झाड़-फूंक से नहीं, इलाज से ही ठीक होता है पीलिया



  • पीलिया से करना है बचाव तो नवजात का रखें खास ख्याल
  • नवजात शिशुओं को पीलिया होने का सबसे अधिक खतरा

औरैया - पीलिया की शिकायत होने पर झाड़-फूंक में समय बर्बाद न करें। इलाज में देरी रोगी की जान को खतरे में डाल सकती है। खासतौर से जन्म के समय अधिकतर शिशुओं को पीलिया होने का खतरा अधिक होता है, इसलिए उन्हें पीलिया से बचाने के लिए खास ख्याल रखने की आवश्यकता होती है। यदि सही समय पर शिशुओं का उपचार न किया जाए तो उसकी जान को खतरा हो सकता है।,  लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करना बहुत जरूरी है। यह बातें सिक न्यू बोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) के नोडल अधिकारी व बाल रोग विशेषज्ञ डॉ रणजीत कुशवाहा ने कहीं।

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया छोटे और बीमार नवजात बच्चे को शुरू के 28 दिनों में बेहतर देखभाल की आवश्यकता होती है, क्योंकि इन दिनों में शिशु को सेप्सिस, निमोनिया व पीलिया आदि समस्याएं होने का ज्यादा खतरा होता है। यदि उस दौरान शिशु की बेहतर देखभाल की जाए तो नवजात की इन समस्याओं से होने वाली मौतों में से लगभग 30 प्रतिशत को कम किया जा सकता है।

स्वास्थ्य विभाग से मिले आकड़ों के अनुसार जिले के 100 शैय्या वाले जिला अस्पताल के सिक न्यू बोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में अप्रैल 2023 से नवंबर 2023 तक लगभग 300  नवजात शिशुओं को भर्ती किया गया था जिनमें से लगभग 95 बच्चे पीलिया से ग्रसित थे, जिनका इलाज फोटोथेरेपी से किया गया। वर्तमान समय में यह बच्चे स्वस्थ हैं। डॉ रणजीत कुशवाहा ने बताया कि जन्म के समय लगभग 60-70 प्रतिशत नवजात शिशुओं में पीलिया होने की स्थिति रहती है और यह मुख्यत: माता-पिता के ब्लड ग्रुप के अलग- अलग होने की वजह से उत्पन्न होती है। या फिर किसी प्रकार के संक्रमण के कारण भी पीलिया होने की आशंका होती है। उन्होंने बताया कि पीलिया अगर ज्यादा दिनों तक बना रहता है तो बच्चों का हीमोग्लोबिन कम भी हो सकता है तथा नवजात कोमा में भी जा सकता है।
 
उन्होंने बताया कि नवजात शिशुओं को पीलिया से बचाने के लिए समय से स्तनपान कराते रहना चाहिए। इससे मल- मूत्र के द्वारा बच्चे के शरीर से बिलिरूबिन बाहर निकल जाता है, क्योंकि बिलिरूबिन की अधिकता होने की वजह से ही शिशु को पीलिया होता है। इसके अलावा जिन बच्चों में पीलिया ज्यादा रहता है, उन बच्चों का इलाज फोटोथेरेपी के द्वारा किया जाता है।, इस उपचार से शिशु ठीक हो जाते हैं।

क्या है पीलिया : डॉ कुशवाहा बताते हैं कि नवजात शिशुओं में पीलिया होने के पीछे भी ठोस कारण हैं। जब नवजात इस दुनिया में आता है तो शिशु के शरीर में रेड ब्लड सेल्स की मात्रा बहुत अधिक होती है, यानि शिशु के रक्त में बिलिरूबिन सेल्स की अधिकता होती है (बिलिरूबिन पीले रंग का एक पदार्थ है जो खून में मौजूद लाल रक्त कणिकाओं के 120 दिन की साइकिल पूरी होने पर टूटने से बनता है।) और जब यह अतिरिक्त सेल्स टूटने लगते हैं तो नवजात शिशु को पीलिया हो जाता है। इसके अलावा बच्चे का शरीर पूरी तरह से विकसित नहीं होता और उसका लिवर रक्त में मौजूद बिलिरूबिन को छान कर शरीर से बाहर नहीं कर पाता हैं, जिसकी अधिकता होने की वजह से बच्चे को पीलिया हो जाता है और इसी कारण से बच्चे की आंखे और शरीर पीली पड़ जाता है। शिशुओं को पीलिया से बचाने के लिए खास ख्याल रखने की आवश्यकता होती है। ताकि इस बीमारी से होने वाली समस्याओं से शिशु को बचाया जा सके।

क्या हैं लक्षण : शिशु में पीलिया की शुरुआत उसके सिर से होती है। सबसे पहले शिशु का चेहरा पीला पड़ जाता है। उसके बाद यह सीने और पेट में भी फैल जाता है। अंत में पैरों में फैलता है। शिशु की आंखें भी पीली हो जाती हैं। नवजात में पीलिया के लक्षण जितनी देरी से पता चलेंगे खतरा उतना ज्यादा बढ़ेगा। यदि नवजात में पीलिया 14 दिन से ज्यादा रहता है तो उसके परिणाम घातक हो सकते हैं। यदि शिशु में पीलिया के लक्षण नजर आयें तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए, ताकि शिशु को पीलिया से होने वाले समस्याओं से बचाया जा सके।