जन-जन की भागीदारी, सुपोषण के लिए है जरूरी : डॉ हीरा लाल



  • पोषण माह में हर स्तर पर हो सुपोषित समाज के निर्माण की तैयारी

लखनऊ - देश के सम्पूर्ण विकास में एक स्वस्थ समाज की अहम् भूमिका होती है। इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले हम अपने गाँव को ही कुपोषण मुक्त बनाने की शुरुआत करें। इसके लिए यह एक सुनहरा मौका भी है क्योंकि सितम्बर माह को राष्ट्रीय पोषण माह के रूप में पूरे देश में मनाया जा रहा है। यह पोषण अभियान एक कार्यक्रम न होकर एक जन आन्दोलन और समग्र भागीदारी के रूप में हैं। इस कार्यक्रम को सही मायने में धरातल पर उतारने के लिए जरूरी है कि स्थानीय पंचायत प्रतिनिधि, स्कूल प्रबन्धन समितियां, सरकारी विभाग, सामाजिक संगठन आगे आएं और सामूहिक प्रयास से देश को कुपोषण मुक्त बनाएं। यह बातें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन-उत्तर प्रदेश के अपर मिशन निदेशक डॉ. हीरा लाल ने राष्ट्रीय पोषण माह की शुरुआत पर कहीं।

डॉ. हीरा लाल ने कहा कि इस अभियान की सफलता इसी में निहित है कि घर-घर पोषण का त्योहार मनाया जाए। पंचायत प्रतिनिधि हर बच्चे, किशोर-किशोरी, गर्भवती व धात्री महिला को निर्धारित पोषण सेवा का लाभ प्रदान करने के साथ उस बारे में जागरूक बनाएं। यह सुनिश्चित करें कि गाँव की किसी भी लड़की की शादी 18 साल की उम्र से पहले न हो, क्योंकि कम उम्र में शादी से जहाँ एक ओर उस लड़की का स्वास्थ्य प्रभावित होता है वहीँ जल्दी माँ बनने से कुपोषित बच्चे को जन्म देने की पूरी गुंजाइश भी रहती है। यह भी सुनिश्चित करें कि हर गर्भवती का संस्थागत प्रसव हो क्योंकि इसी में जच्चा-बच्चा की सुरक्षा निहित है। खुले में शौच पर पूरी तरह रोक लगाएं और लोगों को बीमारियों से बचाएं। इसके अलावा गाँव के लोगों को साग-सब्जी व पौधों को लगाने के लिए प्रेरित करें ताकि परिवार को हरी साग-सब्जियां आसानी से मिल सकें। सुरक्षित पेयजल और स्वच्छ वातावरण का भी ख्याल रखें। ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता व पोषण दिवस (वीएचएसएनडी) की नियमित बैठक से इन कामों को आसान बनाया जा सकता है।  

आंगनबाड़ी व आशा कार्यकर्ता दिखाएँ समझदारी : सुपोषण की अलख जगाने में आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ता महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा सकती हैं। इसके लिए जरूरी है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता केंद्र के साथ ही गृह भ्रमण के दौरान समुचित पोषण सम्बन्धी परामर्श नियमित रूप से प्रदान करें। बच्चों का नियमित और पूर्ण टीकाकरण सुनिश्चित करें, बच्चों के शारीरिक और बौद्धिक विकास की निगरानी करें और गर्भवती व नवजात शिशुओं की निगरानी के लिए नियमित गृह भ्रमण पर जोर दें। बच्चों का नियमित रूप से वजन करें और एमसीपी कार्ड कार्ड में दर्ज करें और लाल घेरे (कुपोषण) में आते ही निकटतम स्वास्थ्य केंद्र पर जाने के लिए प्रेरित करें। इसी तरह से आशा कार्यकर्ता हर गर्भवती की प्रसव पूर्व जाँच कराएँ और संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित करें। नवजात शिशु की देखभाल व धात्री महिला की निगरानी के लिए निर्धारित गृह भ्रमण सुनिश्चित करें। अति कुपोषित बच्चों और कम वजन के बच्चों की निगरानी के लिए हर महीने गृह भ्रमण कर और जरूरी परामर्श दें।  

स्कूल प्रबंधन समितियां व सामुदायिक रेडियो स्टेशन भी निभाएं जिम्मेदारी : स्कूल प्रबन्धन समितियां किशोर-किशोरियों को एनीमिया से बचाव के प्रति जागरूक बनाएं और बच्चों को साफ़-सफाई व स्वच्छता के प्रति सजग और जवाबदेह बनाएं ताकि उनका समग्र विकास सुनिश्चित हो सके। इसी तरह सामुदायिक रेडियो स्टेशन भी पोषण के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित कार्यक्रम तैयार कर उसे प्रसारित कर एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं।  कृषि से उपलब्ध स्थानीय पोषक आहारों के बारे में जागरूकता फ़ैलाने की उनकी मुहिम भी रंग ला सकती है। इसके अलावा खाना बनाने की स्थानीय विधि, भोजन की कैलोरी में वृद्धि तथा पौष्टिक आहार पर कार्यक्रम प्रस्तुत कर सुपोषित समाज बनाने में मददगार साबित हो सकते हैं।