फाइलेरिया संक्रमण से बचने के लिए खाएं दवा



  • फाइलेरिया मरीज शरीर की साफ सफाई का रखें विशेष ख्याल
  • फाइलेरिया ग्रस्त मरीजों समेत स्वयं सहायता समूह हुए प्रशिक्षित

कानपुर - फाइलेरिया उन्मूलन अभियान के तहत मंगलवार को ग्राम भद्रस, घाटमपुर में मोर्बिडिटी मैनजमेंट एंड डिसेबिलिटी प्रिवेन्शन (एमएमडीपी) प्रशिक्षण का आयोजन हुआ। सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च के सहयोग से आयोजित प्रशिक्षण में भाद्रस ग्राम के फाइलेरिया ग्रस्त मरीजों सहित संकट मोचन सहायता समूह के सदस्यों व आशा कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। लखनऊ से आये प्रशिक्षक स्टेट प्रोग्राम ऑफिसर डॉ सतीश पाण्डेय ने सभी की काउंसिलिंग की।

डॉ पाण्डेय ने भी लोगों को फाइलेरिया को लेकर व्याप्त भ्रांतियों को दूर किया और झाड़-फूंक से बचते हुए उपचार कराने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि फाइलेरिया ग्रसित मरीज साल में चार बार 12-12 दिन का दवा का कोर्स करे तो फाइलेरिया के संक्रमण को रोका जा सकता है। इस दौरान उन्होंने बताया कि आमतौर पर फाइलेरिया के कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते, लेकिन बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्या दिखाई देती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाथी पांव और हाइड्रोसिल (अंडकोषों की सूजन) भी फाइलेरिया के लक्षण हैं। इस बीमारी में हाथ और पैर हाथी के पांव जितने सूज जाते हैं इसलिए इस बीमारी को हाथीपांव कहा जाता है। फाइलेरिया संक्रमण के लक्षण कई सालों तक नजर नहीं आते। फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को दिव्यांग बना देती है बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

उन्होंने समूह के सदस्यों को फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम में आईडीए और एमडीए के महत्व के बारे में जानकारी दी। उन्होंने समूह के सदस्यों को बताया कि मरीजों को शरीर के अंगों को सामान्य पानी व साबुन से नियमित साफ-सफाई करनी चाहिए। इसके साथ ही चिकित्सक द्वारा बताए गए व्यायाम को करने से सूजन नहीं बढ़ती। नियमित व्यायाम करने से सामान्य जीवन व्यतीत करने में सहायता मिलती है। इसके साथ ही डॉ पाण्डेय ने पैर धुल कर पैर साफ सुथरा रखने का तरीका बताया। साथ ही साथ समूह को व्यायाम करके दिखाया और समूह के सदस्यों ने भी उस प्रक्रिया को दोहराया।