राष्ट्रीय बालिका दिवस पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में आयोजित हुई गोष्ठी



लखनऊ - राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर मंगलवार को जिले सहित सभी  सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों(सीएचसी) पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित हुए। इसी क्रम में मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में गोष्ठी आयोजित हुई। गोष्ठी की अध्यक्षता गर्भधारण एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध), अधिनियम(पीसीपीएनडीटी एक्ट), 1994 के नोडल अधिकारी डा. के.डी.  मिश्रा ने की। उन्होंने कहा कि हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य देश में बालिकाओं के प्रति होने वाले भेदभाव के प्रति लोगों को जागरूक करना है। साल 2008 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा इस दिवस की शुरुआत की गई थी।

सरकार द्वारा बालिकाओं के लिए “बेटी बचाव, बेटी पढ़ाओ,”  “सुमंगला  योजना”  जैसे कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं  है। लड़के की चाह में परिवार वाले भ्रूण हत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। इसे रोकने के लिए पीसीपीएनडीटी एक्ट,1994 लागू किया गया है और मुखबिर योजना चलायी जा रही है है। इसके साथ ही  चिकित्सीय गर्भसमापन संशोधन अधिनियम (एमटीपी एक्ट) 2021 भी लागू किया गया है।
 
इन सभी योजनाओं का परिणाम है कि बाल लिंगानुपात में वृद्धि हुई है। यह वृद्धि हमें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 के आंकड़ों पर में दिखाई देती है। एनएफएचएस-5 के अनुसार लखनऊ में 1000 बालकों पर  981 बालिकाओं ने जन्म लिया है जबकि एनएफएचएस-4 (2015-16)के अनुसार यह आंकड़ा 870 था। प्रदेश के आंकड़ों पर नजर डालें तो एनएफएचएस -5 के अनुसार 1000 बालकों पर 941 बालिकाओं ने जन्म लिया है जबकि एनएफएचएस-4 के अनुसार यह आंकड़ा 903 था।

नोडल अधिकारी ने बताया कि  पीसीपीएनडीटी एक्ट,1994 के तहत गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जांच करना या करवाना कानूनन दंडनीय अपराध है। इसके साथ ही www.pyaribitia.com पर अल्ट्रासाउंड केंद्र द्वारा फॉर्म-एफ भरकर अपलोड किया जाता है । इसमें अल्ट्रासाउंड करने और करवाने वाले का सारा विवरण होता है और एक पंजीकरण नंबर भी होता है । इस माध्यम से अल्ट्रासाउंड करवाने के उद्देश्य का भी पता चलता है ।

एक बेहतर भविष्य के लिये बालिकाओं को सशक्त बनाना आवश्यक है, तभी एक स्वस्थ समाज बन सकता है । सरकार की ओर से चल रही "मुखबिर योजना' से जुड़कर लिंग चयन/भ्रूण हत्या/अवैध गर्भपात में संलिप्त व्यक्तियों/ संस्थानों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही में सरकार की सहायता की जा सकती है और इसके एवज में सरकार से सहायता प्राप्त की जा सकती है ।

लिंग निर्धारण के लिए प्रेरित करने तथा अधिनियम के प्रावधानों / नियमों के उल्लंघन के लिए कारावास एवं सजा का प्रावधान है । लिंग जांच करके बताने वाले को 5 साल की सजा या एक लाख का जुर्माना है और जो व्यक्ति भ्रूण लिंग जांच करवाता है उस को 5 साल की सजा या 50,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

अवंतीबाई जिला महिला अस्पताल की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. दीपिका सेठ ने एमटीपी संशोधन एक्ट, 2021 के प्रावधानों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि महिलाओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि  गर्भ समापन सरकारी अस्पतालों अथवा पंजीकृत स्वास्थ्य केंद्रों पर किसी प्रशिक्षित चिकित्सक से ही करवाएं। अधिनियम के अनुसार यौन उत्पीड़न या बलात्कार की शिकार, नाबालिग अथवा गर्भावस्था के दौरान वैवाहिक स्थिति में बदलाव हो गया हो (विधवा हो गई हो या तलाक हो गया हो) या फिर गर्भस्थ शिशु असमान्य हो ऐसी स्थिति में महिला 24 सप्ताह की अवधि के अंदर गर्भपात करा सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि 20 सप्ताह तक के गर्भ समापन के लिए एक पंजीकृत चिकित्सक और 20 से 24 सप्ताह के गर्भ समापन के लिए दो पंजीकृत चिकित्सकों की राय आवश्यक होती है ।

इस मौके पर जिला सर्विलांस अधिकारी डा. निशांत निर्वाण, जिला स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी योगेश रघुवंशी, पीसीपीएनडीटी के जिला समन्वयक शादाब, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के समन्वयक सुधीर, जिला प्रोबेशन अधिकारी की प्रतिनिधि वर्तिका, सभी समुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की महिला रोग विशेषज्ञ, सरकारी एवं निजी क्षेत्रों के अल्ट्रा साउंड विशेषज्ञ और मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के अन्य अधिकारी कर्मचारी उपस्थित रहे।

इसी क्रम में बक्शी का तालाब सीएचसी पर स्वयं सेवी संस्था साईं ट्रस्ट द्वारा 18 से 24 जनवरी तक सीएचसी पर जन्म लेने वाली सभी बालिकाओं को कंबल और किट का वितरण किया गया।