नवजात शिशु देखभाल सप्ताह (14-21 नवम्बर) पर खास-नवजात का रखें खास ख्याल, बचपन होगा खुशहाल



  • नवजात की उचित देखभाल एवं स्तनपान को बढ़ावा देने पर करेंगे जागरूक
  • शिशु मृत्यु दर को कम करने पर ज़ोर, पूरे हफ्ते चलेगा जागरूकता कार्यक्रम

लखनऊ, 13 नवम्बर-2019- शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए हर स्तर पर भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में जनसामान्य को नवजात शिशु के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने, नवजात की उचित देखभाल करने, कंगारू मदर केयर और स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए 14 से 21 नवम्बर तक “नवजात शिशु देखभाल सप्ताह” मनाने का निर्णय लिया गया है। “अनमोल जीवन की शुरुआत, नवजात शिशु की देखभाल के साथ” को आधार बनाकर इस सप्ताह की गतिविधियां तय की गयी हैं। इस सप्ताह के दौरान बीमार नवजात शिशुओं की पहचान कर समय से चिकित्सा उपलब्ध कराने और नवजात की बेहतर देखभाल के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक करने पर बल दिया जाएगा।

​राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन-उत्तर प्रदेश के मिशन निदेशक की तरफ से अपर मिशन निदेशक जसजीत कौर ने प्रदेश के सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को नवजात शिशु देखभाल सप्ताह के दौरान आयोजित होने वाली प्रमुख गतिविधियों के बारे में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किया है। पत्र के मुताबिक इस सप्ताह का मुख्य उद्देश्य नवजात शिशु की आवश्यक देखभाल करने के संबंध में जनसमुदाय को जागरूक कर नवजात शिशु मृत्यु दर में कमी लाना है। इसके अलावा जन्म के उपरांत शीघ्र स्तनपान, छ्ह माह तक केवल स्तनपान और छ्ह माह बाद ऊपरी आहार के द्वारा बच्चों को कुपोषित होने से बचाने और समय से नियमित टीकाकरण कराने के प्रति स्वास्थ्य विभाग के साथ अन्य विभाग भी मिलकर जागरूकता की अलख जगाएँगे।

​नवजात शिशु की आवश्यक देखभाल के बारे में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के महाप्रबन्धक – बाल स्वास्थ्य डॉ॰ वेद प्रकाश का कहना है कि प्रसव चिकित्सालय में ही कराएं और प्रसव पश्चात 48 घंटे तक माँ और शिशु की उचित देखभाल के लिए अस्पताल में ही रुकें। नवजात को तुरंत नहलाएँ नहीं और शरीर पोंछकर नर्म साफ कपड़े पहनाएं। जन्म के एक घंटे के भीतर माँ का पीला गाढ़ा दूध पिलाना शुरू कर दें और छ्ह माह तक केवल स्तनपान ही कराएं। जन्म के तुरंत बाद नवजात का वजन लें और विटामिन के1 का इंजेक्शन लगवाएँ। नियमित और सम्पूर्ण टीकाकरण कराएं क्योंकि यह टीके बच्चों को कई तरह की बीमारियों से बचाते हैं। पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का प्रमुख कारण डायरिया और निमोनिया होते हैं, जबकि इन दोनों बीमारियों से बचाने के लिए रोटा वायरस और पेंटावैलेंट जैसे कई टीके मौजूद हैं। इसके साथ ही इसका इलाज भी सस्ता और सुलभ है। नवजात की नाभि सूखी और साफ रखें, संक्रमण से बचाएं और माँ एवं शिशु की व्यक्तिगत स्वच्छता का ध्यान रखें। कम वजन एवं समय से पूर्व जन्में शिशुओं का विशेष ध्यान रखें। शिशु का तापमान स्थिर रखने के लिए कंगारू मदर केयर विधि अपनाएं। शिशु जितनी बार चाहे दिन अथवा रात में बार-बार स्तनपान कराएं। कुपोषण और संक्रमण से बचाव के लिए छ्ह महीने तक केवल माँ का दूध पिलाएँ, शहद, घुट्टी, पानी आदि बिल्कुल न दें, इससे संक्रमण का खतरा रहता है।

क्या कहते हैं आंकड़े : भारत सरकार द्वारा जारी (एस॰ आर॰ एस॰ 2017) रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश की शिशु मृत्यु दर 41 प्रति 1000 जीवित जन्म है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह दर 33 प्रति 1000 जीवित जन्म है। इनमें से तीन चौथाई शिशुओं की मृत्यु प्रथम माह में हो जाती है। इसको ध्यान में रखते हुए जरूरी है कि बच्चों को स्वस्थ बचपन देने के लिए ज्यादा से ज्यादा जनजागरूकता लायी जाये।