- 12 से अधिक साल तक स्कूल जाने वाली 93.4 फीसद महिलाओं ने संस्थागत प्रसव को अपनाया
- संस्थागत प्रसव की तादाद चार साल में 67.8 फीसद से बढ़कर हुई 85.5 फीसद
- मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए जरूरी है संस्थागत प्रसव
लखनऊ - मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए सरकार और स्वास्थ्य विभाग द्वारा हरसम्भव प्रयासकिये जा रहे हैं | संस्थागत प्रसव के जरिये इस दर में कमी लाने में बड़ी कामयाबी मिल सकती है, इसके लिए समुदाय में जागरूकता लाने के भी लगातारप्रयास चल रहे हैं |इसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं | राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5(एनएफएचएस-5) की वर्ष 2019-21 की रिपोर्ट के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश में संस्थागत प्रसव की दर 85.5 फीसद हो गयी है जबकि वर्ष 2015-16 में एनएफएचएस-4 की रिपोर्ट में यह दर 67.8 फीसद थी |
रिपोर्ट के मुताबिक़ संस्थागत प्रसव को तरजीह देने में पढ़ी-लिखी महिलाओं की अहम भूमिका है | एनएफएचएस-5 की वर्ष2019—21 की रिपोर्ट के अनुसार संस्थागत प्रसव कराने वाली महिलाओं में उनकी तादाद अधिक रही, प्रदेश में जो महिलाएं 10 से11 साल तक स्कूल गई हैं, संस्थागत प्रसव कराने में उनकी तादाद 89.3 प्रतिशत रही जबकि 12 व इससे अधिक साल तक स्कूल जाने वाली 93.4 फीसद महिलाओं ने संस्थागत प्रसव को अपनाया है |
एसआरएस (सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम) के वर्ष 2011-13 के सर्वे में उत्तर प्रदेश का मातृ मृत्यु अनुपात जहां 285 प्रति एक लाख था वह वर्ष 2015-17 के सर्वे में घटकर 216 और 2016-18 के सर्वे में 197 प्रति एक लाख पर पहुँच गया ।
संस्थागत प्रसव के लिए सरकार ने जननी सुरक्षा योजना और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम(जेएसएसके)की शुरुआत की थी | जननी शिशु सुरक्षा योजना के तहत सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रसव कराने पर गर्भवती को सरकार द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है और इस योजना का लाभ महिला को उसकी सभी गर्भावस्था में मिलता है | ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर प्रसव कराने पर 1400 रुपये और शहरी क्षेत्रों में सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर प्रसव कराने पर 1000 रुपये की धनराशि प्रसूता के खाते में भेजी जाती है | घर पर भी प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता द्वारा प्रसव कराने पर 500 रुपये की आर्थिक सहायता का प्रावधान है| योजना का लाभ लेने के लिए लाभार्थी का आरसीएच पोर्टल पर पंजीयन आवश्यक होता है |
इसके साथ ही जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके) के तहत जहां प्रसूता को निःशुल्क घर से अस्पताल और अस्पताल से घर पहुंचाने सुविधा, निःशुल्क भोजन, निःशुल्क ब्लड की व्यवस्था है वहीँ प्रसव के बाद 42 दिन के भीतर उच्च स्तरीय स्वास्थ्य केंद्रों पर निःशुल्क सन्दर्भन की भी व्यवस्था है | नवजात को भी निःशुल्क घर से अस्पताल और अस्पताल से घर लाने-ले जाने की सुविधा है तो निशुल्क ब्लड और एक साल तक उच्च स्तरीय स्वास्थ्य केंद्रों पर निःशुल्क सन्दर्भन की भी सुविधा है |
संस्थागत प्रसव कराने से यह लाभ है कि प्रसव सुरक्षित और प्रशिक्षित चिकित्सक के द्वारा किया जाता है | प्रसव के दौरान और प्रसव पश्चात दिक्कतों का प्रबंधन हो जाता है जिससे मातृ और शिशु मृत्यु की संभावना कम होती है | शिशु का टीकाकरण हो जाता है तथा यदि उसे स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या है तो उसका इलाज तुरंत हो सकता है | साथ ही यदि उसे संदर्भन की जरूरत है तो वह भी निःशुल्क होता है |
गांवों और शहरों में आशा कायकर्ता द्वारा गर्भवती को संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित करते हुए सरकारी अस्पताल में प्रसव करवाने पर उन्हें भी प्रोत्साहन राशि दिए जाने का प्रावधान है|
सेंटर फॉर एक्सीलेंस ऑफ एडोल्सेन्ट हेल्थ, किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय की नोडल अधिकारी एवं महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. सुजाता देव का कहना है - गर्भवती को संस्थागत प्रसव ही कराना चाहिए । संस्थागत प्रसव कराने से गर्भवती और गर्भस्थ शिशु की मृत्यु की संभावना बहुत कम होती है क्योंकि प्रसव के दौरान व प्रसव पश्चात महिला व नवजात की संपूर्ण देखभाल चिकित्सकों व प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा की जाती है । साथ ही महिला और नवजात को अगर कोई जटिलता होती है तो उसका प्रबंधन भी समय से हो जाता है।