कायस्थ युवकों को उनकी खोई ताकत दिलाना ही संघ का मकसद : दिनेश खरे



लखनऊ - पिछले लगभग छह महीने से अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ संघ की गतिविधियां तेजी से बढ़ीं हैं। संघ में समाज से जुड़ी ऐसी बड़ी शख्सियतों को जोड़ा जा रहा है, जो संघ को गति दे सकें और साथ ही एक दिशा देने का भी निर्वहन कर सकें ।  कायस्थ समाज को बड़ी जनंसख्या में होने के बावजूद राजनीतिक रूप से वह थाती नहीं मिल पा रही जिसका वह हकदार हैं। इन्हीं सब मुद्दों को लेकर संघ के न्यास अध्यक्ष दिनेश खरे से लंबी बातचीत हुई। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश :

प्रश्न : पहले से इतने संगठन हैं फिर एक नया संगठन खड़ा करने का विचार कैसे आया ?
उत्तर : हम भी नहीं चाहते थे कि कोई नया संगठन खड़ा करें क्योंकि मेरे मन में राजनीति का भाव नहीं था, बस यह था कि कुछ ऐसा कर सकूं कि समाज के लोगों का फायदा हो । इसलिए पहले पुराने संगठनों की ताकत पहचानने की कोशिश की तो देखा उनमें केवल राजनीतिक भूख है,  समाज के प्रति कुछ कर गुजरने का जज्बा नहीं है। सब आपस में गुटबाजी का शिकार हो रहे हैं। उनके अंदर एक-दूसरे को बढ़ाने की ललक नहीं है। इसीलिए अपने करीबी व परोपकार में जुटे लोगों से मंत्रणा के बाद इस संगठन की नींव पड़ी।

प्रश्न : संगठन से आम कायस्थ यानि वह जो किसी भागमभाग में नहीं है, बेरोजगार है, परेशान हैं उनकी कैसे मदद करेंगे ?
उत्तर : आपने अच्छा सवाल पूछा, यही तो संघ की चिंता है। कायस्थ समाज सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी कौम है। शायद ही कोई ऐसा घर मिलेगा, जहां आपको कोई अनपढ़ मिले। यह हमारे समाज की ताकत है और कमजोरी भी, क्योंकि इतना पढ़ने के बाद वह कोई छोटा काम नहीं करना चाहता। वह सिर्फ नौकरी की तलाश में रहता हैै। इसीलिए हम समाज के ऐसे लोगों को संघ से जोड़ रहे हैं जो विभिन्न विधाओं केे हैं, ताकि कायस्थ युवक उनसे प्रेरणा ले सकें और इनकी मदद से समाज के विभिन्न वर्गों में अपनी योग्यता के अनुसार आगे बढ़ कर अपनी मंजिल पा सकें। सिर्फ नौकरी के भरोसे अब नहीं रहा जा सकता ।

प्रश्न : बीते दिनों आपने कई बड़ी शख्सियतों को संघ से जोड़ा है, क्या आप भी ग्लैमर के पीछे भाग रहे हैं ?
उत्तर : नहीं, ऐसा नहीं है। हमें ग्लैमर की क्या जरूरत । कौन सा हमें फिल्मों में भाग्य आजमाना है। हम तो चाहते हैं कि कायस्थ समाज आगे बढ़े, क्योंकि अगर सिर्फ नेताओं को जोड़ेंगे तो राजनीति का शिकार हो जायेंगे । इसलिए अपने समाज में ऐसी शख्सियतों को तलाश कर रहे हैं जो कायस्थ हैं लेकिन अपने समाज से कट गये हैं। वह अपने आप को कायस्थ से ऊपर समझ रहे हैं। हम उनको जोड़कर दो काम कर रहे हैं। एक तो उन शख्सियतों को यह एहसास करा रहे हैं कि वह कहीं भी हों लेकिन पहले कायस्थ हैं। ऐसे में उनका दायित्व है कि अपने समाज के लोगों को लेकर भी आगे बढ़ें। मेरी सोच है कि अगर दो-चार सौ लोगों को हम जोड़ सकें तो यह बड़ी उपलब्धि होगी।

