समय से कराएँ जाँच ताकि गर्भवती की सेहत पर न आए आंच



  • राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस (11 अप्रैल) पर विशेष

गर्भवती की प्रसव पूर्व चार बार जरूरी जांच कराकर जच्चा-बच्चा को स्वस्थ और खुशहाल बनाया जा सकता है। इससे मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के साथ ही हर गर्भवती को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएँ भी मुहैया करायी जा सकती हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए सुरक्षित मातृत्व अभियान दिवस के तहत सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों पर गर्भवती महिला की जांच के लिए महीने में चार बार विशेष प्रावधान भी किये जाते हैं, जहाँ पर गर्भवती की प्रशिक्षित एमबीबीएस डाक्टर द्वारा मुफ्त जांच की जाती है। गर्भवती की बेहतर देखभाल और संस्थागत प्रसव के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए ही हर साल 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जाता है।

गर्भवती के सेहत की समय पर जांच कराने से यह फायदा होता है कि यदि किसी तरह की जटिलता है तो समय से प्रबन्धन किया जा सकता है और जच्चा-बच्चा को सुरक्षित बनाया जा सकता है। जटिलताओं के लिहाज से गर्भवती को शुरूआती दौर से ही विशेष देखभाल की जरूरत होती है, जिसके लिए उनके करीब रहकर हरसम्भव मदद के लिए आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और एएनएम (ट्रिपल ए) की व्यवस्था है। इसलिए घर-परिवार और खासकर पति का दायित्व बनता है कि जैसे ही गर्भावस्था सुनिश्चित हो तो पत्नी को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाकर चिकित्सक से जरूरी परामर्श अवश्य प्राप्त करें। प्रदेश में संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए ही वर्ष 2005 में जननी सुरक्षा योजना की शुरुआत की गयी, जिसके तहत सरकारी अस्पतालों में प्रसव कराने वाली ग्रामीण महिलाओं को 1400 रूपये और शहरी क्षेत्र की महिलाओं को 1000 रूपये दिए जाते हैं। संस्थागत प्रसव का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यदि प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा को कोई बड़ी दिक्कत आती है तो उसे आसानी से संभाला जा सकता है। प्रसव के तुरंत बाद नवजात को माँ का अमृत समान पहला पीला गाढ़ा दूध पिलाने में मदद मिलती है। इसके साथ ही 48 घंटे तक अस्पताल में रोककर पूरी निगरानी के साथ ही जरूरी टीके की सुविधा भी दी जाती है। माँ और परिवार वालों की काउंसिलिंग भी की जाती है कि बच्चे को छह माह तक सिर्फ और सिर्फ माँ का दूध पिलाना है ताकि बच्चा अपने स्वास्थ्य में नियमित प्रगति करता रहे तथा किसी इन्फेक्शन की गिरफ्त में न आने पाए। छह माह बाद ही माँ के दूध के साथ ही ऊपरी आहार भी देना शुरू करें ।  

सुरक्षित प्रसव के लिए घर से अस्पताल ले जाने व अस्पताल से घर लाने के लिए मुफ्त एम्बुलेंस सेवा भी उपलब्ध है। एम्बुलेंस में प्राथमिक उपचार की सेवाओं के साथ ही इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन (ईएमटी) की तैनाती होती है ताकि किसी आपात स्थिति को आसानी से संभाला जा सके। कई बार आपात स्थिति में ईएमटी की सूझबूझ से एम्बुलेंस में ही सुरक्षित प्रसव कराकर मां और बच्चे की जान बचाई जाती है।

