- सुभाष राय की पुस्तक 'दिगंबर विद्रोहिणी अक्क महादेवी' का विमोचन
लखनऊ, 29 मार्च। सेतु प्रकाशन समूह की ओर से तीन दिवसीय सेतु संवाद कार्यक्रम की शुरुआत शुक्रवार को कैफ़ी आज़मी एकेडमी में हुई। सेतु प्रकाशन की ओर से अमिताभ राय ने प्रकाशन के बारे में बताते हुए अतिथियों का स्वागत किया। उद्घाटन वक्तव्य देते हुए चर्चित कवि नरेश सक्सेना ने लेखकों से कठिन समय में अभिव्यक्ति के खतरे उठाने के लिए आगे आने को कहा।
उद्घाटन सत्र के बाद हुए प्रथम सत्र में सुभाष राय की पुस्तक 'दिगंबर विद्रोहिणी अक्क महादेवी' के विमोचन और चर्चा का कार्यक्रम हुआ। विमोचन के बाद लेखकीय वक्तव्य देते हुए सुभाष राय ने 'दिगम्बर विद्रोहिणी अक्क महादेवी' के लिखे जाने की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि शुरू में अक्क भक्त की तरह दिखती हैं लेकिन आगे चलकर प्रेमी के रूप में नजर आती हैं। वे शिव के प्रेम में थीं। उन्होंने अक्क के दर्जनों अनुवादों को दर्जनों बार पढ़ने के बाद यह पुस्तक तैयार की है। सुभाष राय ने अक्क के कई वचनों और कुछ छाया कविताओं का पाठ भी किया।
लेखिका प्रीति चौधरी ने कहा कि अक्क अपनी यौनिकता को लेकर मुखर हैं। सोचने की बात है कि उस समय उन्हें कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा होगा। वे एक प्रश्नाकुल महिला हैं। शिव के प्रति उनके मन में आसक्ति है। प्रीति चौधरी ने अक्क के कई वचनों का पाठ करते हुए बताया कि उनकी सोच बहुत व्यापक है।
लेखक अनिल त्रिपाठी ने कहा कि अक्क का समय आज से हज़ार साल पहले का है। उस समय को सुभाष जी ने लोकजागरण के संदर्भ में देखने का काम किया है। इसमें अक्क के सौ वचनों का अनुवाद है। आगे सुभाष जी ने अक्क से प्रभावित होकर छाया कविताएँ भी लिखी हैं।
कथाकार अखिलेश ने कहा कि सुभाष जी के गद्य में भी काव्यबोध भरा रहता है। अक्क को पढ़ने के बाद मीरा की भी याद आती है। दोनों के यहाँ प्रेमभक्ति है। दोनों के यहाँ प्रतीक हैं। अक्क के वचन यह स्थापित करते हैं कि वे देह की चेतना से ऊपर उठ चुकी हैं। अखिलेश ने 'दिगम्बर विद्रोहिणी अक्क महादेवी' पुस्तक के विभिन्न संदर्भों को उद्धृत करते हुए उसे एक बेहद महत्वपूर्ण पुस्तक बताया।
दूसरे सत्र में सबसे पहले कमलाकान्त ने अक्क महादेवी के दो गीत प्रस्तुत किए। इस प्रस्तुति के बाद राजेश जोशी के नाटक 'सपना मेरा यही सखी' का मंचन प्रदीप घोष के निर्देशन में हुआ। नाटक में ज्योति नंदा, माया मिश्रा और सीमा सिंह ने अभिनय किया।
दोनों सत्रों का कुशल संचालन कवि ज्ञानप्रकाश चौबे ने किया। इस अवसर पर शहर के साहित्य प्रेमियों से सभागार भरा हुआ था।