नौकरीपेशा माँ बच्चों को छह माह तक केवल स्तनपान कराएं, यह हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी : डा. पियाली भट्टाचार्य



  • विश्व स्तनपान सप्ताह (एक से सात अगस्त ) पर विशेष
  • माँ का दूध बच्चे के लिए अमृत समान
  • इस साल की थीम है : लेट्स मेक ब्रेस्टफीडिंग एंड वर्क, वर्क

लखनऊ - माँ का दूध बच्चों के लिये कुदरत का करिश्मा है । यह शिशु के लिए सम्पूर्ण आहार है। यह न केवल बच्चे के लिए अमृत समान है बल्कि माताओं के लिए भी बहुत लाभप्रद है।

एसजीपीजीआई की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डा. पियाली भट्टाचार्या बताती हैं कि हर साल एक से सात  अगस्त तक विश्व स्तनपान सप्ताह किसी न किसी थीम के तहत मनाया जाता है । इस साल थीम है - लेट्स मेक ब्रेस्टफीडिंग एंड वर्क, वर्क अर्थात  कामकाजी महिलाओं को अपने नवजात को स्तनपान कराने में जो असुविधाएं सहनी पड़ती हैं, उसे कैसे दूर किया जाए  यह हम सब को मिलकर सोचना पड़ेगा। क्या सभी संस्थाओं में मातृव अवकाश छह महीने से  अधिक मिलना चाहिये। नौकरीपेशा माताओं को स्तनपान कराने के लिये उनके कार्यस्थल में अलग से जगह मिलनी चाहिए। उनकी समस्याओं पर ध्यान देना हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है।

डा. पियाली के अनुसार - छह माह तक बच्चे को केवल स्तनपान कराना चाहिए यहाँ तक कि ऊपर से पानी भी नहीं देना चाहिए। माँ का पहला दूध जिसे खीस या कोलस्ट्रम कहते हैं, बच्चे को जरूर दें। स्वास्थ्य केंद्र पर चिकित्सक, स्टाफ नर्स और अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को यह जरूर सुनिश्चित कराना चाहिए कि जन्म के एक घंटे के अंदर शिशु को मां का दूध जरूर मिले।

माँ के दूध में सभी आवश्यक पोषक तत्व होते हैं जो कि उसके शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। इसके साथ ही यह सुपाच्य होता है जिससे पेट में किसी भी तरह की दिक्कत होने की संभावना न के बराबर होती है। माँ के दूध में उपस्थित एंटीबॉडी बच्चे में किसी भी तरह के संक्रमण को होने से रोकते हैं। उसका डायरिया, निमोनिया जैसी जानलेवा बीमारियों से बचाव तो होता ही साथ में प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। माँ का दूध हाइपोथर्मिया यानि ठंडा बुखार से और ठंड से भी बचाता है क्योंकि माँ का दूध शिशु को उसी तापमान पर मिलता है जो उसके शरीर का तापमान होता है। बच्चे को दिन और रात में 10 से 12 बार स्तनपान ( डिमांड फीड) कराना चाहिए।छह माह के बाद बच्चे के लिए माँ का दूध  पूरा नहीं पड़ता है तो ऊपरी आहार शुरू कर देना चाहिए | यह प्रथा अन्नप्राशन के नाम से भी जानी जाती  है।

यदि महिला बीमार है और वह स्तनपान करने में अक्षम है माँ का दूध साफ कटोरी में निकालकर चम्मच से बच्चे को पिलाएं, बोतल का इस्तेमाल कभी न करें। शिशु को गाय, भैंस, या डिब्बाबंद दूध बिल्कुल भी न् दें।

डा. पियाली बताती हैं कि केवल स्तनपान जितना बच्चे के लिए फायदेमंद होता है उतना ही माँ के लिए भी। अगर महिला शिशु को छह माह तक केवल स्तनपान करा रही है ऊपर का कुछ नहीं दे रही है तो यह प्राकृतिक गर्भनिरोधक की तरह काम करता है। महिला के गर्भधारण की संभावना बहुत कम हो  जाती है | आमलोगों में यह धारणा है कि स्तनपान कराने से माँ की फिगर खराब हो जाती है, ऐसा कुछ भी नहीं है। स्तनपान कराने से माँ और बच्चे में भावनात्मक लगाव पैदा होता है।

इसके साथ ही स्तन कैंसर गर्भाशय को सिकुड़ने और सामान्य आकार में लौटने में मदद मिलना, प्रसवोत्तर अवसाद का जोखिम कम होता है। इससे महिलाओं व बच्चे में मोटापे (obesity) की संभावना कम हो जाती हैं। स्तनपान बच्चों में मृत्यु दर के अनुपात को कम करता है।

माँ या बच्चा यदि बीमार हैं तो दोनों ही स्थिति में स्तनपान जारी रखना चाहिए। बच्चे को लेट  कर दूध न पिलाएं और दूध पिलाने के बाद उसे डकार जरूर दिलाएं। स्तनपान कराते समय बैठने की स्थिति सही रखें जिससे कि माँ और बच्चे दोनों को किसी भी प्रकार की थकान या असुविधा न हो।

क्या कहते हैं आँकड़े ?
राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2020-21  के अनुसार छह माह तक आयु के 59.7 फीसद बच्चों ने छह माह तक केवल स्तनपान किया जबकि एनएफएचएस, 2015-16  के अनुसार यह आंकड़ा 41.6 फीसद था।