- जिले के डेढ़ सौ सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों का एनेक्सी भवन में किया गया संवेदीकरण
- मरीजों को पहचान कर यथाशीघ्र स्वास्थ्य सेवा प्रणाली से जोड़ने की अपील
गोरखपुर - छुआछूत और भेदभाव के भय से लोग टीबी और कुष्ठ जैसी बीमारियां छिपाते हैं । यह दोनों बीमारियां खांसने और छींकने के दौरान बरती जाने वाली असावधानी के कारण फैलती हैं न कि छुआछूत से । समाज में भ्रांति के कारण मरीज इलाज के लिए सामने नहीं आते हैं और बीमारी की पहचान और इलाज में देरी से जटिलताएं बढ़ जाती हैं । इसलिए दोनों बीमारियों के मरीजों की शीघ्र पहचान कर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली से जोड़ने की आवश्यकता है । यह बातें मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे ने एनेक्सी भवन सभागार में शुक्रवार को कहीं। वह जिले के डेढ़ सौ सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) के लिए आयोजित संवेदीकरण कार्यशाला को सम्बोधित कर रहे थे।
सीएमओ ने कहा कि सीएचओ की जिम्मेदारी है कि 5000 की आबादी में से लक्षणों के आधार पर कुष्ठ और टीबी मरीजों को चिन्हित करें। इस कार्य में आशा व एएनएम भी सहयोग करें। समुदाय में फैली भ्रांतियों को दूर करें और चिन्हिंत मरीजों को ठीक होने के लिए प्रोत्साहित करें। मरीजों को बताएं कि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा बिल्कुल भी बंद नहीं करनी है। यदि दवा के सेवन से कोई दिक्कत आ रही है तो सीएचओ आवश्यक काउंसिलिंग भी करें। उन्होंने स्पष्ट किया कि कार्य के दौरान मरीजों के प्रति अच्छा बर्ताव रहना चाहिए
जिला क्षय उन्मूलन और कुष्ठ निवारण अधिकारी डॉ गणेश प्रसाद यादव ने टीबी और कुष्ठ के बारे में विस्तार से जानकारी दी । उन्होंने कहा कि अगर टीबी मरीज की समय से पहचान हो जाए तो एक साल में दस से पंद्रह नये लोगों को टीबी संक्रमित होने से बचाया जा सकता है । साथ ही मरीज ड्रग रेसिस्टेंट टीबी से पीड़ित नहीं होने पाता है और महज छह माह की दवा व पोषण से वह ठीक हो सकता है । इसी प्रकार अगर कुष्ठ रोगी की समय से पहचान हो जाए तो वह छह से बारह माह के इलाज में ठीक हो जाता है। इलाज में देरी होने पर वह दिव्यांगता का भी शिकार हो सकता है । उन्होंने बताया कि दो सप्ताह से अधिक समय तक खांसी, रात में पसीने के साथ बुखार, तेजी से वजन घटना, भूख न लगना जैसे लक्षण फेफड़े की टीबी के लक्षण हैं। इसके जांच और इलाज की सुविधा सभी पीएचसी, सीएचसी और जिला क्षय रोग केंद्र पर उपलब्ध है
डॉ यादव ने बताया कि अगर शरीर पर कहीं भी हल्के रंग का सुन्न दाग धब्बा है जिसमें संवेदना नहीं है तो वह कुष्ठ हो सकता है । ऐसे दाग धब्बों की संख्या जब पांच या पांच से कम होती है और नसें प्रभावित नहीं होती हैं तो मरीज को पासी बेसिलाई (पीबी) कुष्ठ रोगी कहा जाता है। ऐसे मरीज का इलाज छह माह की दवा में हो जाता है । अगर दाग धब्बों की संख्या पांच से अधिक है और नसें भी प्रभावित हुई हैं तो मरीज को मल्टी बेसिलाई (एमबी) कुष्ठ रोगी कहते हैं और उसका इलाज बारह माह में हो जाता है ।
उप जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ विराट स्वरूप श्रीवास्तव और जिला कुष्ठ रोग परामर्शदाता डॉ भोला गुप्ता ने दोनों बीमारियों से जुड़े कार्यक्रमों के बारे में विस्तार से जानकारी दी । संवेदीकरण कार्यक्रम में अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ नंद कुमार, डॉ एके चौधरी, डिप्टी सीएमओ डॉ अनिल सिंह, डॉ अश्वनी चौरसिया, जिला कार्यक्रम समन्वयक धर्मवीर प्रताप सिंह, पीपीएम समन्वयक अभय नारायण मिश्र, मिर्जा आफताब बेग, फिजियोथेरेपिस्ट आसिफ खान, नान मेडिकल एसिस्टेंट पवन श्रीवास्तव, महेंद्र चौहान और टीबी डिपार्टमेंट से अभयनंदन प्रमुख तौर पर मौजूद रहे ।
कार्यक्रम के बारे में मिली जानकारी : कार्यक्रम के प्रतिभागी और जंगल कौड़िया ब्लॉक के घुनघुनकोठा हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के सीएचओ सूरज प्रजापति ने बताया कि कार्यक्रम में पहली बार कुष्ठ के दो प्रकारों के बारे में विस्तार से जानने को मिला । आशा कार्यकर्ताओं की मदद से मरीज खोजने के बारे में बताया गया । इसी ब्लॉक के जमुआर एचडब्ल्यूसी की सीएचओ मंजू ने बताया कि टीबी मरीज को इलाज चलने तक प्रतिमाह 500 रुपये मिलने वाले पोषण राशि की जानकारी उनके लिए नयी थी।