जटिल गर्भावस्था (एचआरपी) के तहत वह महिलाएं आती हैं जिनका दो या उससे अधिक बार बच्चा गिर गया हो या एबार्शन हुआ हो या बच्चे की पेट में ही मृत्यु हो गयी हो या पैदा होते ही मृत्यु हो गयी हो। किसी तरह की विकृति वाला बच्चा पैदा हुआ हो, प्रसव के दौरान या बाद में अत्यधिक रक्तस्राव हुआ हो या तो पहला प्रसव बड़े आपरेशन से हुआ हो तो ऐसी महिलाएं जटिलता वाली श्रेणी में रखी जाती हैं। इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर (उच्च रक्तचाप) या मधुमेह (डायबीटीज), दिल या गुर्दे की बीमारी, टीबी या मिर्गी की बीमारी, पीलिया, लीवर की बीमारी या हाईपो थायराइड से ग्रसित महिलाएं भी एचआरपी के तहत आती हैं। इसके अलावा बहुत कम या बहुत अधिक उम्र में गर्भधारण, बहुत मोटापा की स्थिति या बहुत दुबले-पतले होने की स्थिति वाली गर्भावस्था भी जटिलता की श्रेणी में आती है। गंभीर एनीमिया (सात ग्राम से कम हीमोग्लोबिन) से ग्रसित महिलाओं का भी गर्भावस्था के दौरान खास ख्याल रखा जाता है, उनके खानपान में हरी साग-सब्जी के साथ ही पौष्टिक आहार को शामिल कराया जाता है। आयरन और कैल्शियम की गोलियां दी जाती हैं। ब्लड प्रेशर 140/90 से अधिक होना, गर्भ में आड़ा/तिरछा या उल्टा बच्चा होना, चौथे महीने के बाद खून जाना, गर्भावस्था में डायबिटीज का पता चलना और एचआईवी या किसी अन्य बीमारी से ग्रसित होने की स्थिति में भी आशा कार्यकर्ता से लेकर चिकित्सक तक गर्भवती पर खास नजर रखते हैं ताकि गर्भवती को किसी तरह की आपात स्थिति का सामना न करना पड़े।

चिकित्सा विशेषज्ञों का भी यही मानना है कि मां-बच्चे को सुरक्षित बनाने का पहला कदम यही होना चाहिए कि गर्भावस्था का पता चलते ही नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर पंजीकरण कराएँ तथा तीसरे-चौथे महीने में प्रशिक्षित चिकित्सक से जांच अवश्य करानी चाहिए ताकि किसी भी जटिलता का पता चलते ही उसका प्रबन्धन किया जा सके। प्रसव का समय नजदीक आने पर सुरक्षित प्रसव के लिए पहले से ही निकटतम अस्पताल का चयन परिवार वालों के साथ कर लेना चाहिए और मातृ-शिशु सुरक्षा कार्ड, जरूरी कपड़े और एम्बुलेंस का नम्बर याद रखना चाहिए। इस दौरान समय का प्रबन्धन भी बहुत जरूरी होता है क्योंकि एम्बुलेंस को सूचित करने में देरी और अस्पताल पहुँचने में विलंब से जोखिम बढ़ सकता है।

स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ कही जाने वाली आशा कार्यकर्ता देखा जाए तो अब ‘सेहत की आशा’ के रूप में उभरकर सामने आई हैं। गर्भ का पता चलते ही महिला का स्वास्थ्य केंद्र पर शीघ्र पंजीकरण कराने के साथ ही गर्भावस्था के दौरान बरती जाने वाली जरूरी सावधानियों के बारे में जागरूक करती हैं। प्रसव पूर्व जांच कराने में मदद करती हैं। संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित करतीं हैं और प्रसव के लिए साथ में अस्पताल तक महिला का साथ निभाती हैं। इसी तरह एएनएम भी जरूरी टीका की सुविधा प्रदान करने के साथ ही आयरन-कैल्शियम की गोलियों के फायदे बताती हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गर्भवती के सही पोषण का ख्याल रखती हैं। पहला प्रसव होने की स्थिति में महिला को दूसरे बच्चे की योजना तीन साल बाद ही बनाने की सलाह देती हैं और बताती हैं कि इससे पहले महिला का शरीर पूरी तरह से गर्भधारण की स्थिति में नहीं बन पाता है। स्वस्थ महिला एवं स्वस्थ बच्चा हमारे स्वस्थ देश के लिए स्वस्थ नींव का काम करते हैं।

 

(लेखक पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल- इंडिया के एक्जेक्युटिव डायरेक्टर हैं)