विश्व स्वास्थ्य दिवस (7 अप्रैल) पर विशेष : आईटीएन मच्छरदानी का उपयोग करें-मच्छरजनित बीमारियों से बचें



हर घर को कीटनाशकों से कवर करना पर्यावरण व आर्थिक दृष्टि से उचित नहीं: डॉ. बाजपेयी

लखनऊ - मौसम के बदलते ही मच्छरजनित बीमारियां जैसे – डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया पाँव पसारने लगती हैं | इससे बचाव के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा साल में तीन बार संचारी रोग नियंत्रण माह मनाया जाता है और इस दौरान लोगों को इन बीमारियों से बचाव के बारे में जागरूक किया जाता है | इसके  साथ ही समय - समय पर रोग के प्रसार की स्थिति में कीटनाशकों का छिड़काव व अन्य जरूरी उपाय भी किये जाते हैं | अब संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम में इन्टीग्रेड ट्रीटेड मॉसक्यूटो बेड  नेट (आईटीएन) उपयोग के बारे में  भी  लोगों को जानकारी दी जा रही  है | इसके साथ ही इसके उपयोग पर भी जोर दिया जा रहा है | यह कहना है लखनऊ मण्डल के चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के अपर निदेशक डा. जीएस बाजपेयी का |

अपर निदेशक का कहना है-– हर घर को कीटनाशकों के माध्यम से आच्छादित(कवर) किया जाना न तो पर्यावरण की दृष्टि  से उचित है और न ही आर्थिक रूप से | इससे मनुष्य के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचता है | सतत विकास के लिए यह आवश्यक है कि हम उन चीजों के उपयोग पर जोर दें,  जिससे हमारा और हमारी आने वाली पीढ़ियों का स्वास्थ्य बेहतर बन सके | विश्व स्वास्थ्य दिवस (सातअप्रैल) एक ऐसा उपयुक्त अवसर है कि लोगों को हम इस बारे में भलीभांति अवगत कराएं |

मंडलीय  सर्विलांस अधिकारी डा. शैलेश परिहार बताते हैं कि  आईटीएन के प्रयोग से जहां लागत कम आती है वहीं यह मनुष्य, जीव जंतुओं के क्रम में  पर्यावरण के लिए उपयुक्त है |
मंडलीय  एंटेमोलॉजिस्ट डा. मानवेंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि आईटीएन का सबसे पहले उपयोग असम में मलेरिया से बचाव के लिये किया गया था | इससे मलेरिया को नियंत्रित करने में काफी हद तक सफलता मिली | इसी क्रम में उड़ीसा के खदान वाले क्षेत्रों में भी आईटीएन के प्रयोग से मलेरिया के नियंत्रण में आशातीत सफलता मिली है | लखीमपुर खीरी के दुधवा तराई क्षेत्र के थारु जनजातियों के  34 गांवों में इसके उपयोग से मलेरिया सहित अन्य वेक्टर बार्न रोगों पर भी  काबू पाया गया |

डा. मानवेंद्र बताते हैं कि 15 मिली कीटनाशक को चार लीटर पानी में डालकर घोल तैयार करते हैं  और उसमें सिंगल बेड मच्छरदानी को 10 मिनट भिगोकर बिना निचोड़े हुए छायादार जगह पर सुखा लेते हैं |  अच्छे से सूखने के बाद आईटीएन मच्छरदानी को प्रतिदिन सोते समय इसका उपयोग करें | यदि डबल बेड के लिए मच्छरदानी है तो कीटनाशक और पानी की मात्रा दुगुनी हो जाएगी | आईटीएन की इस पूरी  प्रक्रिया के दौरान विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है | शरीर का कोई भी अंग कीटनाशक के संपर्क में नहीं आना चाहिए | इसलिए पर्सनल प्रोटेक्शन किट (पीपीई)  पहनकर के ही आईटीएन की प्रक्रिया सम्पन्न की जाती है | आईटीएन ट्रीटमेंट के बाद, मच्छरदानी को छायादार स्थान पर सुखाने के बाद  छह माह तक इसे लगातार उपयोग में  लाया जा सकता है | इसे छह माह तक धोना नहीं हैं और न ही इसे तेज धूप में  सुखाना चाहिये क्योंकि  कीटनाशक प्रभावी नहीं रह पाएगा |   इस प्रकार से आईटीएन मच्छरदानी का उपयोग करने से जहां हम मच्छरों से बचे रहते हैं वहीं हमारा स्वास्थ्य और पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है |