- मेदांता हॉस्पिटल में कोविड के दौरान प्रदेश में सर्वाधिक सर्जरी हुई
- तीन वर्ष के बच्चे से लेकर 54 वर्ष के व्यक्ति को आधुनिकतम तरीके से सर्जरी से मिला नया जीवन
लखनऊ - मेदांता हॉस्पिटल स्थापना के समय से इस क्षेत्र के मरीजों के बेहतर इलाज की उम्मीद पर खरा उतरा है। मेदांता अस्पताल में हृदय रोगियों की जटिलतम सर्जरी कर उन्हें नया जीवन दिया गया। मेदांता अस्पताल के कार्डिओ थोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जरी विभाग के डायरेक्टर एवं विश्वविख्यात सर्जन डॉ गौरंगा मजूमदार ने अब तक हज़ारों दिल के रोगियों की सफल हार्ट सर्जरी कर उनको नया जीवन दिया है। डॉ गौरंगा दुनिया के उन चुनिन्दा सर्जनों में से हैं जो टोटल आर्टेरिअल ग्राफ्ट लगा कर बाई पास करते है।
डॉ गौरंगा मजूमदार के नेतृत्व में उनकी टीम के सदस्यों डॉ शशांक त्रिपाठी, डॉ मनोज कुमार और कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डॉ मुजाहिद वजीदी ने मीडिया से बातचीत करते हुए ऐसे केस रखे जो बहुत ही जटिल थे, किंतु समय रहते मेदांता अस्पताल पहुंच कर इलाज कराने से उन्हें आधुनिकतम विधि से सर्जरी के चलते नया जीवन मिला।
केस 1:- 54 वर्षीय पुरुष को, जिन्हें लगतार खून की उल्टियां हो रही थीं, इमरजेंसी की हालत में मेदांता अस्पताल लाया गया। जांच करने पर यह पता चला कि वह एक बड़े पैमाने पर थोरैसिक अर्ट्रिक एन्युरिज्म से पीड़ित थे, जो कि बाएं फेफड़े में लीक हो रहा था और उससे हेमोप्टाइसिस हो रहा था। वह कोरोनरी धमनी की बीमारी से भी पीड़ित थे। डॉ मजूमदार की टीम ने तत्काल संयुक्त रूप से फट चुके अर्ट्रिक महाधमनी एन्युरिज्म का इलाज शुरू किया और की और कोरोनरी धमनी बाईपास सर्जरी की। ऑपरेशन के बाद मरीज को गंभीर निमोनिया के चलते स्थिति अच्छी नहीं थी। लेकिन अब 5 महीने लगतार फॉलोअप के बाद वे अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं।
केस 2:- एक 3 वर्ष के बच्चे को का बच्चा एक्यूट थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के साथ जटिल सियानोटिक जन्मजात हृदय रोग (ब्लू बेबी सिंड्रोम) से पीड़ित था। बच्चे का प्लेटलेट्स काउंट 28000 था, जबकि सामान्य काउंट 1.5-4.5 लाख होता है। ओपन हार्ट सर्जरी के लिए कार्डियोपल्मोनरी बाईपास की आवश्यकता होती है, कम से कम 1 लाख की गिनती वांछित है अन्यथा सर्जरी के दौरान या बाद में रक्तस्राव की जटिलताओं के। चलते रोगी की मौत का खतरा होता है। बच्चे को डीओआरवी वीएसडी पीएस सर्जरी कर उसे रिपेयर किया गया। उसकी स्थिति सामान्य होने पर सर्जरी के सातवें दिन छुट्टी दे दी गई। यह अपने आप हृदय रोग का जटिलतम मामला था, जो सामान्य तौर पर कम ही देखने को मिलता है।