सिनेमा ने तोड़े महिलाओं से जुड़े मिथक: शर्मिला टैगोर



  • 'आईआईएमसी फिल्म फेस्टिवल 2022' का दूसरा दिन
  • शुक्रवार को फेस्टिवल में शामिल होंगे विवेक अग्निहोत्री

नई दिल्ली - आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर भारतीय जन संचार संस्थान एवं फिल्म समारोह निदेशालय, भारत सरकार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय 'आईआईएमसी फिल्म फेस्टिवल 2022' के दूसरे दिन पद्म भूषण से सम्मानित मशहूर फिल्म अभिनेत्री श्रीमती शर्मिला टैगोर कहा कि अब दर्शक सिनेमा के पास नहीं जाता, बल्कि सिनेमा स्‍वयं दर्शक के पास आता है। अब कई ऐसे प्‍लेटफॉर्म हैं, जहां दर्शक घर बैठे सिनेमा का लुत्‍फ उठाते हैं। फेस्टिवल के दूसरे दिन अभिनेता-निर्माता श्री आशीष शर्मा और श्रीमती अर्चना टी. शर्मा एवं सुप्रसिद्ध वन्यजीव फिल्म निर्माता श्री एस. नल्लामुथु ने भी समारोह में हिस्सा लिया। फेस्टिवल की थीम 'स्पिरिट ऑफ इंडिया' रखी गई है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और जल शक्ति मंत्रालय भी इस आयोजन का हिस्सा हैं।

श्रीमती शर्मिला टैगोर ने कहा कि समय के साथ न केवल फिल्‍मों के प्रचार-प्रसार और वितरण का कार्य ज्‍यादा व्‍यवस्थित हुआ है, बल्कि फिल्‍म निर्माण से जुड़े हर कार्य में बदलाव आ चुका है। यह पूरी तरह व्‍यावसायिक और ‘गुड प्‍लेस टू वर्क’ बन चुका है। उन्‍होंने कहा कि सिनेमा में महिलाओं की भागीदारी आज बहुत बढ़ चुकी है। वे कैमरे के सामने अपने अभिनय का कौशल दिखाने के साथ-साथ कैमरे के पीछे निर्देशन, सिनेमेटोग्राफर, कोरियोग्राफर, टेक्‍नीशियन आदि जैसी भूमिकाएं भी बखूबी निभा रही हैं। उन्‍होंने कहा कि महिलाओं से जुड़े मिथक भी टूट रहे हैं। आजकल मां बेटी को केवल यही नहीं कहती कि ‘खूबसूरत दिख रही हो’, बल्कि ‘स्‍मार्ट और कॉन्फिडेंट दिख रही हो’ भी बोलने लगी हैं।

अपने अभिनय के शुरुआती दिनों की यादें साझा करते हुए उन्‍होंने कहा कि महज 13 साल की उम्र से ही उन्होंने काम करना शुरू कर दिया था। टैगोर ने बताया कि उनके परिवार में फिल्‍मों में काम करना तो दूर, फिल्‍म देखने तक की अनुमति नहीं थी। सबसे पहले सत्‍यजीत रे ने उन्‍हें फिल्‍मों में काम करने का अवसर दिया। उन्होंने कहा कि यदि रे के स्‍थान पर किसी और ने यह पेशकश की होती, तो उन्‍हें फिल्‍म में काम करने की इजाजत हरगिज नहीं मिलती।  

श्रीमती शर्मिला टैगोर ने बताया कि उन्‍होंने क्षेत्रीय सिनेमा से बॉलीवुड में कदम रखा था। यह पूछे जाने पर कि इसके लिए उन्‍हें क्‍या किसी परेशानी का सामना करना पड़ा, उन्‍होंने बताया कि उन्‍हें गानों की लिप सिंकिंग में परेशानी होती थी। शर्मिला ने बताया कि शुरू-शुरू में बंगाली फिल्‍मों से हिंदी फिल्‍मों में आने के कारण उन्‍हें विरोध का सामना भी करना पड़ा। हालांकि बॉलीवुड में कदम रखने के बाद भी उन्‍होंने अपनी जड़ों को कभी नहीं भुलाया और बीच-बीच में बंगाली फिल्‍मों में भी काम करती रहीं। साठ के दशक की फिल्‍मों में राजेश खन्‍ना के साथ उनकी हिट जोड़ी के बारे में उन्‍होंने कहा कि उन दिनों हेमा मालिनी–धर्मेंद्र और सायरा बानो–राजेंद्र कुमार जैसी जोड़ियां मशहूर थीं। लोग उनकी कैमिस्‍ट्री को देखना पसंद करते थे।

समारोह के दूसरे दिन एस. नल्लामुथु की फिल्‍म 'मछली', अमित गोस्‍वामी की 'द लास्‍ट ट्राइब', आशीष शर्मा और अर्चना टी. शर्मा की 'खेजड़ी', नकुल देव की 'बिफोर आई डाई' तथा 'एलिफेंट्स डू रिमेम्‍बर' जैसी फिल्‍मों की स्‍क्रीनिंग की गई।  

फेस्टिवल के अंतिम दिन 6 मई को प्रसिद्ध फिल्‍म निर्माता एवं निर्देशक तथा आईआईएमसी के पूर्व छात्र श्री विवेक अग्निहोत्री समारोह में शामिल होंगे एवं विद्यार्थियों से संवाद करेंगे।