लखनऊ। सेतु प्रकाशन समूह की ओर से कैफ़ी आज़मी एकेडमी में आयोजित 'सेतु संवाद' कार्यक्रम के तीसरे दिन प्रथम सत्र में सीमा सिंह की पुस्तक 'कितनी कम जगहें हैं' का विमोचन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। विमोचन के बाद पुस्तक पर चर्चा की शुरुआत सीमा सिंह के लेखकीय वक्तव्य से हुई। सीमा सिंह ने कहा कि सत्ताएँ आज़ाद अभिव्यक्ति से डरती हैं। इसी लिए वे उन पर पहरा लगाती हैं। उन्होंने कहा कि कविताओं ने उनके लेखक को जिम्मेदार बनाया। अधिक मानवीय समाज के निर्माण की ओर प्रेरित किया। उसका होना मनुष्य के पक्ष में होना है। उन्होंने संग्रह से कई कविताओं का पाठ भी किया।
चर्चित कवि नरेश सक्सेना ने कहा कि सीमा सिंह की कविताओं में पुराने कवियों की ध्वनियाँ हैं। इससे पता चलता है कि इनका अध्ययन गहरा है। ज्ञान से ही कला उपजती है। वैसे कविता भोलेपन से भी लिखी जा सकती है। आलोचना के लिए अवश्य ज्ञान की जरूरत होती है। उन्होंने सीमा सिंह को पुस्तक के लिए बधाई दी।
कवि विशाल श्रीवास्तव ने कहा कि सीमा सिंह के यहाँ परम्परा का बोध है जिसमें गहरा जीवनानुभव है। उनकी कविताओं में यथार्थ भरा पड़ा है। कविताएँ धैर्यपूर्ण विकलता का आख्यान हैं। उन्होंने सीमा सिंह की कई कविताओं की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए उनकी विशेषताओं को रेखांकित किया।
आलोचक नलिन रंजन सिंह ने कहा कि सीमा सिंह की कविताओं का फ़लक बहुत बड़ा है। उनके यहाँ माँ से जुड़ी कविताएँ हैं तो युगल प्रेम की भी कविताएँ हैं। राजनीतिक कविताएँ हैं तो विविध विषयों से जुड़ी कविताएँ हैं। सीमा सिंह युद्ध के नहीं प्रेम के पक्ष में खड़ी कवयित्री हैं। वे स्मृतियों के हत्यारे समय में लोक के सहारे उसे बचाने में लगी हैं। वे समय की गहरी पड़ताल करती हैं।
सूरज बहादुर थापा ने कहा कि सीमा सिंह के यहाँ ऐसी विनम्रता है जिसमें दृढ़ता भी है। पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री का दुःख उनके यहाँ दिखाई देता है। स्त्री का दुख एक स्त्री ही समझ सकती है। संग्रह में बहुत दृढ़ कविताएँ हैं। इसीलिए वे स्त्री विमर्श के दायरे से भी आगे निकल जाती हैं। यह संग्रह वास्तव में सभ्यता समीक्षा है।
दूसरे सत्र में सुभाष राय, अनिल त्रिपाठी, नलिन रंजन सिंह, विशाल श्रीवास्तव, प्रीति चौधरी, आभा खरे, ज्ञानप्रकाश चौबे, शालिनी सिंह और इरा श्रीवास्तव का काव्यपाठ हुआ। दोनों सत्रों का संचालन शालिनी सिंह ने किया। इस अवसर पर सभागार में शहर के तमाम साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।