- विश्व क्षय रोग दिवस (24 मार्च) पर विशेष
ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) यानि क्षय रोग, सदियों से मानव समाज का शत्रु रहा है। दुनिया के इतिहास में सर्वप्रथम ऋग्वेद में इसकी विस्तृत व्याख्या मिलती है और इसके उपचार के साधन बताये गये हैं। ’’त्वा हवीसा मुन्कामी जिवनयकम। अग्नात्यतद्यूटा राजयक्ष्मा।।’’ अर्थात “हे अग्नि! हम तुम्हें हवन के द्वारा पुकारते हैं। तुम हमें जीवन प्रदान करो और राजयक्ष्मा (क्षय रोग) तथा अन्य अज्ञात रोगों से रक्षा करो“। (ऋग्वेद 10,161,1)। मिश्र देश की भूमि के पिरामिडों में 8000 वर्ष पुराने सुरक्षित शवों में आज भी टीबी रोग के चिन्ह मिलते हैं। जर्मनी के वैज्ञानिक डा. राबर्ट कॉक ने 24 मार्च 1882 को टी.बी. के जीवाणु की खोज की थी, जिसके लिए 1905 में नोबेल पुरूस्कार भी प्रदान किया गया। इस खोज की याद में हर साल 24 मार्च को हम विश्व टी.बी. दिवस के रूप में मनाते हैं। इस वर्ष की थीम “हां! हम टीबी को समाप्त कर सकते हैं: प्रतिबद्ध रहें, निवेश करें, परिणाम दें“ है।
भारत विश्व में टी.बी. रोग से सबसे अधिक प्रभावित देश है। विश्व में प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ रोगी टी.बी. से ग्रसित होते हैं जिसमें से 28 लाख भारत में होते हैं। इसी को देखकर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2025 तक “टी.बी. मुक्त भारत“ की घोषणा 13 मार्च 2018 को की थी। उसके बाद से ही निःक्षय पोषण योजना, टी.बी. नोटिफिकेशन का विस्तार, सक्रिय टी.बी. खोज अभियान आदि योजनाओं की शुरूआत हुई। 2020 में, आरएनटीसीपी का नाम बदलकर राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) कर दिया गया, ताकि भारत सरकार के 2030 के वैश्विक लक्ष्य से पांच साल पहले 2025 तक भारत में टीबी को खत्म करने के उद्देश्य पर जोर दिया जा सके। साथ ही टी.बी. रोगियों की निःशुल्क जांच एवं उपचार तथा उपचार के दौरान 1000 रुपये प्रतिमाह पोषण भत्ता जैसी सुविधायें दी जा रही हैं। इसी का परिणाम है कि विश्व टी.बी. रिपोर्ट 2024 में भारत के टी.बी. मुक्त अभियान की प्रशंसा की गयी है। देश में वर्ष 2015 से 2023 तक टीबी के रोगियों की संख्या में 17.7 प्रतिशत की उल्लेखनीय गिरावट आई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक क्षय रोग रिपोर्ट 2024 के अनुसार यह दर वैश्विक औसत गिरावट 8.3 प्रतिशत से दोगुनी है। इसके अलावा पिछले 10 वर्षों में भारत में टीबी के कारण होने वाली मौतों में भी 21.4 प्रतिशत की उल्लेखनीय कमी आई है। भारत सरकार के द्वारा टीबी उन्मूलन कार्यक्रम को और गति प्रदान करने हेतु विशेष 100 दिवसीय सघन टीबी अभियान दिनांक 7 दिसम्बर 2024 से चलाया जा रहा है, जो दिनांक 24 मार्च 2025 (विश्व क्षय रोग दिवस) तक चलेगा। इस अभियान का मकसद टीबी के मामलों का कम करना, मृत्यु दर को घटाना और नए संक्रमण को रोकना है।
भारत में टी.बी. को अभी तक समाप्त नहीं कर पाने की कई चुनौतियां है, जैसे कि टी.बी. का जीवाणु कई वर्षों तक व्यक्ति के अन्दर निष्क्रिय अवस्था में बिना किसी लक्षण के रह सकता है, तथा अनुकूल परिस्थिति के आने पर यह पुनः सक्रिय होकर बीमारी को पैदा करता है। सामाजिक और मानवीय कारण जो अनुकूल परिस्थिति को बढ़ावा देते हैं उनमें प्रमुख है- टी.