स्कूलों नहीं, अब समुदाय में होगी फाइलेरिया की सैपलिंग



लखनऊ - संचरण मूल्यांकन सर्वेक्षण (टास) के तहत लिम्फेटिक फाइलेरिया की सैपलिंग अब स्कूलों के बजाय समुदाय में होगी। यह फैसला कोविड-19 के संक्रमण के कारण स्कूलों में लगातार कम बच्चों की उपस्थिति के कारण लिया जा रहा है। यह कहना है निदेशक, सीएचसी डॉ माला का। डॉ माला सोमवार को सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रीसर्च (सीफार) के प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित कर रही थी।

उन्होंने बताया कि समाज में लिम्फेटिक फाइलेरिया का संक्रमण आंकने के लिए अभी तक छात्र-छात्राओं की उनके शैक्षणिक संस्थान में ही उनका सैंपल लिया जाता था। लेकिन कोरोना काल में पहले तो शैक्षणिक संस्थान बंद थे। अब खुले भी तो अधिकांश संस्थानों में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति काफी काम है। इसलिए अब यह सैंपलिंग का कार्य समुदाय आधारित होगा। यह सैंपलिंग सालभर में एक बार चलने वाले राउंड मास ड्रग एड्मिनिस्ट्रैशन (एमडीए / आईडीए) के बाद होती है।

राज्य कार्यक्रम अधिकारी, फाइलेरिया डा0 वी0पी0 सिंह ने बताया कि रामपुर जनपद फाइलेरिया से पूरी तरह मुक्त हो गया है। मुझे पूरा विश्वास है कि रामपुर की तरह ही फाइलेरिया प्रभावित प्रदेश के अन्य  जनपद भी फ़ाइलेरिया रोग से जल्द ही मुक्त होंगे। इस कारण से टास के प्रथम चरण की की सफलता के बाद प्रदेश के रामपुर जनपद में एमडीए कार्यक्रम रोक दिया गया है।

डॉ तनुज शर्मा, राज्य समन्वयक, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि बीते कई वर्षों के एमडीए की तुलना में वर्तमान एमडीए कार्यक्रम की कवरेज 33 फीसद से बढ़कर 78 फीसद  हो गयी है। यह हम सभी के लिए अत्यंत ही उत्साहवर्धक है। यह आंकड़ा चिकित्सा  एवं  स्वास्थ्य विभाग के समस्त अधिकारियों, स्वास्थ्यकर्मियों, फ्रंटलाइन वर्कर्स और सहयोगी संस्थाओं के पारस्परिक समन्वय से किये गए  अथक प्रयासों का परिणाम है।

चार दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान पाथ संस्था के राज्य कार्यक्रम अधिकारी डॉक्टर शौएब अनवर ने फाइलेरिया के बारे में सीफार के प्रतिनिधियों को विस्तारपूर्वक जानकारी दी। इसमे वर्चुअल माध्यम से बीएमजीएफ़ से पूजा सहगल और पीसीआई से राजश्री ने भी संचार कौशल पर अपनी बात रखी।