नवजात शिशु की करें समुचित देखभाल ताकि बचपन रहे खुशहाल



  • शुरू के 42 दिनों तक शिशु को होती है विशेष देखभाल की जरूरत
  • कुपोषण से बचाव के लिए शिशु को मां का दूध बेहद जरूरी

बाराबंकी - नवजात की समुचित देखभाल उसके बचपन को खुशहाल बनाने के साथ ही शिशु मृत्यु दर को भी कम करने में सहायक है। राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019 -21 के अनुसार जनपद में प्रति 1000  इसी को ध्यान में रखते हुए जिले में 15 से 21 नवम्बर तक नवजात शिशु देखभाल सप्ताह मनाया जा रहा है। इस दौरान आशा कार्यकर्ता गृह भ्रमण कर मां को खानपान के साथ-साथ बच्चे को शुरू के छह माह तक केवल स्तनपान कराने, बच्चे को छूने से पूर्व हाथ धोने सहित खतरे के लक्षणों को पहचानने  की जानकारी दे रहीं हैं।

अपर मुख्य चिकित्साधिकारी एवं आरसीएच के नोडल डा केएनएम त्रिपाठी ने बताया नवजात शिशु के जन्म के 42 दिनों तक विशेष देखभाल की जरूरत होती है । इसके लिए जनपद की 000 आशा कार्यकर्ताओं को गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षित किया गया है । प्रशिक्षित कार्यकर्ता माताओं को छह माह तक शिशु को सिर्फ स्तनपान के अलावा हाथ धुलने के सही तरीके व स्वच्छ हाथ, स्वस्थ नवजात का महत्व बताती हैं । इस दौरान वह ठंड से बचाने के लिए नवजात को कंबल में लपेटने के सही तरीके तथा कंगारू मदर केयर देकर कम वजन के शिशुओं का प्रबंधन करना भी परिवार को सिखाती हैं । स्वास्थ्य कार्यकर्ता नवजात का वजन, तापमान व सांसों के संक्रमण को पहचानने के लिए शिशु द्वारा ली गईं एक मिनट में सांसों की गिनती करती हैं। तेज सांस या खतरे के कोई चिन्ह मिलने पर वह इलाज के लिए शिशुओं को स्वास्थ्य केंद्र भेजती हैं।

डीसीपीएम सुरेन्द्र कुमार ने बताया कि गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल के लिए आशा कार्यकर्ताओं को समय समय पर प्रशिक्षित किया जाता है। इसके अलावा आशा कार्यकर्ताओं की दक्षता बढ़ाने के लिए आशा संगिनी , ब्लॉक व जिले के स्वास्थ्य अधिकारी सहित सहयोगी संस्थाएं भी गृह भ्रमण के दौरान उनका सहयोग करते हैं।  

ब्लॉक निन्दूरा के बडडोपुर की आशा कार्यकर्ता रीता वर्मा ने बताया कि प्रसव के बाद नवजात की बेहतर देखभाल के लिए वह संस्थागत प्रसव की स्थिति में 6 बार जन्म के 3, 7, 14, 21, 28 एवं 42 वें दिवस पर भ्रमण करती हैं। वहीं गृह प्रसव की स्थिति में शिशु जन्म के पहले दिन  से ही भ्रमण किया जाता है। इस दौरान शिशु में खतरे के कोई चिन्ह मिलने पर इलाज के लिए उन्हे स्वास्थ्य केंद्र भेजती हैं। उन्होने बताया कि इस वर्ष 12 बीमार शिशुओं को इलाज के लिए स्वास्थ्य केंद्र भेज चुकी हैं।

मोहसंड ब्लॉक की आशा पूनम ने बताया कि जन्म के तुरंत बाद ही माँ का पहला पीला गाड़ा दूध (कोलस्ट्रम ) देने के लिए परिवार को प्रेरित करती हैं। साथ ही गृह भ्रमण के दौरान शिशु को छह माह तक केवल माँ का दूध ऊपर से पानी भी नहीं पिलाने की जानकारी गर्भवती व उसके परिवार को देती है। बंकी ब्लॉक में असैनी की आशा कार्यकर्ता मंजू ने बताया नवजात शिशु की आवश्यक देखभाल के लिए नवजात को तुरंत न नहलाने की जानकारी के साथ नवजात की नाभि सूखी एवं साफ़ रखने की सलाह देती हैं। जानलेवा बीमारियों से सुरक्षा के लिए शिशु को टीका लगवाने में परिवार का सायोग करती हैं। मंजू ने बताया कि शिशु का तापमान स्थिर रखने व कम वजन के शिशुओं को कंगारू मदर केयर दिलाने में माँ का सहयोग करती हैं।

 खतरे के इन लक्षणों को न करें अनदेखी :

  • शिशु को सांस लेने में तकलीफ हो।
  • शिशु स्तनपान करने में असमर्थ हो।
  • शरीर अधिक गर्म या अधिक ठंडा हो।
  • शरीर सुस्त हो जाए।
  • शरीर में होने वाली हलचल में अचानक कमी आ जाए।