टीबी के साथ रखें अन्य बीमारियों का भी ख्याल : डा. सूर्यकान्त



लखनऊ । क्षय रोग यानि टीबी की चपेट में आने के साथ ही अन्य बीमारियों की गिरफ्त में आने की पूरी संभावना रहती है क्योंकि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। इसलिए टीबी के साथ अन्य बीमारियों का भी ख्याल रखना जरूरी है। यह कहना है - नॉर्थ जोन टीबी टास्क फोर्स के चेयरमैन एवं किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय  (केजीएमयू) के रेस्पिरेटरी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डा. सूर्यकांत का।

डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि यदि टीबी मरीज डायबिटीज, गुर्दा रोग, एचआईवी या अन्य किसी बीमारी से ग्रसित है तो इन  बीमारियों का सुचारू रूप से परीक्षण और नियंत्रण जरूरी है। टीबी की दवाएं यूरिक एसिड, लिवर, गुर्दे, पर भी असर डालती हैं इसलिए टीबी मरीज को इनका भी परीक्षण कराना चाहिए और चिकित्सक  की सलाह का पालन करना चाहिए। इसके साथ ही यदि टीबी मरीज धूम्रपान, शराब या अन्य किसी नशे का सेवन करता है या कोई टीबी ग्रसित महिला चूल्हे पर खाना बनाती है तो भी टीबी की दवाएं कम असर करती हैं। इसके अलावा यदि टीबी ग्रसित बच्चा है तो चूल्हे का धुआँ उसे  परोक्ष रूप से उसे प्रभावित करेगा जिससे कि उस पर भी टीबी कि दवाएं कम असर करेंगी। टीबी ग्रसित होने पर धूम्रपान, शराब, नशे आदि पर नियंत्रण रखें और चूल्हे पर खाना बनाना छोड़ें।

टीबी मरीज को चिकित्सक के परामर्श से नियमित रूप से दवा का सेवन करने के साथ ही खान-पान का भी पूरा ख्याल रखना चाहिए। टीबी के इलाज के दौरान खानपान का ख्याल रखने के लिए ही सरकार की तरफ से टीबी रोगियों को हर माह 500 रुपये सीधे बैंक खाते में दिए जाते हैं। इसके बाद भी जो टीबी मरीज अपने खान-पान का ख्याल रखने में असमर्थ हैं, उनके लिए सरकार द्वारा निक्षय मित्रों की मदद से गोद लिए जाने की भी व्यवस्था की गई है। इसलिए सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेकर जल्दी से जल्दी टीबी को मात दे सकते हैं और अन्य बीमारियों की चपेट में आने से बच सकते हैं।

डा. सूर्यकांत बताते हैं कि लोग गूगल अन्य किसी साइट से बीमारी संबंधी सूचनाओं की जानकारी लेते हैं जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए। यह सूचनाएं सही नहीं होती हैं  बल्कि भ्रामक होती हैं । इन सूचनाओं पर भरोसा नहीं करना चाहिए। केवल चिकित्सक की सलाह को अक्षरशः मानना चाहिए  और उसका पालन करना चाहिए।

केस- तेलीबाग निवासी 24 वर्षीय छात्र शशांक गुप्ता को आंतों की मल्टी ड्रग रसिस्टेंट(एमडीआर) टीबी हुई । उनका टीबी का इलाज चल ही रहा था कि उन्हें दिल में पानी भरने की समस्या हो गई थी। इस दौरान उन्हें इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) की भी समस्या हुई। टीबी के साथ अन्य बीमारियों का इलाज चला ।

मुझे डाक्टर ने बताया था कि टीबी की  दवाओं के सेवन के बाद इसके दुष्प्रभाव होंगे लेकिन दवाओं का सेवन नहीं छोड़ना है । जब मैं दवा खाता था तो मुझे दो से तीन घंटों तक आँखों से कम दिखता था और कभी कभी मैं रंग भी नहीं पहचान पाता था। दवा खाने के बाद कभी कभी उल्टी भी हो जाती थी। मुझे लगता था कि मैं कभी ठीक नहीं  हो पाऊँगा। इस दौरान लॉक डाउन हो गया। मैंने घर से निकलना छोड़ दिया। टीबी यूनिट के लोग घर पर ही दवा दे जाते थे। टीबी यूनिट और स्वयंसेवी संस्था वर्ल्ड विजन के लोगों ने इलाज के दौरान काउंसलिंग की और मेरी ऐसे लोगों से फोन पर बात कराई जो कि एमडीआर टीबी से ठीक हो चुके थे। मुझे इससे यह आशा जागी कि मैं भी ठीक हो सकता हूँ।

शशांक के अनुसार उन्हें टीबी यूनिट और गूगल से यह पता चला था कि आंतों की टीबी संक्रामक नहीं होती है। वह यह भी जानते थे कि लोग उनकी इस बात का भरोसा नहीं करेंगे। इसलिए उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों की टीबी के बारे में कुछ भी नहीं बताया था। उनका यह सोचना था कि पता चलने  पर लोग उनसे बात करना छोड़ देंगे।

आज शशांक स्वस्थ हैं और टीबी चैम्पियन बन कर लोगों को टीबी के इलाज से उबारने में मदद कर रहे हैं । वह टीबी चॅम्पियन के तौर पर काम करते हुए लगभ 200 लोगों की उनकी समस्याओं, इलाज और कार्यक्रम के बारे में फोन पर काउंसलिंग कर चुके हैं ।