डिस्टोनिया बीमारी हो सकती है अनुवांसिक - स्वास्थ्य विशेषज्ञ



डॉक्टरों ने डिस्टोनिया से ग्रसित मरीज की सर्जरी करने में पाई सफलता

लखनऊ (आरएनएस ) - बचपन से डिस्टोनिया बीमारी से ग्रसित 21 वर्षीय लड़की का डॉक्टरों ने सर्जरी करने में सफलता पाई है। गुरुवार को डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी विभाग डॉक्टरों ने जनरलाइज्ड डिस्टोनिया से पीड़ित सीतापुर निवासी 21 वर्षीय लड़की की सर्जरी में सफलता हासिल की है।मरीज को सीतापुर के निजी अस्पताल द्वारा आरएमएल में रिफर किया गया था।ज्ञात हो कि डिस्टोनिया एक प्रकार का मूवमेंट डिस्आर्डर है जो मांसपेशियों में ऐंठन से शरीर के अंगों में असामान्य मोड़ या मुद्रा का कारण बनता है। यह बीमारी शरीर के कई क्षेत्रों को प्रभावित करती है।इसे सामान्यतः डिस्टोनिया कहा जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि डिस्टोनिया आनुवांशिक कारणों से हो सकता है या मस्तिष्क संक्रमण, सिर की चोट से मस्तिष्क रोगों के कारण भी हो सकता है। अभी तक डिस्टोनिया का कोई स्थाई इलाज मौजूद नहीं है। इसमें लक्षणों के आधार पर दवाओं या नियमित बोटुलिनम टॉक्सिन इंजेक्शन द्वारा प्रबंधित किया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में दो प्रकार की चिकित्सा विधि उपलब्ध हैं डीबीएस और पैलिडोटॉमी डीबीएस एक गहरी मस्तिष्क उत्तेजना सर्जरी है, जहां मस्तिष्क के कुछ क्षेत्रों में इलेक्ट्रोड प्रत्यारोपित किए जाते हैं। ये इलेक्ट्रोड विद्युत धाराएं उत्पन्न करते हैं और रसायनों सेल कार्यों को नियंत्रित करते हैं। वह बचपन से ही डिस्टोनिया से पीड़ित थी और उसके लक्षणों में सुधार नहीं हो रहा था।

वहीं न्यूरोलॉजी के एडिशनल प्रो.डॉ. दिनकर कुलश्रेष्ठ ने बताया कि दवाओं से चिकित्सा प्रबंधन उसके डिस्टोनिया को नियंत्रित करने में विफल रही और टॉक्सिन इंजेक्शन एक चिकित्सीय विकल्प नहीं था क्योंकि बीमारी ने कई मांसपेशी समूहों को प्रभावित किया था। डॉ.कुलश्रेष्ठ ने कहा कि इस सर्जिकल प्रक्रिया की योजना डॉक्टरों ने बनाई गई। जिसमें डॉ. संजीव श्रीवास्तव वरिष्ठ न्यूरोसर्जन गुड़गांव ने सर्जिकल प्रक्रिया में सहायता करने में शामिल रहे। वहीं मरीज सर्जरी के दौरान खोपड़ी में छेद किया गया स्टीरियोटैक्टिक हेड फ्रेम को लगाया गया। छेद मस्तिष्क क्षेत्र में डाले गए तारों के माध्यम से बनाए गए थे और उच्च आवृत्ति तरंगों के कारण ग्लोबस पैलिडस में छेद किए गए। सर्जरी लगभग 7 से 8 घंटे चली। डॉ. दीपक सिंह ने बताया कि ऑपरेशन के बाद मरीज की हालत में सुधार होता देख दो दिन बाद उसे छुट्टी दे दी गई। इसलिए मरीज नियमित रूप से डा. अजय सिंह और डा. दिनकर से परामर्श कर रहे है, और लगातार उनके बोलने, चलने और बाहों को मोड़ने में सुधार हुआ है और उम्मीद है कि आने वाले महीनों में उनमें और सुधार होगा। डॉ. दीपक सिंह और डॉ. दिनकर कुलश्रेष्ठ ने संयुक्त रूप से कहा कि इन रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए ऐसे मामलों का इलाज पैलिडोटॉमी द्वारा किया जा सकता है।