कहानीकार देवेन्द्र के 'सेतु समग्र : कहानी' का विमोचन व चर्चा



 लखनऊ । सेतु प्रकाशन समूह के तत्वावधान में आयोजित 'सेतु संवाद' कार्यक्रम के दूसरे दिन प्रथम सत्र में कहानीकार देवेन्द्र के 'सेतु समग्र : कहानी' का विमोचन और चर्चा का कार्यक्रम कैफ़ी आज़मी एकेडमी में हुआ। विमोचन के बाद चर्चा की शुरुआत करते हुए पत्रकार नवीन जोशी ने देवेन्द्र की कई कहानियों की चर्चा करते हुए उन्हें इस समय का विशिष्ट कहानीकार बताया। उन्होंने कहा कि ये कहानियाँ ऐसे समय की हैं जब हमारी भाषा और सामूहिकता की हत्या हो रही है। कह सकते हैं कि ये हत्यारे समय की कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ चुपचाप सच्चाई को सामने लाती हैं।

आलोचक वीरेन्द्र यादव ने इस संग्रह के बाहर की हाल ही में 'तद्भव' पत्रिका में छपी कहानी 'नटवार' से अपनी बात शुरू की। उन्होंने कहा कि मिथक कैसे इतिहास में बदल जाता है वह इस कहानी से समझा जा सकता है। 'नालन्दा पर गिद्ध' के माध्यम से समझा जा सकता है कि हिन्दी का बौद्धिक समाज कैसे विकसित हो रहा है। यह अस्सी के दशक की हलचलों की कहानी है। यहाँ जाति और धर्म दोनों हैं। 'अनुपस्थिति' कहानी में भी विश्वविद्यालयों की दुर्गति को बयान किया गया है। उन्होंने अन्य कई कहानियों की भी चर्चा की।

कथाकार शिवमूर्ति ने कहा कि जितना दर्द देवेन्द्र की कहानियों में मिलता है उतना अन्यत्र मुश्किल है। इनकी कहानियाँ शैली और उक्तिवैचित्र्य के स्तर पर बेहद महत्वपूर्ण हैं। 'क्षमा करो हे वत्स' उनकी अवसाद तक ले जाने वाली तकलीफ़ भरी कहानी है। जितनी विविधता, सामग्री और अनुभव सम्पदा देवेन्द्र जी के पास है, उससे और अधिक कहानियाँ आनी चाहिए थीं। देवेन्द्र जी का फक्कड़पन उन्हें त्रास देता रहा है।

लेखकीय वक्तव्य में कहानीकार देवेन्द्र ने कहा कि समग्र यह अब तक का है लेकिन यह अंतिम नहीं है। अभी और भी कहानियाँ आएँगी। उन्होंने कहा कि पहले अस्सी का दशक बुरा लगता था, अब वही अच्छा लगता है। तब रिश्ते बचे हुए थे। उन्होंने अपने पढ़ाई के दौर की भी चर्चा की। साथ ही लिखने की वजहों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि एक विपुल झूठ का आवरण इस समय चल रहा है। सत्ता का अपना चरित्र होता है। आज इस झूठ के बीच मनुष्यता को ढूँढना जरूरी है।

दूसरे सत्र में सबसे पहले राजेन्द्र वर्मा ने अपनी दो लघु कथाओं 'टॉफियाँ' और 'ढाल' का पाठ किया। सबाहत आफ़रीन ने अपनी कहानी 'माहेपारा' और रजनी गुप्त ने 'किसी दिन अचानक' कहानी से प्रशंसा बटोरी। दोनों सत्रों का संचालन श्रवण कुमार गुप्त ने किया। इस अवसर पर शहर के तमाम साहित्यप्रेमी मौजूद थे।