- एनीमिया ग्रसित गर्भवतियों में रक्त की पूर्ति के लिये दिया जा रहा आयरन सुक्रोज
- जिला महिला अस्पताल में जुलाई माह से है संचालित, लगभग 400 गर्भवती हुई लाभान्वित
कानपुर नगर - जनपद के हर्षनगर क्षेत्र की रहने वाली 28 वर्षीय रेनू जब गर्भवती हुई तब आयरन फॉलिक एसिड की गोलियों का सेवन करने के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञों द्वारा सलाह दी गयी। उन्होंने आयरन की गोलियों का सेवन नहीं किया जिसका नतीजा यह रहा जब तीसरी तिमाही में उनकी जाँच हुई तब उनका हिमोग्लोबोन की मात्रा 6.9 थी जो की एक खतरे का संकेत था। तभी उन्हें जिला महिला अस्पताल में संचालित डे केयर एनीमिया वार्ड में भर्ती कर आयरन सुक्रोज के तीन डोज़ चढ़ायी गयीं और बी12 का इंजेक्शन भी लगा। नतीजा यह रहा की डिलीवरी के समय उनका हीमोग्लोबिन 10 हो गया जिससे उनकी डिलीवरी में कोई परेशानी नहीं हुई और अब उन्होंने एक स्वस्थ शिशु को जन्म दिया।
यह कहानी तो एक मात्र उदाहरण है। ऐसी कई महिलायें है जो गर्भावस्था के दौरान लापरवाही बरतने के साथ ही अपना ख्याल नहीं रखतीं जिसका नतीजा यह होता है की या तो उन्हें डिलीवरी के समय कई परेशानियां उठानी पड़ती है , या उन्हें मजबूरन खून चढ़ाया जाता है। ऐसी सभी गर्भवती जिनको दूसरी या तीसरी तिमाही में जांच के दौरान खून की कमी पता चलती है उन्हें जिला महिला अस्पताल में संचालित डे केयर एनीमिया वार्ड मदद कर रहा है। पिछले वर्ष जुलाई माह में डे केयर एनीमिया वार्ड की शुरुआत की गयी थी। तब से अब तक लगभग 400 गर्भवतियों को इससे लाभान्वित किया जा चुका है।
जिला महिला अस्पताल की प्रमुख अधिक्षिका डॉ सीमा श्रीवास्तव बताती हैं कि प्रसव के दौरान प्रसूता एवं नवजात को किसी प्रकार की परेशानी का खतरा गर्भावस्था के दौरान बेहतर स्वास्थ प्रबंधन पर निर्भर करता है। गर्भावस्था में बेहतर शिशु विकास एवं प्रसव के दौरान होने वाली रक्त स्त्राव के प्रबंधन के लिए महिलाओं में पर्याप्त मात्रा में खून होना जरूरी है। ऐसे में एनीमिया प्रबंधन के लिए प्रसव पूर्व जांच के प्रति महिलाओं की जागरूकता ना सिर्फ एनीमिया रोकथाम में सहायक होती है, बल्कि सुरक्षित मातृत्व भी सुनिश्चत करती है।
डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि एनीमिया की पहचान हिमोग्लोबीन लेबल जांच करने के बाद की जाती है। इसे तीन भागों में बांटा गया है। पहला हिमोग्लोबीन लेबल 10 ग्राम से ज्यादा है तो इसी सामान्य मानकर दवाइयां दी जाती हैं। हिमोग्लोबीन 7 ग्राम से 10 ग्राम होता है उसे मॉडरेट कहते हैं। यदि हिमोग्लोबीन 7 ग्राम से नीचे है तो उसे सीवियर एनीमिया माना जाता है। हिमोग्लोबीन 7 ग्राम से 10 ग्राम के बीच रहता है तो दूसरी या तीसरी तिमाही में उस महिला को डे केयर एनीमिया वार्ड में आयरन सूक्रोज का इंजेक्शन दिया जाता है।
मुख्य चिकित्सा अधीक्षिका डॉ रूचि जैन का कहना है की स्वास्थ्य विभाग द्वारा गर्भवती महिलाओं में खून की कमी को पूरा करने के लिए गर्भवती महिलाओं को आयरन और कैल्शियम की दवाओं का सेवन करने की सलाह दी जाती है। आयरन की कमी से शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है और हीमोग्लोबिन कम होने से शरीर में आक्सीजन की कमी होने लगती है। इसकी वजह से कमजोरी और थकान महसूस होती है, इसी स्थिति को एनीमिया कहते हैं।
आयरन फोलिक एसिड की 180 और कैल्शियम की 360 गोलियों का सेवन जरुरी : चिकित्सालय प्रबंधक डॉ. दरखशा परवीन का कहना है कि प्रसव को स्वस्थ और सुरक्षित बनाने के लिए गर्भवती अपने क्षेत्र की आशा कार्यकर्ता और एएनएम के बराबर संपर्क में रहें। उनके द्वारा दी जाने वालीं आयरन फोलिक एसिड की 180 और कैल्शियम की 360 गोलियों का सेवन अवश्य करें। यदि गर्भावस्था के दौरान रक्तस्राव होना, खून की कमी यानि कमजोरी या थकान महसूस हो, बुखार आना, पेडू में दर्द या योनि से बदबूदार पानी आना, उच्च रक्तचाप यानि अत्यधिक सिरदर्द, झटके आना या दौरे पडऩा और गर्भ में पल रहे शिशु का कम घूमना जैसे खतरे के लक्षण नजर आएं तो 102 एंबुलेंस की मदद से स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र या जिला महिला अस्पताल जाकर जांच अवश्य कराएं।