बी. के रोगी के सम्पर्क में रहना, कुपोषण, एचआईवी, मधुमेह तथा फेफड़े, लिवर, हृदय, किडनी की बीमारियां, कैंसर, अंग प्रत्यारोपण के रोगी, इम्यूनोसप्रेसिव दवाऐं, महिलाओं में कम उम्र में गर्भधारण और बार-बार गर्भधारण, परदाप्रथा, गरीबी, भीड़, धूम्रपान तथा अन्य नशे, वायु प्रदूषण, साफ-सफाई की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ न ले पाना, अनियमित दवा लेना आदि। अनियमित दवा लेने के कारण एमडीआर व एक्सडीआर टीबी जैसी घातक परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती है। टीबी के साथ-साथ उसकी सह बीमारियों का भी उचित उपचार करना आवश्यक है, ताकि मृत्यु दर को कम किया जा सके। मृत्युदर कम करने में एचआईवी, डायबिटीज, कुपोषण, क्रोनिक लीवर डिज़ीज, क्रोनिक किडनी डिज़ीज, सीओपीडी आदि बीमारियाँ टी.बी. के साथ होने पर जटिलताएँ बढ़ा देती हैं। इन स्थितियों में रोगी की प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही कम होती है, जिससे उपचार कठिन हो जाता है और मृत्युदर अधिक हो सकती है।
टी.बी. रोग से मुक्ति के लिये राजनीतिक इच्छा शक्ति से लेकर सामाजिक जागरूकता में बदलाव की जरूरत है। कुछ प्रमुख सुझाव इस प्रकार है :
- एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान टी.बी. की बीमारी को उचित प्राथमिकता देना। इस सम्बन्ध में नेशन्ल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) को सोच में बहुत ही विरोधाभास है क्योंकि एनएमसी ने एम.बी.बी.एस के पाठ्यक्रम से टी.बी. एवं चेस्ट रोग विभाग को अनिवार्य विषय की सूची से बाहर कर दिया है, जब कि एनएमसी का एक गजट नोटीफिकेशन यह कहता है कि नये मेडिकल कालेजों में भी ड्रग रेजिसेन्ट टी.बी. के उपचार की व्यवस्था हो। ज्ञात रहे कि जब नये मेडिकल कालेजों में टी.बी. एवं चेस्ट विभाग ही नही होगा तो ड्रग रेजिसेन्ट टी.बी. का उपचार कौन करेगा। अतः सबसे पहले टीबी एवं चेस्ट रोग विभाग को मेडिकल कालेजों की अनिवार्य सूची में रखा जाना चाहिए।
- टी.बी. की वर्तमान मृत्युदर एक लाख जनसंख्या पर 24 है उसे घटाकर 3 करना होगा। ज्ञात रहे कि टी.बी. के साथ-साथ अन्य बीमारियां होती है तो मृत्युदर बढ़ जाती है। अतः एचआईवी, डायबिटीज, कुपोषण, क्रोनिक लीवर डिजीस, क्रोनिक किड़नी डिजीस, सीओपीडी आदि का उपचार भी प्राथमिकता के आधार पर करना होगा। टीबी के गम्भीर मरीजों के लिए समान्य आईसीयू में भर्ती नही किया जाता है अतः ऐसे मरीजों के लिए सभी मेडिकल कालेजों में अलग से आईसीयू की व्यवस्था होनी चाहिए।
- टी.बी. की दवाओं को लिखने का अधिकार सिर्फ प्रशिक्षण प्राप्त चिकित्सक को ही होना चाहिए।
- टी.बी. नियंत्रण के लिए डीटीओ (जिला क्षय रोग अधिकारी) के साथ-साथ डीएम (जिला मजिस्ट्रेट) और सीएमओ (मुख्य चिकित्सा अधिकारी) को भी जिम्मेदारी निभाने के साथ सामंजस्य बनाये रखना होगा।
- सोशल मीडिया और गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से समाज को शिक्षित और जागरूक बनाना होगा क्योंकि अभी भी टी.बी. की बीमारी से ग्रसित रोगियों (विशेष कर महिलाएं व बच्चों) को सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि शादीशुदा महिलाओं को तलाक दे दिया जाता है या अकेला छोड़ दिया जाता है, तथा टी.बी. के शिकार बच्चों के साथ दूसरे बच्चे न तो साथ बैठते है न ही खेलते हैं।
भारत के प्रधानमंत्री के 2025 के टी.बी. मुक्त भारत के सपने को हम सभी को अपना सपना बनाना होगा। इसे ठीक जैसे पोलियों और कोरोना के समय किया गया वैसे ही जनआंदोलन का रूप देना होगा। “टी.बी. मुक्त भारत“ के लिए देश में “प्रधान से प्रधानमंत्री“ सभी को टी.बी. के खिलाफ लड़ना होगा तभी प्रधानमंत्री का यह सपना साकार हो सकेगा।