गाने, कविता, पेंटिंग से समझा रहे टीबी



  • प्रदेश में कई टीबी चैम्पियन गैरपारंपरिक माध्यमों से फैला रहे जागरूकता  
  • लोगों को खूब लुभा रहे और आसानी से सिखा भी रहे यह तरीके   

लखनऊ - देश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त बनाने के प्रधानमंत्री के संकल्प को साकार करने के मद्देनजर जन-जन को जागरूक करने के लिए गैरपारंपरिक तरीकों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। समुदाय से  भेदभाव और भ्रांतियों को दूर करने के लिए टीबी चैंपियन गायन, कविता पाठ, पेंटिंग  जैसे लोकप्रिय माध्यमों का सहारा ले  रहे हैं। यह  तरीके लोगों को लुभा भी रहे हैं और खेल-खेल में सिखा भी रहे हैं। इन्हें और बढ़ाने की जरूरत है।

मिसाल के तौर पर बरेली के अशफाक को ही ले लीजिए। उन्हें टीबी हुई। बीमारी के बारे में बहुत कुछ नहीं पता था। समय से जाँच और दवा का पूरा कोर्स करने से स्वस्थ  हुए तो दूसरों को भी जागरूक करने का प्रण लिया। तरीका खोजा गाना गाकर समझाने का। बहेड़ी क्षेत्र के देवरनिया गांव निवासी 52 वर्षीय अशफाक खुद ही गाना लिखते हैं और नुक्कड़-चौराहों पर गाकर लोगों को  जागरूक करते  हैं। वह आधी आबादी के लिए खास तौर पर संवेदनशील हैं। टीबी के लक्षण वाली कोई युवती या महिला दिखती है तो उसे सामाजिक भेदभाव से बचाने का भरसक प्रयास करते हैं। अब तक 300 टीबी मरीजों की मदद कर चुके हैं। इनमें 60 से अधिक बच्चियां व महिलाएं शामिल हैं।

अशफाक की तरह आगरा की टीबी चैंपियन पूनम कुमारी भी कविता के माध्यम से लोगों के बीच जागरूकता फैलाती  हैं। छीपीटोला की रहने वाली पूनम बताती हैं कि उनकी कविता टीबी मरीजों से भेदभाव न करने के लिए है... टीबी मरीजों को प्यार और साथ देने के लिए है... उनका सहारा बनने के लिए है। वह जिले की मलिन बस्तियों और घनी आबादी में जाकर 50 लोगों को एकत्र कर सामुदायिक बैठक करती हैं और कविता के माध्यम से जागरूक करती हैं। उनका कहना है कि उनकी कविता और दो पक्षीय बातचीत से इन बस्तियों के लोग भी रुचि लेते हैं और उनमें  जानकारी भी आ रही है।

आगरा के ही टीबी चैंपियन नरेंद्र सिंह सिकरवार पेंटिंग बनाकर लोगों को क्षय रोग के बारे में समझाते हैं। ताजगंज स्थित पुरानी मंडी में रहने वाले नरेंद्र का टारगेट कम पढ़े-लिखे लोग होते हैं। वह चित्रों के माध्यम से लोगों को टीबी के लक्षण, फैलने के तरीके, रोग छिपाने के नुकसान और सरकारी अस्पतालों में मौजूद जांच व इलाज की व्यवस्था के बारे में बताते हैं। सामुदायिक बैठक के दौरान यू-आकार में प्रतिभागियों को बैठाया जाता है, जिससे  पेंटिंग में बने चित्रों के साथ लोगों का आई कांटेक्ट बना रहे।

पीलीभीत के ग्राम प्रधान भगवान दास ग्राम समाज की होने वाली हर बैठक को टीबी के लिए जागरूकता प्लेटफार्म के रूप में इस्तेमाल करते हैं। वह ग्रामीणों को टीबी के लक्षण, जांच, इलाज और बचाव के बारे में बताते हैं। मरौरी ब्लाक के पिपरिया अगरू गांव के प्रधान भगवान दास को कोरोनाकाल में टीबी हुई थी। उस वक्त लोगों-रिश्तेदारों ने उनसे मुंह मोड़ लिया था। ठीक होने के बाद वह अपना फर्ज समझते हैं कि क्षेत्र के अन्य टीबी रोगियों को भी जागरूक करें। इसलिए समाज के अंदर टीबी रोगियों के प्रति हुए भेदभाव को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। अब तक गांव के आठ मरीजों को जिला क्षय रोग केंद्र भेज चुके हैं। यह  मरीज डाट सेंटर जाने से डर रहे थे।  

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के महाप्रबंधक (राष्ट्रीय कार्यक्रम) डॉ. लक्ष्मण सिंह ने ऐसी सभी पहल की तारीफ करते हुए कहा कि पूरा प्रदेश क्षय रोग को सन् 2025 तक खत्म करने में जुटा है। विभाग होर्डिंग, वाल पेटिंग, अखबारों में विज्ञापन समेत अन्य माध्यमों से जनजागरूकता फैला  रहा है। टीबी चैंपियन की लोगों को जागरूक करने के लिए गैरपारंपरिक तरीके इस्तेमाल करने की पहल शानदार है। प्रदेश में अन्य प्रतिभावान टीबी चैंपियन को भी जागरूकता के लिए नए तरीके इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। प्रदेश में इस समय कुल 2351 टीबी चैम्पियन हैं, जो अपने-अपने तरीके से लोगों को टीबी के प्रति जागरूक कर रहे हैं।
 
ध्यान देने वाली बातें :

•    दो हफ्ते से ज्यादा खांसी आने पर बलगम की जांच कराएं, एक्स-रे कराएं
•    टीबी अस्पताल अथवा जिला अस्पताल के डाट्स  सेंटर पर जाकर निशुल्क दवाएं लें
•    टीबी का पूरा कोर्स करें और समय पर दवा लें
•    दवा तभी बंद करें, जब डाक्टर कहें
•    संतुलित आहार लें और योग व व्यायाम करते रहें

मैं डाट सेंटर दवा लेने जाता था तो वहां गांव की कई लड़कियां भी आती थीं। उनके साथ जिस तरह का भेदभाव होता था वह मन को कचोटता था। लोग कहते थे कि अब इनके साथ कौन शादी करेगा। बस मन ने ठान लिया कि जिस दिन ठीक हो जाऊंगा तो टीबी चैंपियन बनूंगा और लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करूंगा खासकर आधी आबादी को।                                                                               - अशफाक, टीबी चैंपियन, बरेली

 

मैं एमडीआर टीबी का मरीज था। डाक्टर ने मुझे बच्चों से भी मिलने-जुलने से मना किया था। मैं अपने बच्चों को बहुत चाहता था लेकिन उन्हें सालभर तक गले नहीं लगा पाया। यह बात मुझे मन ही मन में घर कर गई और मैंने प्रण लिया कि ठीक होने पर टीबी चैंपियन बनूंगा और लोगों को जागरूक करूंगा ताकि किसी बाप के सामने यह स्थिति न आने पाए।                                                                     - नरेंद्र सिंह सिकरवार, टीबी चैंपियन, आगरा