लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाना व परोक्ष धूम्रपान महिलाओं में फेफड़े के कैंसर का प्रमुख कारण : डा. सूर्यकान्त



  • केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में फेफडे़ के कैंसर पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित

लखनऊ । पूरी दुनिया में एक अगस्त को फेफड़े के कैंसर के प्रति जागरूकता दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष फेफड़े के कैंसर दिवस की थीम है- ’’क्लोज द केयर गैप : एवरी वन डिजर्व एसेस टू कैंसर केयर’’। इसी क्रम में गुरूवार को किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में कैंसर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया।

रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त, डॉ. संतोष कुमार, डॉ. अजय कुमार वर्मा, डॉ. आनंद श्रीवास्तव, डॉ. अंकित कुमार तथा विभाग के जूनियर डॉक्टर्स इस कार्यक्रम के दौरान उपस्थित रहे। विभाग में फेफड़े के कैंसर के भर्ती मरीजों के परिजन एवं अन्य बीमारियों के मरीजों के परिजन तथा ओपीडी में आए हुए समस्त रोगियों व परिजनों ने भी इस जागरूकता कार्यक्रम में भाग लिया। इस मौके पर इंडियन सोसाइटी फॉर स्टडी ऑफ लंग कैंसर के एडवाइजरी बोर्ड के मेंबर डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि फेफड़े का कैंसर दुनिया में सबसे खतरनाक कैंसर माना जाता है क्योंकि इसकी मृत्यु दर बहुत ज्यादा है। दुनिया में फेफडे़ के कैंसर के 20 लाख मरीज प्रतिवर्ष होते हैं जिसमें से 18 लाख कैंसर के मरीजों की मृत्यु होती है। भारत में भी लगभग एक लाख फेफडे़ के कैंसर के मरीज सामने आते हैं जिसमें लगभग 85 हजार की मृत्यु प्रतिवर्ष हो जाती है। डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि फेफड़े के कैंसर में ज्यादा मृत्युदर इसलिए होती है क्योंकि शुरू में फेफड़े के कैंसर की बीमारी का पता नही लग पाता है, इसके लक्षण टीबी व अन्य बीमारी से मिलते जुलते हैं जिसके कारण जानकारी के अभाव में ऐसे रोगियों को टीबी का इलाज व अन्य इलाज चलता रहता है। इससे फेफड़े के कैंसर की पहचान बहुत देर से हो पाती है। इस कारण फेफड़े के कैंसर में 80 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में तीसरी या चौथी स्टेज में पहचान हो पाती है।

 फेफडे़ का कैंसर तेजी से फैलता है, चूँकि फेफड़े में रक्त शुद्धि के लिए आता है और रक्त शुद्धिकरण की प्रक्रिया में ऑक्सीजन के साथ साथ कुछ कैंसर की कोशिकाऐं भी चली जाती हैं जिसके कारण कैंसर का फैलाव दूसरे अंगों में अन्य कैंसर की तुलना में ज्यादा होता है। इसके कारण जब कैंसर चारों तरफ फैल जाता है तो इसको चौथी स्टेज या अंतिम स्टेज का कैंसर कहते हैं और इसका प्रभावी इलाज उपलब्ध नहीं है। इसीलिए मृत्यदर ज्यादा होती है। यह सभी को मालूम है कि फेफड़े का कैंसर ज्यादातर धूम्रपान या धूल, धुआं और अन्य विषैले तत्वों के प्रभाव से होता है। पुरुषों में चूंकि धूम्रपान ज्यादा है इसलिए पुरुषों में फेफड़े का कैंसर ज्यादा होता है, लेकिन महिलाओं में भी फेफड़े का कैंसर पाया जाता है, इसके दो प्रमुख कारण हैं। महिलाओं में पहला प्रमुख कारण है कि ज्यादातर अभी भी हमारे देश की गरीब महिलाऐं लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाती हैं। एक दिन में लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने पर 100 बीड़ी/सिगरेट के बराबर धुआं निकलता है जो उनके फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। दूसरा कारण महिलाओं को परोक्ष धूम्रपान या पेसिव स्मोकिंग बहुत होती है। घर के अंदर अगर कोई पुरूष धूम्रपान कर रहा है तो महिलाओं को परोक्ष धूम्रपान होता है। इसी तरह बाजार में या ऑफिस में अगर कोई पुरुष धूम्रपान कर रहा है तो उसके धुएं से भी परोक्ष धूम्रपान होता है। बढ़ते धूम्रपान तथा वायु प्रदूषण, खाने पीने की खराब आदतों के कारण भी फेफड़े का कैंसर जो कि उम्रदराज लोगों को पहले हुआ करता था, इधर कुछ वर्षों से युवाओं में भी होने लगा है। यह एक चिंता का विषय है।

फेफड़े के कैंसर से बचाव के लिए धूम्रपान नही करना चाहिए, वायु प्रदुषण से बचना चाहिए, ऐसे सभी कार्य जहां धूल, धुआं होता है उन कार्यो से बचना चाहिए। महिलाओं को परोक्ष धूम्रपान से बचना चाहिए और अभी भी जो महिलाए लकड़ी के चूल्हे पर खाना बना रही हैं, उन्हें उज्जवला योजना का फायदा उठाकर एलपीजी कनेक्शन लेना चाहिए और उसी से खाना बनाना चाहिए वही सुरक्षित है।