लॉकडाउन इम्युनिटी एवं स्ट्रेस बूस्टर : घर में रहते हुए बदली दिनचर्या की वजह से तनाव होना स्वाभाविक है , अगर आप भी महसूस कर रहे हैं तनाव तो ज़रूर करें योग - डॉ अमरजीत यादव



लखनऊ 09  अप्रैल 2020  यह कहना है लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रवक्ता एवं समन्वयक डॉ अमरजीत यादव का I वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व समुदाय, स्वास्थ्य के संक्रमण कालीन काल से गुजर रहा है। लॉकडाउन के कारण जनसमुदाय को घरों में रहना आवश्यक एवं अनिवार्य है। योग विद्या की मान्यता के अनुसार शरीर एक विलक्षण चिकित्सक है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता एव स्वतः ठीक होने की क्षमता को विकसित करने के लिए योग महत्त्वपूर्ण साधन है क्योंकि योग का अभ्यास मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक स्तर को विकसित करता है, योग के अभ्यास से रक्त संचार, पाचन, निष्कासन, पोषण, श्वसन से सम्बन्धित क्रियाएँ सुचारु से सम्पन्न होने  लगती हैं।

  • बच्चों के लिए 07 से 18 के मध्य

          योगासन
बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए पवनमुक्तासन, जानुशीर्षासन, शलभासन एवं हलासन विशेष रूप से प्रभावी है। इनके अभ्यास से बच्चों में रक्त संचार, नर्वस सिस्टम, श्वसन तंत्र, पाचन तंत्र से सम्बन्धित क्रियायें सुचारू रूप से प्रभावित होती है। सम्पूर्ण शरीर में चेतना का प्रवाह स्थापित होता है। बच्चों की प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है।

         प्राणायाम
श्वांस के माध्यम से प्राप्त की गयी वातावरण की आँक्सीजन को प्राणवायु कहा जाता है, शरीर में ऑक्सीजन की समुचित मात्रा रहने पर प्रतिरोध क्षमता उन्नत बनी रहती है। उपरोक्त लाभ के लिये बच्चों को नाड़ी शोधन, भसि़्त्रका तथा उज्जायी प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। इन अभ्यासों से फेफड़ों की कार्य क्षमता एवं रक्त में ऑक्सीजन का संचार बढ़ता है।

        मुद्रा एवं आहार
योग विद्या के अनुसार मुद्रा के अभ्यास से मन पर नियंत्रण तथा इम्युनिटी विकसित होती है। जिनमें ज्ञान मुद्रा तथा काकी मुद्रा का अभ्यास उपयोगी साबित होता है।  बच्चों की इम्युनिटी को बनाये रखने के लिए कम मसालेदार तथा कम तेल के प्रयोग से तैयार किया गया भोजन देना चाहिए। तथा जंकफूड तथा फास्टफूड से परहेज करना चाहिए।

  • बुजुर्गों के लाभार्थ योगाभ्यास

उम्र के एक निश्चित पड़़ाव पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य की अपेक्षा कम हो जाती है। प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाने  की दशा में किसी भी प्रकार के बैक्टीरिया एवं वायरस के संक्रमण की संभावना बढ़़ जाती है। संक्रमण के विरुद्ध अपनी प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने के लिए बुजुर्गों को निम्नवत् योगाभ्यास करना चाहिए।

         योगासन
बुजुर्गों की इम्युनिटी को विकसित करने के लिए वज्रासन, सुप्तवज्रासन, शषांकासन तथा वक्रासन उपयोगी है। ताड़ासन के अभ्यास से मेरुदण्ड तथा माँसपेशियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बुजुर्गों के लिए इन आसनों के साथ ही भुजंगासन का भी अभ्यास करना चाहिए। शरीर की क्षमता अनुरूप हो तो सूर्य नमस्कार का अभ्यास भी संस्तुत  है।

         प्राणायाम
प्राणायाम प्रक्रिया से श्वांस नलिकाओं की तथा फेफड़ों की कार्यक्षमता में बढ़ोत्तरी होती है। शरीर द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता बढ़ है। परिणामतः इम्युनिटी विकसित होने लगती है।  इस क्रम में निम्नलिखित प्राणायाम संस्तुत किया गया है-
अनुलोम-विलोम प्राणायाम तथा कफ प्रवृत्ति के बुजुर्गों के लिए सूर्यभेदी प्राणायाम अपनी क्षमतानुसार करना चाहिए।

        मुद्रा एवं आहार
मुद्राओं के समुचित अभ्यास से शरीर में चेतना का प्राकृतिक प्रवाह होकर शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता मेंं बृद्धि होती है। बुजुर्गों को खीचरी मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए। शरीर की क्षमता एवं इम्युनिटी को विकसित करने के लिए बुजुर्गों को रेशेदार फल एवं सब्जियों का प्रयोग करना चाहिए। गरिष्ठ भोजन से बचना चाहिए। पर्याप्त मात्रा में जल का सेवन आवश्यक है। विटामिन ‘‘सी’’ वाले आहार जैसे- ऑवला, नींबू, संतरा, टमाटर आदि ताजे फल व सब्जियाँ, अंकुरित अनाज की मात्रा बढ़ा देना चाहिए।

  • 19 से 45 वर्ष के जनसामान्य हेतु योगाभ्यास

योगासनों के अभ्यास से शरीर की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है, क्योंकि इस अभ्यास से माँसपेशियों पर  प्रभाव पड़़ता है। उनमें लचीलापन बढ़़ता है तथा रक्त संचार की क्रिया तीव्र होती है। इसके लिए निम्न आसन उपयोगी हैं। तथा इनके अभ्यास का क्रम भी निम्नलिखित प्रकार से होगा।
योगिक सूक्ष्म व्यायाम
सूर्यनमस्कार

         प्राणायाम
उक्त आसनों के पश्चात कपालभांति, नाड़ीशोधन या अनुलोम-विलोम, भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।

        मुद्रा एवं आहार
जीवनीय शक्ति के विकास के लिए प्राणायाम के बाद विपरीत करनी मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए। संक्रमण से बचाव के लिए सरल एवं सात्विक आहार लेना चाहिए जो आसानी से पच जाये। हरी सब्जियों का रस प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए रक्त का जीवनदाता होता है। इस समय सब्जियों का रस सेवन से प्राकृतिक रूप से इम्युनिटी में वृद्धि होगी।

इम्युनिटी विकसित करने की पृष्ठभूमि में डॉ अमरजीत यादव द्वारा योगाभ्यास को (1) बच्चों के लिए (2) बुजुर्गो (3) जनसाधारण इन तीन वर्गों में विभक्त करके प्रस्तुत किया गया है। प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के क्रम में इंगित करना है कि आसन से शारीरिक क्षमता, प्राणायाम से प्राण संचरण क्षमता, मुद्रा तथा ध्यान से मानसिक शक्ति का विकास होता है। आहार तथा निद्रा प्रतिरोधक क्षमता का आधार है। अतः इन क्रियाओं का अभ्यास अपने कमरे बालकनी या घर के लॉन में सुगमता पूर्वक किया जा सकता है तथा इस औषधि विहीन प्रणाली को अपनाकर कार्यक्षमता तथा इम्युनिटी में वृद्धि की जा सकती है।

 

 

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