लखनऊ - आशियाना निवासी 23 वर्षीय अदिति का किसी भी काम में मन नहीं लगता था । वह निजी कंपनी में काम करती थी उसने काम पर जाना छोड़ दिया, खाना तक नहीं खाती और उसके मन में बार-बार यह ख्याल आता कि वह जब स्कूटर चलाएगी तो उसका एक्सीडेंट हो जाएगा और वह मर जाएगी | ये समस्या 2015 के आसपास होनी शुरू हुयी थी उसके परिवार के सदस्यों ने उसको मानसिक रोग विशेषज्ञ को दिखाया तो उन्होंने सिजोफ्रेनिया से ग्रसित बताया | अभी ट्रीटमेंट चल रहा है और वर्तमान में स्थिति काफी बेहतर है |
बलरामपुर जिला अस्पताल के मानसिक रोग के विभागाध्यक्ष डा. देवाशीष बताते हैं कि यदि परिवार में किसी को अकारण भय लगने लगे, वह शक करने लगे भले ही उसका जीवन साथी ही क्यों न हो, अपनी ही दुनिया या विचारों में खोया रहे, ऐसा लगने लगे कि लोग विचार पढ़ सकते हैं , दूसरों को न सुनाई देने वाली आवाजें सुनाई दें, मन में अजीब प्रकार के विचार आयें , बेमतलब अर्थ हीन बातें करे, गलत मान्यता पर टिका रहे और बहुत समझाने पर भी नहीं समझे तो यह सिजोफ्रेनिया हो सकता है | यह बीमारी 20 से 50 वर्ष के आयुवर्ग के लोगों को प्रभावित करती है |
डा. देवाशीष बताते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह बीमारी दुनिया में 2.4 करोड़ लोगों को है या यूँ कहे की 300 में से एक व्यक्ति को प्रभावित करती है | यह अन्य मानसिक विकारों की तरह सामान्य नहीं है | बलरामपुर जिला अस्पताल की मानसिक रोग की ओपीडी में 100 में 4 से 5 रोगी इस बीमारी से पीड़ित होते हैं |
सिजोफ्रीनिया मधुमेह एवं हृदय रोग की तरह ही एक रोग है |यह व्यक्तिगत, सामाजिक, शैक्षिक और व्यावसायिक कामकाज सहित जीवन के सभी क्षेत्र को प्रभावित करता है | यह बीमारी व्यक्ति के विचार, अनुभूति एवं व्यवहार पर बहुत असर करता है | इसमें व्यक्त की एकाग्रता और एवं कामकाज के तरीकों दोनों पर असर पड़ता है | व्यक्ति वास्तविक एवं कल्पना में अनुभव नहीं कर पाता है | रोगी के लिए भावनाओं को व्यक्त करना और समाज में उचित व्यवहार करना करना कठिन हो जाता है | मरीज वह महक सूंघ सकता है, वह चीज देख सकता है तथा उन चीजों को महसूस करता है या छू सकता है जो वास्तव में हैं ही नहीं |
सिजोफ्रेनिया का कोई विशिष्ट कारण ज्ञात नहीं है | ऐसा माना जाता है कि जीन और पर्यावरणीय कारकों के बीच परस्पर क्रिया से यह हो सकता है | मनोसामाजिक कारक इसके इलाज को प्रभावित कर सकते हैं जैसे परिवार का बिखरना, बेरोजगारी, सामाजिक विषमता के कारण पलायन और कमजोर सहन |इसके अलावा भारी मात्रा में भांग के सेवन से इसके विकार का खतरा बढ़ जाता है |
इस बीमारी को लेकर समाज में बहुत सी भ्रांतियाँ प्रचलित हैं कि सिजोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति बहुत हिंसक होता है, शादी कर देने से मरीज की समस्याओं का समाधान हो जाएगा, व्यक्ति पर किसी ने झाड़फूँक कर दिया है, व्यक्ति आलसी एवं कामचोर है , उसे बार –बार समझाने पर भी वह अपने विचारों पर अडिग रहता है यानि वह जिद्दी है, इलाज के दौरान दी जाने वाली दवाइयाँ नींद की गोलियां होती हैं जिनका व्यक्ति बाद में आदी हो जाता है तथा इस बीमारी का इलाज बिना भर्ती किये संभव नहीं है जबकि ऐसा कुछ नहीं है |
सिजोफ्रेनिया को दवाओं और परामर्श के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है | दवाओं का नियमित सेवन और उपचार बहुत जरूरी होता है क्योंकि बीच में दवा का सेवन न करने से मानसिक लक्षण फिर से प्रकट हो जाते हैं | मरीजों द्वारा उपचार जारी रखने में देखभालकर्ता की भूमिका अहम होती है | वह रोगी को नियमित रूप से उपचार लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं | देखभालकर्ता को मरीज़ का ध्यान रखते हुए संयम बरतना चाहिए, ऐसे में मरीज़ को बहुत प्यार की ज़रुरत होती है व मरीज के विश्वास को समर्थन देना चाहिए | देखभालकर्ता से ऊंची आवाज में न बोलें, उनके अनुभवों से इनकार न करें, मरीज से आसान, स्पष्ट और धीरे-धीरे बोलें, बहस न करें, उनकी आलोचना न करें | जरूरत पड़ने पर सवालों या कही गई बातों को दोहराएं ताकि मरीज ठीक से समझ सके |