खांसी के सिरप का गलत चयन पहुंचा सकता है मरीज को नुकसान : डॉ. सूर्यकान्त



  • इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के तत्वावधान में खांसी पर कार्यशाला आयोजित

लखनऊ । खांसी के सिरप को लेकर देशभर में बहस और विवाद जारी है। ज्ञात हो कि हाल ही में देश के कुछ हिस्सों में गलत खांसी के सिरप के उपयोग के कारण कुछ बच्चों की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद से देशभर के चिकित्सकों ने खांसी के उपचार और खांसी के सिरप के सही उपयोग को लेकर जन-जागरूकता अभियान तथा चिकित्सकों को प्रशिक्षण देने की पहल शुरू की है।

सबसे पहले एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया ने केजीएमयू के रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर ट्रेनिंग एंड मैनेजमेंट का दर्जा देते हुए खांसी के सही उपचार और उपयुक्त कफ सिरप के चयन से संबंधित प्रशिक्षण की जिम्मेदारी सौंपी है। इसके लिए केजीएमयू की कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद ने रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त को बधाई दी है।

इसी संबंध में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एक राष्ट्रव्यापी कार्यशाला का आयोजन किया, जिसकी मेजबानी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, लखनऊ शाखा ने की। इस कार्यशाला के मुख्य वक्ता के रूप में केजीएमयू के रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त को आमंत्रित किया गया।

डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि खांसी का कारण जानने के लिए रोगी का विस्तृत इतिहास और परीक्षण किया जाना चाहिए। खांसी के कारण के अनुसार ही कफ सिरप या अन्य दवाओं का प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में कई कफ सिरप मानकों पर खरे नहीं उतरे हैं तथा कुछ सिरप में प्रयुक्त दवाएँ एक-दूसरे के विरोधाभासी हैं। ऐसे सिरप पर भारत सरकार ने वर्ष 2023 के गजट नोटिफिकेशन के माध्यम से प्रतिबंध लगाया है।

देश के पहले सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर ट्रेनिंग एंड मैनेजमेंट ऑफ कफ सिरप के प्रभारी डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि कुछ सिरप में खांसी को दबाने वाली और खांसी को बढ़ाकर बलगम निकालने वाली दोनों प्रकार की दवाएँ एक साथ मिली होती हैं, जो कि गलत है। उन्होंने कहा कि डेक्स्ट्रोमेथोर्फन, जो खांसी दबाने की दवा है, को अम्ब्रोक्सोल या गुआइफेनेसिन जैसी दवाओं के साथ मिलाकर नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि ये एक-दूसरे के विरोधाभासी प्रभाव वाली दवाएँ हैं।

डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि कोडीन युक्त कफ सिरप पर प्रतिबंध है, अतः चिकित्सकों को ऐसे सिरप रोगियों को नहीं देने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ कफ सिरप में ऐसे तत्व पाए गए हैं जो यकृत (लिवर) और गुर्दों के लिए हानिकारक होते हैं। इसलिए चिकित्सकों को सिरप का उपयोग करने से पहले उसका विस्तृत अध्ययन अवश्य करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि चिकित्सकों को उपचार करते समय रोगी के जीवन की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। कफ सिरप का उद्देश्य रोगी की खांसी को ठीक करना है, न कि उसे नुकसान पहुंचाना।

डॉ. सूर्यकान्त ने आगे बताया कि अस्थमा और सांस के रोगियों को खांसी दबाने वाले सिरप नहीं लेने चाहिए। ऐसे रोगियों को बलगम निकालने और श्वासनलियों को खोलने वाले सिरप का प्रयोग करना चाहिए। साधारण सर्दी-खांसी में केवल भाप (स्टीम) लेना पर्याप्त होता है, पहले सप्ताह में सिरप की आवश्यकता नहीं पड़ती। यदि खांसी एक सप्ताह से अधिक बनी रहती है, या साथ में बुखार और सांस फूलने की समस्या है, तो मेडिकल स्टोर से सिरप लेने के बजाय अपने डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

यह कार्यशाला इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, लखनऊ की अध्यक्ष डॉ. सरिता सिंह तथा सचिव डॉ. संजय सक्सेना के नेतृत्व में रिवर बैंक कॉलोनी, लखनऊ स्थित इंडियन मेडिकल एसोसिएशन भवन में आयोजित की गई।

कार्यशाला की शुरुआत में सचिव डॉ. संजय सक्सेना ने मुख्य वक्ता डॉ. सूर्यकान्त का परिचय दिया और सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय पदाधिकारी, मुंबई से डॉ. जयंत लेते ने खांसी जैसे महत्वपूर्ण विषय पर इस राष्ट्रव्यापी कार्यशाला के आयोजन के लिए लखनऊ शाखा को बधाई दी। उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला को सुनने के लिए देशभर के इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सदस्यों को आमंत्रित किया गया था।

इस आयोजन में लगभग 200 चिकित्सकों ने भाग लिया। कार्यक्रम में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, लखनऊ के निर्वाचित अध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार अस्थाना, पूर्व अध्यक्ष डॉ. बी.एन. गुप्ता, डॉ. जी.पी. कौशल और डॉ. जे.डी. रावत प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। कार्यशाला में लखनऊ के अतिरिक्त देश के अन्य हिस्सों से भी चिकित्सकों ने ऑनलाइन भागीदारी की। कार्यक्रम के अंत में आईएमए लखनऊ के सचिव डॉ. संजय सक्सेना ने धन्यवाद ज्ञापन किया।