ, पैर और स्तन में सूजन और पुरूषों के अंडकोष में सूजन जैसे लक्षण इस बीमारी में प्रकट होते हैं। इसे हाथीपांव के नाम से भी जानते हैं । एक बार हाथीपांव हो गया तो ठीक नहीं होता है। सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम के दौरान साल में एक बार लगातार पांच साल तक फाइलेरिया से बचाव की दवा खा कर इससे बचा जा सकता है । हाथीपांव के मरीजों के लिए एमएमडीपी किट दी जा रही है । इस किट से प्रभावित अंग का प्रबन्धन और नियमित व्यायाम कर बीमारी को नियंत्रित रखा जा सकता है । यह छुआछूत की बीमारी नहीं है ।

कार्यक्रम के दौरान 57 आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, 65 सीएचओ और 87 एएनएम का उन्मुखीकरण किया गया । एचआईवी काउंसलर ने बताया कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को भी एक दिन पूर्व बुधवार को जागरूक किया गया था । इस मौके पर सीडीपीओ पारुल दीक्षित, सीफार संस्था की प्रतिनिधि रेखा शर्मा, रोमी सरोज, स्वास्थ्य विभाग से रमेश सिंह और साधना प्रमुख तौर पर मौजूद रहे।

मिली उपयोगी जानकारी : उन्मुखीकरण कार्यशाला की प्रतिभागी सीएचओ ऋषु यादव और एएनएम सीमा गुप्ता ने बताया कि पहली बार एचआईवी के साथ फाइलेरिया के बारे में भी उपयोगी जानकारियां मिली हैं। इन संदेशों को समुदाय तक पहुंचाने का पूरा प्रयास होगा । इलाज से अधिक बचाव पर जोर देना है ।

मरीजों को दी जा रही है सुविधा : पिपराईच सीएचसी के अधीक्षक डॉ मणि शेखर ने बताया कि ब्लॉक में एड्स के 55 और फाइलेरिया के 485 मरीज हैं । मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे, जिला सर्विलांस अधिकारी डॉ नंदलाल कुशवाहा और एड्स नियंत्रण अधिकारी डॉ गणेश यादव के दिशा निर्देशन में सभी मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाओं से जोड़ा गया है । जनजागरूकता के जरिये बीमारी का प्रसार रोकने के प्रयास किये जा रहे हैं । कार्यशाला के दौरान नाटक के माध्यम से भी उपयोगी संदेश दिया गया ।