“जहाँ चाह-वहां राह” की अद्भुत मिसाल पेश की विभा ने



  • चिकित्सक की सलाह पर स्वास्थ्य लाभ के उद्देश्य और बच्चों की छुट्टियों के साथ सामंजस्य करते हुए विभा शर्मा ने धर्म, आस्था, विश्वास व आत्मविश्वास की अद्भुत मिशाल पेश की
  • अत्यंत कम डिग्री वाले रोहतांग में बर्फ के बीच सादगी और भक्ति संग पति की लम्बी उम्र की कामना से विधिवत वटसावित्री की पूजा का भी निभाया धर्म
  • स्थानीय लोगों, पर्यटकों और मीडिया ने सफ़ेद चादर सी बर्फ के बीच कौतूहलवश पूजा की पूरी प्रक्रिया को जाना और समझा

पुत्र आदित्य और पुत्री उन्नति की गर्मी की छुट्टियों में रोहतांग जाने की इच्छा पूरी कर बखूबी माँ का दायित्व निभाने और इसी दौरान अत्यंत कम डिग्री वाले रोहतांग में पति की लम्बी उम्र के लिए वटसावित्री के व्रत-पूजन को लेकर ग्रेटर नोएडा की विभा शर्मा बड़े ही ऊहापोह में थीं। इसके साथ ही चिकित्सक के बताये अनुसार वहां जाकर स्वास्थ्य लाभ भी लेना था। इन दायित्वों को सफलतापूर्वक निभाने की दिली इच्छा से पूरे भरोसे व विश्वास से वह जहाँ खाने-पीने की बच्चों की पसंद की चीजें सहेजकर रख रहीं थीं वहीँ पूजा की सारी सामग्री भी एक अलग बैग में करीने से सजा रहीं थीं। रोहतांग के लिए निकलने के साथ ही उन्होंने मन ही मन ईश्वर का स्मरण किया और यही कामना की कि प्रभु मेरे भरोसे और विश्वास को सफल बनाना।

रास्ते में पुत्र और पुत्री की चहक और ख़ुशी को देखकर वह फूले नहीं समा रहीं थीं। उनके पति मुकेश कुमार शर्मा भी बच्चों को पूरे रास्ते वहां की भौगोलिक स्थिति के बारे में बताने के साथ ही बीच-बीच में पढ़ाई-लिखाई और भविष्य की बातों में मशगूल थे। रोहतांग पहुंचकर सभी वहां के मनोरम प्राकृतिक दृश्य को देखकर आश्चर्य चकित थे और उसका खूब आनन्द भी उठा रहे थे। इसे देखकर विभा संतुष्ट थीं कि चलो बच्चों की ख्वाहिश तो पूरी हुई। इस दौरान वह जिस ओर भ्रमण को निकलतीं तो बरगद के वृक्ष की भी तलाश में रहतीं क्योंकि वटसावित्री की पूजा बरगद के वृक्ष को रक्षा सूत्र बांधकर पूरी किये जाने की मान्यता है। हालांकि उस बर्फ की चादर में ढके पहाड़ पर दूर-दूर तक बरगद के वृक्ष नजर नहीं आये। उन्होंने जब यह बात अपने पति मुकेश कुमार शर्मा से साझा की तो उन्होंने भी बहुत तलाश की और स्थानीय लोगों से भी जानकारी हासिल की कि वहां पर कहीं बरगद का वृक्ष मिल जाए। इसमें असफल रहने पर उन्हें सूझा कि क्यों न आस-पास किसी नर्सरी की तलाश की जाए जहाँ बरगद का पौधा मिल जाए। उन्होंने इंटरनेट की मदद से ऑनलाइन नर्सरी की खोज शुरू की तो पता चला कि नेटवर्क की दिक्कत के चलते इंटरनेट नहीं चल पा रहा था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और एक ऐसे स्थल पर पहुंचे जहाँ नेटवर्क पूरी तरह काम कर रहा था। उसकी मदद से पता चला कि वहां से करीब 50 किलोमीटर दूर एक एरोमा नर्सरी है, जहाँ पर बरगद का पौधा मिल सकता है फिर क्या था मानो उनकी तलाश पूरी हुई। दुर्गम पहाड़ियों को पार करते हुए उस नर्सरी तक पहुंचें, जहाँ उन्हें बरगद का पौधा मिल गया। तलाश पूरी होने की ख़ुशी पूरे परिवार के चेहरे पर साफ़ झलक रही थी।

इस तरह एक तरफ माँ का दायित्व निभाने के साथ पति की दीर्घायु की कामना से बर्फ के ऊपर बर्फ़बारी के बीच जब वह भारतीय नारी की वेशभूषा में साड़ी पहनकर पूजा शुरू की तो वहां से गुजर रहे लोग बड़े ही कौतूहल से उन्हें देखकर रूककर यह जानना चाह रहे थे कि आखिर यह किसकी पूजा है और किसलिए की जाती है। धीरे-धीरे स्थानीय लोगों व मीडिया को भी इसकी जानकारी हुई तो वह भी वहां पहुंचकर विभा से बात की और पूरी कथा को ध्यान से विस्तारपूर्वक सुना। इस तरह बरगद के पौधे को रक्षा सूत्र बांधते हुए वह मन ही मन ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित कर रहीं थीं कि प्रभु आपने एक साथ माँ और पत्नी का धर्म निभाने की ताकत देते हुए मेरे विश्वास और भरोसे को कायम रखा ..... शुक्रिया।

एकाएक हुआ सेलिब्रिटी होने का एहसास : विभा और उनका परिवार बताता है कि अपने धर्म और पूजा पाठ को निभाने के दौरान किसी को इतने ध्यान से देखना और वटसावित्री की पूजा सकुशल सम्पन्न होने के बाद व्रत-पूजन से जुड़ी छोटी-छोटी चीजों पर स्थानीय लोगों, पर्यटकों और मीडिया की बातचीत से एकाएक लगा कि इस वक्त वह किसी बड़ी सेलिब्रिटी से कम नहीं हैं। इस तरह एक ऊहापोह में शुरू हुई यात्रा ने एक बहुत ही सुखद पलों और यादों को समेटे ग्रेटर नोएडा आकर ख़त्म हुई। वहां से लौटकर जब वह इस पूरे वृत्तांत का जिक्र अपनी सहेलियों और रिश्तेदारों से करती हैं तो सभी बड़े ही चाव से सुनते हैं और उनका यही सुनने को मन उत्सुक रहता है ...फिर क्या हुआ।