- माइक्रो-इरीगेशन (सूक्ष्म सिंचाई) के माध्यम से कमांड क्षेत्र विकास पर तकनीकी कार्यशाला
लखनऊ । “कम पानी में अधिक सिंचाई : अधिक फसल-अधिक कमाई” (कमांड एरिया डेवलपमेंट थ्रू माइक्रो इरिगेशन) पर मंथन के लिए शनिवार को राजधानी के एक होटल में दिग्गजों का जमावड़ा हुआ। इस गंभीर मुद्दे पर तकनीकी कार्यशाला का आयोजन “2030 जल संसाधन समूह विश्व बैंक (2030 डब्ल्यूआरजी) एवं ग्रेटर शारदा सहायक समादेश क्षेत्र विकास प्राधिकारी/परियोजना उप्र के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। कार्यशाला में 2030 जल संसाधन समूह, विश्व बैंक के अधिकारी, भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य राज्यों के सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग से जुड़े अधिकारी, कृषि एवं कृषि से सम्बद्ध विभागों के अधिकारी के साथ-साथ विभिन्न जनपदों के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे। कार्यशाला में जल संरक्षण से जुड़ीं विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं, ग्राम प्रधानों, किसानों, सोशल एक्टिविस्ट, पद्मश्री प्राप्त विभूतियां तथा विषय विशेषज्ञों ने भी इस गंभीर मुद्दे पर अपने विचार रखे।
कार्यशाला में ग्रेटर शारदा सहायक समादेश परिक्षेत्र के चेयरमैन व प्रशासक और विशेष सचिव सिंचाई व जल संसाधन विभाग उप्र डॉ. हीरा लाल ने कहा कि उत्तर प्रदेश में सिंचित क्षेत्र बढ़ाने के लिए माइक्रो-इरीगेशन (सूक्ष्म सिंचाई) ही एकमात्र विकल्प है जिसके द्वारा कम पानी में अधिक सिंचाई के साथ अधिक उत्पादकता के द्वारा किसानों की आय को बढ़ावा दिया जा सकता है। “पर ड्रॉप मोर क्रॉप” के अलावा नहरों के कमांड क्षेत्र का माइक्रो-इरीगेशन (सूक्ष्म सिंचाई) के माध्यम से विकास इस दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि पानी के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है, इसलिए सभी के सामूहिक प्रयास से जल संरक्षण आज की सबसे बड़ी जरूरत बन चुका है। आज की इस कार्यशाला का आयोजन एक शुरुआत है, आगे इस दिशा में निरंतर प्रयास जारी रहेंगे ।
कार्यक्रम में भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के कमिश्नर राजीव कंवल ने कहा कि लघु सिंचाई के बारे में जनजागरूकता लाने के साथ ही उससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना बहुत जरूरी है। किसानों को यह समझना बहुत जरूरी है कि पानी फसलों को चाहिए न कि मिट्टी को, इसलिए फसलों को जितने पानी की जरूरत है उन्हें उतना ही दिया जाए। इसलिए सिंचाई की आधुनिकतम तकनीक का उपयोग करते हुए अपने आने वाली पीढ़ी के लिए जल संरक्षण करें।
कार्यक्रम में कंट्री कोआर्डिनेटर 2030 जल संसाधन समूह विश्व बैंक अजीत राधाकृष्णन ने कहा कि कार्यशाला का उद्देश्य प्रदेश में माइक्रो-इरीगेशन (सूक्ष्म सिंचाई) के द्वारा सिंचाई क्षेत्र का विस्तार और जल उपयोग दक्षता को बढ़ावा देना है। माइक्रो-सिंचाई के माध्यम से न केवल कृषि उत्पादकता में वृद्धि होती है अपितु जल उपयोग को अनुकूलित करने में भी सहायता मिलती है। कम पानी में अधिक सिंचाई : अधिक फसल-अधिक कमाई के उद्देश्य को प्राप्त करने की दिशा में यह एक नया प्रयास है। आगे भी इसी तरह के कार्यक्रम का आयोजन करने की योजना है, जिसमें जल संरक्षण के माध्यम से जलवायु परिवर्तन रोकने के विषय पर जागरूकता लाने का प्रयास किया जायेगा।
ग्रेटर शारदा सहायक के समादेश के एडिशनल कमिश्नर राजीव यादव ने कहा कि जल संरक्षण की महत्ता वैदिक काल से ही रही है। पानी की हर बूँद कीमती है, इसलिए उसे बेकार न होने दें बल्कि उसकी सुरक्षा करें। लघु सिंचाई से पानी की बर्बादी को हम रोक सकते हैं। कार्यशाला में सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना के चीफ इंजीनियर हिमांशु कुमार, मध्य प्रदेश से आये प्रोजेक्ट एडमिनिस्ट्रेटर विकास राजौरिया और जैन इरिगेशन महाराष्ट्र के सोमनाथ जाधव ने लघु सिंचाई की आधुनिकतम तकनीक के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि सिंचाई की विभिन्न नवीन तकनीक कृषकों की आय बढ़ाने में बहुत ही मददगार साबित हुई हैं। कार्यशाला के माध्यम से प्राप्त होने वाले सुझावों पर अमल कर किसान बंधु कम पानी में अधिक सिंचाई कर अपनी पैदावार को बढ़ा सकेंगे।