- प्रसव के दौरान अधिक रक्तस्राव व समय से खून न मिलने से चली जाती है जान
- प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत होती है सारी जाँच मुफ्त
- पहली बार गर्भवती होने पर सही पोषण के लिए मिलते हैं 5000 रूपये
लखनऊ - मातृ मृत्यु के जोखिम को पूरी तरह से काबू करने को लेकर सरकार की हरसंभव कोशिश लगातार जारी है । इसके परिणाम भी साल दर साल सार्थक नजर आ रहे हैं । एसआरएस (सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम) के वर्ष 2011-13 के सर्वे में उत्तर प्रदेश का मातृ मृत्यु अनुपात जहां 285 प्रति एक लाख था वह वर्ष 2015-17 के सर्वे में घटकर 216 और 2016-18 के सर्वे में 197 प्रति एक लाख पर पहुँच गया । यह आंकड़ा दर्शाता है कि सुरक्षित मातृत्व को लेकर चलाई जा रहीं योजनाएं अपने मकसद में सफल साबित हो रहीं हैं ।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन उत्तर प्रदेश के अपर मिशन निदेशक प्रांजल यादव का कहना है कि मातृ मृत्यु का एक प्रमुख कारण प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्त स्राव का होना व समय से जरूरत के मुताबिक खून का न मिल पाना है । इस दिशा में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं कि हर जिले के सभी ब्लड बैंक में हर वक्त पर्याप्त खून की व्यवस्था हो ताकि मुसीवत में माँ-बच्चे के जीवन को सुरक्षित बनाया जा सके । इसके लिए हर किसी का जागरूक होना बहुत जरूरी है कि वह स्वेच्छा से रक्तदान के लिए आगे आयें और मातृ मृत्यु के जोखिम को कम करने में भागीदार बनें । सरकार इस जोखिम को घटाने के लिए हर जरूरी इंतजाम तो आसानी से कर सकती है किन्तु खून की कमी को सभी के सहयोग से ही पूरा किया जा सकता है क्योंकि इसे किसी और तरीके से तैयार नहीं किया जा सकता है । जटिल गर्भावस्था (एचआरपी) वाली महिलाओं को खून की सबसे अधिक जरूरत होती है क्योंकि सिजेरियन प्रसव के दौरान अधिक रक्तस्राव की कमी को खून चढ़ाकर ही पूरा किया जा सकता है । अप्रैल 2019 से मार्च 2020 के दौरान 104452 महिलाएं और अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के दौरान 91997 महिलाएं उच्च जोखिम की श्रेणी में चिन्हित की गयीं । प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत हर माह की नौ तारीख को स्वास्थ्य केन्द्रों पर होनी वाली जाँच का लाभ वर्ष 2019-2020 में 8,75,170 महिलाओं ने और वर्ष 2020-2021 में 8,36,980 महिलाओं ने उठाया ।
सुरक्षित मातृत्व को ध्यान में रखते हुए ही गर्भावस्था की सही जांच-पड़ताल के लिए प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत हर माह की नौ तारीख को स्वास्थ्य केन्द्रों पर विशेष आयोजन होता है । जहाँ पर एमबीबीएस चिकित्सक द्वारा गर्भवती की सम्पूर्ण जांच की जाती है और कोई जटिलता नजर आती है तो उन महिलाओं को उच्च जोखिम गर्भावस्था वाली चिन्हित कर उन पर खास नजर रखी जाती है । इसके अलावा पहली बार गर्भवती होने पर सही पोषण और उचित स्वास्थ्य देखभाल के लिए तीन किश्तों में 5000 रूपये दिए जाते हैं । इसके अलावा संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए जननी सुरक्षा योजना है, जिसके तहत सरकारी अस्पतालों में प्रसव कराने पर ग्रामीण महिलाओं को 1400 रूपये और शहरी क्षेत्र की महिलाओं को 1000 रूपये दिए जाते हैं । प्रसव के तुरंत बाद बच्चे की उचित देखभाल के लिए जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम है तो यदि किसी कारणवश मां की प्रसव के दौरान मृत्यु हो जाती है तो मातृ मृत्यु की समीक्षा भी होती है । सुरक्षित प्रसव के लिए समय से घर से अस्पताल पहुँचाने और अस्पताल से घर पहुंचाने के लिए एम्बुलेंस की सेवा भी उपलब्ध है ।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ : राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन-उत्तर प्रदेश के महाप्रबंधक-मातृत्व स्वास्थ्य डॉ. मनोज शुकुल का कहना है कि जच्चा-बच्चा को सुरक्षित बनाने के लिए सरकार द्वारा चलायी जा रहीं योजनाओं के व्यापक प्रचार- प्रसार के साथ ही उनके प्रति जागरूकता लाने का कार्य बराबर किया जा रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को योजनाओं से लाभान्वित किया जा सके । इसके लिए जरूरी है कि गर्भ का पता चलते ही स्वास्थ्य केंद्र पर जल्दी से जल्दी पंजीकरण कराएं और दूसरे व तीसरे त्रैमास में गर्भवती अपनी सम्पूर्ण जांच प्रशिक्षित चिकित्सक से प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत मुफ्त कराएं । ताकि किसी भी जटिलता का पता चलते ही उसके समाधान का प्रयास किया जा सके । इसके साथ ही गर्भवती खानपान का खास ख्याल रखे और खाने में हरी साग-सब्जी, फल आदि का ज्यादा इस्तेमाल करे, आयरन और कैल्शियम की गोलियों का सेवन चिकित्सक के बताये अनुसार करें । प्रसव का समय नजदीक आने पर सुरक्षित प्रसव के लिए पहले से ही निकटतम अस्पताल का चयन कर लेना चाहिए और मातृ-शिशु सुरक्षा कार्ड, जरूरी कपड़े और एम्बुलेंस का नम्बर याद रखना चाहिए । समय का प्रबन्धन भी अहम् होता है क्योंकि एम्बुलेंस को सूचित करने में विलम्ब करने और अस्पताल पहुँचने में देरी से खतरा बढ़ सकता है ।