- परोक्ष धूम्रपान, वायु प्रदूषण और लकड़ी का चूल्हा बड़ी समस्याएं हैं सांस के रोगियों के लिए : डॉ सूर्यकांत
लखनऊ । केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में अमेरिका की डॉ. फरहा खान का व्याख्यान आयोजित किया गया। डॉ. फरहा भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक एवं प्रसिद्ध चिकित्सक हैं। व्याख्यान का आयोजन सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस फॉर ड्रग रेजिस्टेंस टीबी केयर तथा पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन सेंटर (प्रदेश का पहला रिहैबिलिटेशन सेंटर) के द्वारा आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में लगभग 100 चिकित्सक, शोध छात्र तथा स्वास्थ्य कार्यकर्ता उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में विभाग के पूर्व चिकित्सकों, छात्रों तथा अमेरिका के चिकित्सकों ने ऑनलाइन प्रतिभाग किया । लगभग 400 से अधिक लोगों ने ऑनलाइन रूप से प्रतिभाग किया।
डॉ. फरहा ने बताया कि उनके देश में दूसरे देशों से कई बार टीबी के गंभीर रोगी उनके अस्पताल में आ जाते हैं, जिनका इलाज करने का उनका अनुभव है लेकिन वह चाहती हैं कि किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग से टीबी के बारे में और अनुभव प्राप्त करें । उन्होंने अपने कैरियर के एक महत्वपूर्ण एक्स डीआर टीबी रोगी की चर्चा की और रोगी के रोग का प्रस्तुतीकरण दिया। इस अवसर पर उन्होंने सीओपीडी के बारे में भी अमेरिका में होने वाले शोध और नवीन उपचार की जानकारी से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि हम हर गंभीर रोगी को वेंटिलेटर पर नहीं रखते हैं और अगर रखना भी पड़ता है तो उसको कम समय के लिए रखते हैं। सांस के हर रोगी को वेंटिलेटर से फायदा नहीं पहुंचता है और न ही हर सांस के गंभीर रोगी को वेंटिलेटर पर रखना चाहिए। जिस रोगी के फेफड़ों में वेंटिलेटर को झेलने की क्षमता ही नहीं है ऐसे रोगियों को वेंटिलेटर पर नहीं रखना चाहिए, लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रखने से वेंटिलेटर एसोसिएटेड निमोनिया होने का खतरा हो जाता है। जिससे कि रोगी की तबीयत और खराब हो सकती है।
इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक और विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि डॉ. फरहा को इतने लंबे कार्यकाल में केवल कुछ महत्वपूर्ण एक्स डीआर टीबी रोगी के उपचार करने का अनुभव है। वहीं पूरी दुनिया के 29 प्रतिशत एक्स डीआर टीबी के रोगी भारत में पाए जाते हैं और भारत, अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को इसके संबंध में अपने अनुभव के आधार पर प्रशिक्षित भी कर सकता है।
डॉ सूर्यकांत ने बताया कि आज विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत पूरी दुनिया भारत के टीबी नियंत्रण कार्यक्रम का लोहा मानने लगी है और ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2024 के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत के टीबी नियंत्रण कार्यक्रम की प्रशंसा की है जिसमें यह बताया गया है कि दुनिया में भारत के सबसे ज्यादा टीबी के रोगी पाए जाते हैं फिर भी भारत ने 17.3 प्रतिशत टीबी के रोगियों की संख्या कम करने में सफलता पाई है और टीबी की मृत्यु दर को भी 18 प्रतिशत कम करने में सफलता पाई है। डॉ. फरहा ने भारत के टीबी नियंत्रण कार्यक्रम की सफलता के लिए बधाई दी। इस आवसर पर विशिष्ट अतिथि प्रो. कमर रहमान जो कि इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टॉक्सिकोलॉजिकल रिसर्च की पूर्व उपनिदेशक रही हैं, ने बताया कि वायु प्रदूषण सांस की बीमारियों के लिए बहुत बड़ा खतरा है. उन्होंने सभी लोगों को धूमपान न करने तथा वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की सलाह दी।
केजीएमयू की कुलपति सोनिया नित्यानन्द ने रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग को इस अंतरराष्ट्रीय व्याख्यान के लिए बधाई दी और डॉ फरहा व डॉ सूर्यकांत से यह आग्रह किया कि टीबी और सांस के रोगों पर आपस में सहयोग करें और एक दूसरे के शोध कार्यों की जानकारी साझा करें। ज्ञात रहे कि डॉ. फरहा लखनऊ की मूल निवासी हैं और अमेरिका में सांस के रोगों की एक बड़ी विशेषज्ञ मानी जाती हैं।
इस अवसर पर विभाग के चिकित्सक डा.आर ए एस कुशवाहा, डा. राजीव गर्ग, डा. अजय कुमार वर्मा, डा. आनन्द श्रीवास्तव, डा. ज्योति बाजपेई एवं कार्यक्रम के को आर्डिनेटर डा. पंखुडी, डा. शिवम श्रीवास्तव , समस्त जूनियर डाक्टर्स, शोध छात्र उपस्थित रहें। कार्यक्रम के अंत में आयोजन सचिव डॉ अंकित कुमार ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया ।