विश्व आयोडीन अल्पता विकार निवारण दिवस (21 अक्टूबर) पर विशेष
देश के 55 फीसद लोगों को ही है आयोडाइज्ड नमक की जानकारी
लखनऊ - विश्व आयोडीन अल्पता विकार दिवस हर साल 21 अक्टूबर को मनाया जाता है | इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को इस बारे में जागरूक करना है कि आयोडीन मानसिक विकास, थाइरॉयड का सही तरीके से काम करने और शरीर के सम्पूर्ण विकास के लिए बहुत जरूरी है |
इंडिया आयोडिन सर्वे 2018 -19 के अनुसार – देश में 55 फीसद लोगों ने आयोडाइज्ड नमक के बारे में सुना है, जिसमें से 61.4 फीसद लोगों ने बताया कि आयोडीन का उपयोग प्राथमिक तौर पर घेंघा रोग में लाभप्रद होता है |
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) की वरिष्ठ डायटीशियन डा.सुनीता सक्सेना बताती हैं – आयोडीन सूक्ष्म पोषक तत्व होता है | शरीर में थाइरॉयड हार्मोन का सही से उत्पादन करने के लिए इसकी आवश्यकता पड़ती है | साथ ही गर्भाशय विकास के लिए आवश्यक है। जिन महिलाओं में आयोडीन की कमी होती है उन महिलाओं में थायरॉयड की कार्य प्रणाली बाधित होती है, जिसका असर उनके प्रजनन स्वास्थ्य पर पड़ता है। आयोडीन की कमी गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क के विकास को अवरूद्ध कर देती है। आयोडीन की कमी से हाइपोथायरायडिज्म सबसे आम समस्याओं में से एक है। आयोडीन की कमी से बच्चों का मानसिक विकास कमजोर होता है, ऊर्जा में कमी आती है, जल्द थकान आती है। आयोडीन की कमी से गूंगा-बहरा, घेंघा रोग होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
डा. सुनीता के अनुसार - आयोडीन का सबसे सामान्य स्रोत नमक है। इसके अलावा शकरकंद, प्याज, पालक, मछली,बीन्स और समुद्री मछली आदि खाद्य पदार्थों में आयोडीन होता है। इनका सेवन शरीर में आयोडीन की कमी को दूर करता है।
डा. सुनीता बताती हैं- आयोडीन की कमी से बच्चों में कई तरह की बीमारियों के होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं । इन बीमारियों से बचाव के लिए जरूरी है कि 11 माह तक के बच्चे को प्रतिदिन 50 माइक्रो ग्राम, पांच साल तक की उम्र के बच्चे को प्रतिदन 90 माइक्रो ग्राम, 6-12 साल तक के बच्चे के लिए 120 माइक्रो ग्राम और 12 साल से अधिक की आयु के लिए 150 माइक्रो ग्राम आयोडीन का सेवन करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को प्रतिदिन 220 माइक्रोग्राम और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रतिदिन 290 माइक्रोग्राम आयोडीन का सेवन करना चाहिए। आयोडीन से शरीर स्वस्थ और दिमाग चुस्त बनता है, कार्यक्षमता में बढ़ोतरी होती है।
भारत सरकार द्वारा वर्ष 1962 में 100 फीसद केन्द्रीय सहायता प्राप्त राष्ट्रीय घेंघा नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया था | अगस्त 2020 में इसका नाम बदलकर राष्ट्रीय आयोडीन की कमी विकार नियंत्रण कार्यक्रम( एनआईडीडीसीपी) कर दिया गया | जिसमें आयोडीन की कमी से होने वाले सभी विकारों को शामिल किया गया | यह कार्यक्रम सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में लागू है |