जलवायु परिवर्तन के साथ कुपोषण की गंभीर चुनौती से निपटेंगी 35 उन्नत फसलें



स्वास्थ्य हो, उद्योग हो या फिर कृषि, अब केंद्र सरकार परंपराओं की पुरातन प्रथा को तोड़ते हुए विज्ञान को जोड़कर भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। खास तौर पर कृषि एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें इनोवेशन के आधार पर तरक्की की असीम संभावनाएं मौजूद हैं, इसी को ध्यान में रखकर पहले बायोफोर्टिफाइड जैसी उन्नत किस्मों की 70 फसलों के बीच किसानों को उपलब्ध कराए गए तो अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशेष गुणों वाली 35 फसलों की किस्मों की शुरुआत की। एक ओर यह फसलें जलवायु परिवर्तन की चुनौती से लड़ने में सक्षम हैं तो दूसरी ओर कुपाेषण के खात्मे में भी हैं असरदार।

गोवा की दर्शना पेडनेकर ने बचपन में ही अपने पिता के साथ खेती में हाथ बंटाकर शुरुआत की थी। पारंपरिक खेती में मुनाफे के साथ शुरुआत ने दर्शना को इसी क्षेत्र में मोड़ दिया। लेकिन बीते वर्ष कोविड महामारी के दौरान लॉकडाउन उनके लिए नई मुसीबत लेकर आया। नारियल की जिस खेती से उन्हें पहले अच्छा-खासा मुनाफा होता था, वो बेहद कम हो गया। आखिर में दर्शना ने नारियल की फूड प्रोसेसिंग की ओर कदम बढ़ाया। अब वे नारियल सुखा कर उसका तेल निकालकर बेचती हैं। 300 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बिकने वाले नारियल के इस तेल ने दर्शना की खेती को नया मुकाम दिया है। यही नहीं, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(आईसीएआर) से ट्रेनिंग लेने के बाद दर्शना अब अपनी 4 एकड़ की जमीन पर ही बर्मी कम्पोस्ट बनाने से लेकर धान और टमाटर व मिर्ची जैसी पारंपरिक फसलों की खेती नए तरीके से करती हैं। दर्शना कहती हैं, ''पारंपरिक खेती के बजाय इसमें बहुत मुनाफा है। ऊपर से केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और साथ ही प्रशिक्षण व अन्य मदद ने उन्हें नया रास्ता दिखाया है।''

दर्शना दरअसल, उस सोच की प्रतीक है, जिसमें विज्ञान को कृषि से जोड़कर नए इनोवेशन के रास्ते भारत को आत्मनिर्भर बनाने की ललक है। क्योंकि लंबे समय से चली आ रही पारंपरिक परिपाटी को इनोवेशन के सहारे ही बदला जा सकता है। भारत बीते 7 वर्षों में इसी रास्ते आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 सितंबर को आईसीएआर द्वारा विकसित 35 विशेष गुण वाली उन्नत किस्मों को राष्ट्र काे समर्पित करते हुए कहा , ''जब साइंस, सरकार और सोसायटी मिलकर काम करेंगे तो उसके नतीजे और बेहतर आएंगे। किसानों और वैज्ञानिकों का ऐसा गठजोड़, नई चुनौतियों से निपटने में देश की ताकत बढ़ाएगा।'' इन फसलों की किस्मों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने काफी रिसर्च के बाद तैयार किया है, इनके जरिए फसलों पर जलवायु परिवर्तन और कुपोषण के असर को कम किया जाएगा। प्रधानमंत्री ने रायपुर में राष्ट्रीय जैविक तनाव प्रबंधन संस्थान के नवनिर्मित परिसर का लोकार्पण किया। इस संस्थान की स्थापना जैविक संबंधी दिक्कतों को दूर करने में बुनियादी और रणनीतिक अनुसंधान करने, मानव संसाधन विकसित करने तथा नीतिगत सहायता प्रदान करने के लिए की गई है।

विशेष गुण वाली 35 फसलों की किस्में : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संस्थान ने जलवायु परिवर्तन और कुपोषण की चुनौतयों से निपटने में सक्षम विशेष गुणों वाली फसल किस्मों को 2021 में विकसित किया है। इनमें सूखे को बर्दाश्त करने वाली चने की किस्म बिल्ट और मोजर, अरहर, सोयाबीन की जल्दी पकने वाली किस्में, चावल की प्रतिरोधी किस्में और गेंहू, बाजरा, मक्‍का, चना, विनोमा, कुटटू, बिंगेटविन और भाबाविन की जैविक किस्में शामिल हैं। इनमें विशेष लक्षणों वाली किस्में भी शामिल हैं जो कुछ फसलों में पाये जाने वाले पोषण रोधी कारकों का समाधान करती हैं जो मानव और पशु स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन के महत्वपूर्ण बिंदु -

  • बीते 6-7 सालों में साइंस और टेक्नॉलॉजी को खेती से जुड़ी चुनौतियों के समाधान के लिए प्राथमिकता के आधार पर उपयोग किया जा रहा है। विशेष रूप से बदलते हुए मौसम में, नई परिस्थितियों के अनुकूल, अधिक पोषण युक्त बीजों पर हमारा फोकस बहुत अधिक है।
  • पिछले वर्ष ही कोरोना से लड़ाई के बीच में हमने देखा है कि कैसे टिड्डी दल ने भी अनेक राज्यों में बड़ा हमला कर दिया था। भारत ने बहुत प्रयास करके तब इस हमले को रोका था, किसानों का ज्यादा नुकसान होने से बचाया था।
  • किसानों को पानी की सुरक्षा देने के लिए, हमने सिंचाई परियोजनाएं शुरू कीं, दशकों से लटकी करीब-करीब 100 सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने का अभियान चलाया। फसलों को रोगों से बचाने के लिए, ज्यादा उपज के लिए किसानों को नई वैरायटी के बीज दिए गए।
  • MSP में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ हमने खरीद प्रक्रिया में भी सुधार किया ताकि अधिक-से-अधिक किसानों को इसका लाभ मिल सके। रबी सीजन में 430 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा गेंहूं खरीदा गया है।
  • किसानों को टेक्नोलॉजी से जोड़ने के लिए हमने उन्हें बैंकों से मदद को और आसान बनाया है। आज किसानों को और बेहतर तरीके से मौसम की जानकारी मिल रही है। हाल ही में अभियान चलाकर 2 करोड़ से ज्यादा किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड दिए गए हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण जो नए प्रकार के कीट, नई बीमारियां, महामारियां आ रही हैं, इससे इंसान और पशुधन के स्वास्थ्य पर भी बहुत बड़ा संकट आ रहा है और फसलें भी प्रभावित हो रही है। इन पहलुओं पर गहन रिसर्च निरंतर जरूरी है।
  • जब साइंस, सरकार और सोसायटी मिलकर काम करेंगे तो उसके नतीजे और बेहतर आएंगे। किसानों और वैज्ञानिकों का ऐसा गठजोड़, नई चुनौतियों से निपटने में देश की ताकत बढ़ाएगा।
  • किसान को सिर्फ फसल आधारित इनकम सिस्टम से बाहर निकालकर, उन्हें वैल्यू एडिशन और खेती के अन्य विकल्पों के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है।
  • साइंस और रिसर्च के समाधानों से अब मिलेट्स और अन्य अनाजों को और विकसित करना जरूरी है। मकसद ये कि देश के अलग-अलग हिस्सों में, अलग-अलग ज़रूरतों के हिसाब से इन्हें उगाया जा सके।

 

 

Source : New India Samachar