प्रश्न : दिनेश जी, अकेले इलाहाबाद में ही कायस्थों की संख्या तकरीबन दो लाख है। पड़ोसी जिलों के साथ बरेली, फतेहपुर, मुरादाबाद, फर्रुखाबाद, कानपुर, लखनऊ और पूर्वांचल के जिलों के अतिरिक्त बिहार, मध्य प्रदेश में भी कायस्थों की काफी संख्या है, फिर भी हमें राजनीतिक दल गंभीरता से नहीं लेते, इसके लिए कोई प्रयास ?
उत्तर : यही सबसे बड़ी गंभीर समस्या है। हम इतनी बड़ी संख्या में होने और सबसे बड़ी बात है कि बुद्धिजीवी वर्ग होने के बावजूद किसी भी राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक तक नहीं बन पाये। सबसे बड़ी बात तो यह है कि चुनाव करीब आते ही हर दल के लिये वादे किये जाते हैं, हम उससे भी वंचित हैं आखिर क्यों ? क्या हमारे अंदर राजनीतिक प्रतिभा नहीं है। ऐसा नहीं, दरअसल लंबे समय से कायस्थ समाज अपने आप को एकजुट नहीं कर पा रहा । अगर हम पूरे समाज को एकजुट कर लें तो किसी राजनीतिक दल की हैसियत नहीं कि हमें बिना लिये चल सके। हमें नकार सके। उसे हमें हमारी हैसियत के मुताबिक हिस्सेदारी देनी ही होगी। हम इस ताकत को उभारने की कोशिश में जुटे हैं और आगामी विधानसभा चुनाव में भी कोशिश करेंगे कि कायस्थों को उनकी राजनीतिक भागीदारी मिल सके।

प्रश्न : कायस्थ समाज में पैदा हुए विभिन्न क्षेत्रों के महापुरुष (मसलन साहित्य में मुंशी प्रेमचंद, स्वतंत्रता आंदोलन में सुभाषचंद्र बोस, अध्यात्म में स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद, राजनीति में राजेंद्र प्रसाद और लाल बहादुर शास्त्री, क्रांतिकारियों में गणेश शंकर विद्यार्थी और खुदीराम बोस आदि) की चर्चा तो खूब होती है। कायस्थ समाज और नेता इनके नामों को दोहरा-दोहराकर अपनी पीठ ठोंकते रहते हैं, लेकिन कायस्थ समाज में जो कमियां और कमजोरियां हैं, उनकी चर्चा कम ही सुनने को मिलती है। मैं समझता हूं कि जब तक समाज इन बुराइयों से मुक्त नहीं होगा, गौरवशाली इतिहास को दोहराते रहने भर से समाज का भला नहीं होगा ? आप समाज से कोई अपील करना चाहेंगे ?
उत्तर : कायस्थों में सबसे बड़ी समस्या दहेज की है। बेटियों की शादी इसलिए नहीं हो पाती क्योंकि मां-बाप के पास देने के लिए दहेज नहीं होता। किसी तरह उधार लेकर, जमीन बेचकर, मकान गिरवी रखकर अगर बेटी की शादी हो जाए तो परिवार की कमर टूट जाती है। पूरी जिदगी वे लोग कर्ज चुकाने में ही लगे रह जाते हैं। अब कायस्थ परिवारों के पास न तो जमींदारी है और न कारोबार। जो कुछ भी बचा-खुचा है, वह है नौकरी। ऐसे में बेटियों की शादी में तिलक-दहेज का पैसा जुटाना काफी मुश्किल है। समाज की हालत ऐसी है कि दिन-ब-दिन दहेज की समस्या घटने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। मैं समाज के पढ़े-लिखे युवाओं से अपील करता हूं कि वे शपथ लें कि दहेज नहीं लेंगे और इस रिवाज का पूरी तरह विरोध करेंगे। जब तक युवक आगे नहीं बढ़ेंगे, तब तक इस समस्या का हल नहीं होगा। यह समस्या दूर होगी तो समाज आगे बढ़ पाएगा।

प्रश्न : कायस्थ समाज में दूसरी बड़ी समस्या बेरोजगारी है। इसके लिए भी कुछ ?
उत्तर : पहले सरकारी नौकरी कायस्थ समाज की बपौती मानी जाती थी। इस समुदाय का बच्चा पढ़-लिखकर तैयार होगा, तो उसे सरकारी नौकरी तो मिल ही जाएगी, लेकिन आरक्षण के बाद स्थितियां बदलीं और सरकारी नौकरियों में कायस्थों की संख्या काफी कम हो गई। कायस्थ युवाओं को जरूरत है कि वे खुद का काम करें और नौकरी पाने की इच्छा रखने के बजाय नौकरी देनेवाला बनने की इच्छा रखें। वे यह काम बखूबी कर सकते हैं। मैं हर कायस्थ को कारोबारी बनने के लिए प्रोत्साहित करता हूं, ताकि अपने साथ-साथ दूसरों का भी भला कर सके। एक नौकरी से जहां एक घर चलता है, वहीं एक बिज़नेस  या कारोबार न जाने कितने घरों की रोजी-रोटी का जरिया बनता है। यह बात जिस दिन समाज की समझ में आ जाएगी, फिर पीछे समाज को मुड़कर नहीं देखना पड़ेगा।