नई दिल्ली - विदेशों में मंकीपॉक्स के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी के बाद केंद्र सरकार भी सचेत हो गई है। केंद्र सरकार ने सभी अंतराष्ट्रीय एंट्री प्वाइंट जैसे एयरपोर्ट, बंदरगाहों पर निगरानी शुरू कर दी है। दक्षिण अफ्रीका की यात्रा कर भारत पहुंचने वाले यात्रियों की सैंपल को जांच के लिए पुणे में स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) भेजे जाएंगे।
सैंपल (एनआईवी, पुणे को) केवल ऐसे मामलों में भेजें जहां लोगों में कुछ खास लक्षण दिखें। बीमार यात्रियों के नमूने नहीं भेजे जाएंगे। इनपुट्स के अनुसार, केंद्र ने नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) को यूरोप और अन्य जगहों पर मिल रहे मंकीपॉक्स के मामलों पर कड़ी नजर रखने के लिए कहा है।
अफ्रीका तक सीमित वायरस जनित बीमारी मंकीपॉक्स अब यूरोप मे कहर बरपा रही है और स्पेन ने जहां गुरुवार को सात मामलों की पुष्टि की वहीं पुर्तगाल में इन मामलों की संख्या बढ़कर 14 हो गई। स्पेन में अब तक जितने भी मामले सामने आये हैं, वे सब राजधानी मेड्रिड से हैं और सभी संक्रमित पुरूष हैं। मंकीपॉक्स का संक्रमण बेहद करीबी संपर्क वाले व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है। साथ ही ऐसे व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल कपड़े या चादरों का उपयोग करने से संक्रमण फैल सकता है जोकि मंकीपॉक्स की चपेट में है।
मंकीपॉक्स मानव चेचक के समान एक दुर्लभ वायरल संक्रमण है। यह पहली बार 1958 में शोध के लिए रखे गए बंदरों में पाया गया था। मंकीपॉक्स से संक्रमण का पहला मामला 1970 में दर्ज किया गया था। यह रोग मुख्य रूप से मध्य और पश्चिम अफ्रीका के कुछ क्षेत्रों में होता है और कभी-कभी बाकी क्षेत्रों में पहुंच जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मंकीपॉक्स आमतौर पर बुखार, दाने और गांठ के जरिए उभरता है और इससे कई प्रकार की चिकित्सा जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। रोग के लक्षण आमतौर पर दो से चार सप्ताह तक दिखते हैं, जो अपने आप दूर होते चले जाते हैं। मामले गंभीर भी हो सकते हैं। हाल के समय में, मृत्यु दर का अनुपात लगभग 3-6 प्रतिशत रहा है, लेकिन यह 10 प्रतिशत तक हो सकता है। संक्रमण के वर्तमान प्रसार के दौरान मौत का कोई मामला सामने नहीं आया है।