निमोनिया से बचाव के लिए शीघ्र पहचान और निदान जरूरी



  • विश्व निमोनिया दिवस(12 नवंबर) पर विशेष

लखनऊ - हर साल निमोनिया के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 12 नवंबर को विश्व निमोनिया दिवस किसी न किसी थीम के साथ आयोजित होता है । इस साल की थीम है- एवरी ब्रेथ काउंट्स: स्टॉप निमोनिया इन इट्स ट्रैक।

प्रमुख सचिव चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पार्थ सारथी सेन शर्मा ने अपने सन्देश में कहा कि हम सभी को मिलकर निमोनिया के प्रति जागरूकता फैलानी चाहिए। स्वास्थ्य सेवा की बेहतर पहुंच सुनिश्चित करने के लिए हमें टीकाकरण और सही पोषण को प्राथमिकता देनी होगी। बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल हम सभी की जिम्मेदारी है। हम सब मिलकर इस जानलेवा बीमारी को हराने में सफल हों सकते हैं।

मिशन निदेशक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन डा. पिंकी जोवेल का कहना है कि नवजात स्वास्थ्य  देखभाल सुनिश्चित करने के लिए जिला अस्पताल स्थित एसएनसीयू  के स्टाफ को बबल सी-पैप का प्रशिक्षण दिया जा रहा है जिससे कि यहाँ भर्ती शिशुओं को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ मिलता है। यह सांस लेने की समस्या के उपचार की नई विधि है।

महाप्रबन्धक, बाल स्वास्थ्य राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन डा. सूर्यांशु ओझा ने बताया कि पांच साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु निमोनिया के संक्रमण से होती है । प्रदेश में इस आयु के कम से कम 15 फीसद बच्चों की मौत निमोनिया से होती है । इसका प्रमुख कारण कुपोषण और गरीबी है | इस स्थिति से उबरने के लिए और पाँच साल से कम आयु के बच्चों में निमोनिया से होने वाली मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से  “SAANS” (Social Awareness and Action to Neutralize Pneumonia) अर्थात सांस कार्यक्रम चल रहा है। जिसके तहत प्रोटेक्ट, प्रीवेंट एवं ट्रीटमेंट(पीपीटी) –बचाव, रोकथाम एवं उपचार ) की रणनीति को अपनाया गया गया है। इस रणनीति के आधार पर निमोनिया का प्रबन्धन आसानी से किया जा रहा है। इसको लेकर  आशा कार्यकर्ता से लेकर उच्च स्वास्थ्य इकाईयों के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया गया है।   निमोनिया की समय से पहचान एवं इलाज से इन मौतों को रोका जा सकता है।

राज्य स्तरीय बाल स्वास्थ्य प्रशिक्षक एवं वरिष्ठ बाल रोग चिकित्सक डा.सलमान बताते हैं कि अगर बच्चे की सांस तेज चले तो तुरंत ही प्रशिक्षित चिकित्सक को दिखाएँ। अगले दिन का इंतजार न करें  और न ही किसी तरह का कफ सिरप दें । जरा सी चूक भारी पड़ सकती है।

क्या है निमोनिया : यह फेफड़ों में होने वाला संक्रमण है जो बैक्टीरिया, वायरस एवं फंगस आदि के कारण होता है। इससे  फेफड़ों की वायु कोष्ठिका में सूजन हो जाती है या उसमें तरल पदार्थ भर जाता है। कई बार निमोनिया गंभीर रूप धारण कर लेता है। निमोनिया के लक्षण सर्दी जुकाम के लक्षणों से बहुत हद तक मिलते हैं। इसलिए जब भी ऐसा लगे तो पहले इसके लक्षणों को पहचान लेना बहुत जरूरी है। जिससे कि समय से इसका प्रबंधन किया जा सके।

निमोनिया के लक्षण हैं : बच्चे की सांस तेज चल रही हो, छाती अंदर की ओर धंस रही हो, तेज बुखार खांसी, सुस्ती या बेहोशी आए, बच्चा स्तनपान न कर पा रहा हो या कुछ भी न पी पा रहा हो,सब कुछ उलटी कर दे। इसके अलावा  सांस की गिनती से निमोनिया की पहचान की जा सकती है।  दो माह तक के शिशु की सांस की गति प्रतिमिनट 60 से, एक साल तक के बच्चे की सांस की गति प्रतिमिनट 50 से ज्यादा और एक से पांच साल तक के शिशु की सांस की गति 40 से ज्यादा हो तो तुरंत हो आशा कार्यकर्ता को दिखाएँ या निकटतम स्वास्थ्य केंद्र पर जाएँ ।

बचाव : सर्दियों में बच्चे को गर्म कपड़े पहनाकर रखें । उन्हें नंगे पाँव न चलने दें । नवजात को कपड़े से ढककर रखें । घरों में धुएं से बचने के लिए एलपीजी गैस का उपयोग करें क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार घरों में वायु प्रदूषण कम होने से निमोनिया होने की मृत्यु दर में कमी आई है।

इसके साथ ही बच्चे को जन्म से लेकर छह माह तक केवल स्तनपान कराएं| छह माह के बाद ऊपरी आहार शुरू कर देने से निमोनिया एवं निमोनिया हो जाने पर उसकी गंभीरता में कमी आती है । बच्चे को समय से विटामिन ए की खुराक देना, जिससे कि प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। बच्चे को खसरा, रूबेला, न्यूमोकॉकल कन्जुगेट वैक्सीन, पेंटावैलेन्ट के टीके लगवाने से बीमारी एवं मृत्यु का कारण  बनने वाले संक्रमण को बहुत कम किया जा सकता है।

इसके साथ ही खाना बनाने, बच्चे को खाना खिलाने, शौच के बाद, बच्चे का मल साफ करने के बाद हाथ साबुन और पानी से जरूर धोएं और साफ सफाई रखें । इससे काफी हद तक बीमारियों को रोक जा सकता है ।