मिथक और भ्रांतियों को दूर कर कराया जा रहा है नियमित टीकाकरण



  • जनवरी से मार्च तक उदासीन परिवारों के 446 बच्चों का हुआ टीकाकरण
  • बुखार के भय को दूर करने और टीकाकरण की पूरी जानकारी मिलने पर हुए तैयार

गोरखपुर - बांसगांव के संग्रामपुर के रहने वाले चुलबुल प्रसाद के बच्चों अंशिका (1.8) और दिव्या (दस माह) को बचपन में पेंटा वन, पीसीवी वन, एफआईपीवी वन और रोटा वन का टीका लगने के बाद बुखार आ गया। इससे डर कर चुलबुल ने बच्चों का टीकाकरण ही बंद करवा दिया । जानकारी मिलने पर सुपरवाइजर नीलेश,  वार्ड के सभासद मिथिलेश और यूनिसेफ के बीएमसी प्रदीप कुमार पाठक के साथ उनके घर गये। उनके साथ आशा कार्यकर्ता संतोषी और एएनएम अनिता भी मौके पर गयीं । सभी लोगों ने कई बार चुलबुल को टीके के फायदे बताए लेकिन वह बच्चों के टीकाकरण के लिए तैयार न हुए। जिले से यूनिसेफ के डीएमसी डॉ हसन फहीम की अगुवाई में उनके मोहल्ले में सामुदायिक मीटिंग रखी गयी जहां बुला कर चुलबुल को बताया गया कि टीका उनके बच्चों को खसरा, निमोनिया और काली खांसी जैसी गंभीर बीमारियों से बचाएगा। उन्हें यह भी बताया गया कि कुछ टीकों के लगने के बाद बुखार आता है, लेकिन यह स्वाभाविक है और इसके लिए दवा दी जाती है। बैठक में कुछ अन्य बच्चों का उदाहरण भी दिया गया। चुलबुल प्रसाद टीकाकरण के लिए तैयार हो गये और अब उनके बच्चों का नियमित टीकाकरण शुरू हो गया है।

स्वास्थ्य विभाग जिले में ऐसे उदासीन परिवारों को चिन्हित कर टीकाकरण करवा रहा है जो किसी भय के कारण या जागरूकता के अभाव में अपने बच्चों का नियमित टीकाकरण नहीं करवा रहे हैं। इस तरह जनवरी से मार्च तक उदासीन परिवारों के 446 बच्चों का नियमित टीकाकरण कराया जा सका है । लोगों के मन से टीकाकरण के बाद आने वाले बुखार के भय को दूर करने और टीकाकरण की पूरी जानकारी देने से उन्हें तैयार करने में काफी मदद मिल रही है।

चरगांवा ब्लॉक के अमवां गांव के रहने वाले मीना और उदयभान भी इसी डर के कारण अपनी बेटी छाया का टीकाकरण नहीं करवा रहे थे। दोनों लोग बड़ी बेटी माया (2.4) का टीकाकरण एएनएम प्रेमलता से करवाते रहे । 27 अगस्त 2023 को जन्मी बेटी छाया के पहले डोज का टीकाकरण भी कराया लेकिन जब उसे बुखार आया तो अभिभावक डर गये । आशा कार्यकर्ता सूर्यवंती ने बच्ची को अगला टीका लगवाने के लिेए बुलाया तो वह सत्र स्थल पर नहीं गये। इसके बाद एएनएम प्रेमलता और बीएमसी चिरंजीव ने अभिभावकों का समझाया कि कुछ टीकों के लगने के बाद बुखार आता है, लेकिन टीकाकरण बंद कर देने से उनके बच्चे गंभीर और जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ जाएंगे। अभिभावक मीना और उदयभान का कहना है कि बच्ची को टीका लगने के बाद बुखार आने से उदयभान काम पर नहीं जा पाते हैं, इसीलिए टीकाकरण के प्रति उदासीन हो गये । विभाग से उन्हें टीके का महत्व बताया गया और लगातार प्रेरित करने के बाद वह बच्चों का टीकाकरण करवाने लगे हैं।

सरकारी अस्पताल के टीके में हैं पांच खूबियां : चरगांवा ब्लॉक के स्वास्थ्य़ शिक्षा एवं सूचना अधिकारी मनोज कुमार बताते हैं कि सरकारी अस्पताल का टीका अपनी पांच खूबियों के कारण सबसे अधिक सुरक्षित और असरदार होता है। यह कंपनी से अस्पताल तक और वहां से समुदाय के बीच सुरक्षित कोल्ड चेन में जाता है और 24 घंटे इस चेन की मॉनीटरिंग की जाती है। टीके पर लगा वैक्सीन वॉयल मॉनीटर (वीवीएम) कोल्ड चेन ब्रेक होते ही रंग बदल देता है और फिर ऐसे टीके का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। जहां निजी अस्पतालों में टीके के लिए महंगे पैसे देने पड़ते हैं वहीं सरकारी अस्पताल के टीके बिना पैसों के लगाए जाते हैं। इनके लिए एडी सीरिंज का इस्तेमाल होता है जो सिर्फ एक बार इस्तेमाल किये जा सकते हैं। यह सेवा प्रशिक्षित स्टॉफ के हाथों दी जा रही है।

बीमारियों से होता है बचाव : बच्चे के जन्म से लेकर पांच साल की उम्र तक सात बार नियमित टीकाकरण जरूरी है। नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल टीके पोलियो, बचपन का क्षय रोग, पीलिया, रोटावायरस दस्त, निमोनिया, गलघोंटू, काली खांसी, टिटनेस, हिब संक्रमण, दिमागी बुखार, खसरा और रुवेला से बचाव करते हैं । बच्चों को खांसी या जुकाम होने की स्थिति में भी टीकाकरण कराया जा सकता है । कुछ टीकों के लगने के बाद बुखार के अलावा सूजन भी हो जाता है, लेकिन यह एक से दो दिन में स्वतः ठीक हो जाता है।