जागरूकता की अलख जगाएं, एचआईवी/एड्स पर नियंत्रण पाएं : मुकेश शर्मा



विश्व एड्स दिवस (01 दिसम्बर) पर विशेष : समुदाय के हर वर्ग की सहभागिता से ही वर्ष 2030 तक लक्ष्य पाना संभव

लखनऊ। एचआईवी/एड्स यानि ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस/एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसिएंसी सिंड्रोम के संक्रमण पर नियंत्रण पाने का लक्ष्य वर्ष 2030 तय किया गया है। समुदाय के हर वर्ग की सहभगिता और जागरूकता से ही इसको मुमकिन बनाया जा सकता है। खासकर युवाओं में जागरूकता की अलख जगाना बहुत जरूरी है क्योंकि वही देश का भविष्य हैं। किशोरावस्था से ही उनको यह बताना जरूरी है कि एचआईवी/एड्स के बारे में पूर्ण और सही जानकारी ही इससे बचाव का जरिया है।   

पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल इंडिया (पीएसआई-इंडिया) के एक्जेक्युटिव डायरेक्टर मुकेश कुमार शर्मा का कहना है कि एचआईवी/एड्स के प्रति जागरूकता और उससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने के लिए ही हर साल एक दिसम्बर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है और विभिन्न कार्यक्रमों और गतिविधियों के माध्यम से एचआईवी/एड्स से बचाव के जरूरी सन्देश जन-जन तक पहुंचाये जाते हैं। इसके साथ ही इस बीमारी से लड़ने के लिए वैश्विक एकजुटता प्रदर्शित की जाती है। इस साल विश्व एड्स दिवस की थीम है – “सही रास्ता अपनाएँ-मेरा स्वास्थ्य,मेरा अधिकार”, जिसका उद्देश्य हर किसी को हर जगह उन संसाधनों और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच आसान बनाना है जो एचआईवी संक्रमण को रोक सकते हैं। इसके साथ ही खास तौर पर इस पर भी ध्यान दिया जाना है कि एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के साथ किसी भी तरह का कोई भेदभाव न होने पाए।

श्री शर्मा का कहना है कि आज विश्व एड्स दिवस पर जन-जन तक यह सन्देश पहुंचाना बहुत जरूरी है कि एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन सम्बन्ध से संक्रमण का फैलाव होता है। इसलिए कंडोम का हर बार सही इस्तेमाल करने से इससे बचाव हो सकता है। संक्रमित रक्त या रक्त उत्पाद से सबसे तेज संक्रमण होने का जोखिम रहता है क्योंकि संक्रमित रक्त चढ़ने से मनुष्य के खून में सीधा सम्पर्क हो जाता है। इसलिए रक्त हमेशा सरकारी या लाइसेंस शुदा ब्लड बैंक से ही लेना चाहिए और रक्त लेते समय यह जरूर सुनिश्चित करना चाहिए कि रक्त एचआईवी से मुक्त है। इसके अलावा सिरिंज के इस्तेमाल के बाद उसके अगले हिस्से में संक्रमित व्यक्ति के रक्त का कुछ अंश रह जाता है, जिसके पुनः इस्तेमाल करने से एचआईवी वायरस स्थानांरित हो जाता है। इसलिए डिस्पोजल सुई का ही इस्तेमाल किया जाए। इसी तरह सिरिंज से किए जाने वाले नशे में इस्तेमाल की जाने वाली संक्रमित सुई के साझा प्रयोग से भी वायरस फैलता है। एचआईवी संक्रमित मां से उसके होने वाले बच्चे को संक्रमण का जोखिम रहता है। गर्भवती को प्रसव पूर्व एचआईवी जांच और संस्थागत प्रसव के लिए जरूर प्रेरित करना चाहिए। शादी से पूर्व यौन सम्बन्ध बनाने से बचना चाहिए। असुरक्षित सुई से टैटू बनवाने से भी बचना चाहिए। एचआईवी ग्रसित की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ने से कुछ अन्य बीमारियाँ जैसे टीबी भी घेर लेती हैं। इसीलिए एचआईवी ग्रसित की टीबी जांच जरूरी है।

आज के दिन यह भी जानना जरूरी है कि एचआईवी सामाजिक एवं सामान्य मेलजोल से नहीं फैलता है। हाथ मिलाने, गले मिलने, एक साथ घर में रहने, कपड़ों के आदान-प्रदान, शौचालय या स्वीमिंग पूल के साझा इस्तेमाल से, साथ खाना खाने और मच्छर या कीड़े-मकोड़ों के काटने से एचआईवी नहीं फैलता है। एचआईवी की स्थिति का पता खून की जाँच से होता है। भारत सरकार की एचआईवी जाँच नीति के तहत कहा गया है कि जाँच स्वेच्छा से हो, जांच के पहले और बाद में परामर्श जरूर प्रदान किया जाए और जांच रिपोर्ट को हरहाल में गोपनीय रखा जाए।