21वीं सदी, संचार और संवाद के जरिए क्रांतिकारी बदलाव ला रही है तो तेजी से बदलते परिदृश्य में मीडिया और टीवी चैनल्स की भूमिका भी बदल रही है। ऐसे में, लोकसभा और राज्यसभा टीवी के विलय और मंथन से अमृत महोत्सव वर्ष में निकला ‘संसद टीवी’ आधुनिक व्यवस्थाओं के हिसाब से खुद को नए माहौल में परिवर्तित कर रहा है, ताकि बन सके लोकतंत्र और जन प्रतिनिधियों के साथ आम लोगों की मुखर आवाज
भारतीय संसद यानी लोकतंत्र का मंदिर, जिसकी सीढ़ी पर 2014 में अपना कदम रखने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नतमस्तक होने वाली तस्वीर आज भी इसकी महत्ता का सुखद अहसास कराती है। बीते चंद वर्षों में संसदीय व्यवस्था में बदलाव के साथ-साथ कामकाज की गति और पारदर्शिता भी बढ़ी है। लेकिन यह भी समझना जरूरी है कि संसदीय व्यवस्था का मतलब केवल राजनीति नहीं है, बल्कि नीतियां भी है जो देश की दशा-दिशा निर्धारित करती है। इसी सोच के साथ फरवरी 2021 में लोकसभा टीवी एवं राज्यसभा टीवी के विलय का निर्णय लिया गया था और संसद टीवी के रूप में एकीकृत व्यवस्था की नींव रखी गई थी। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस और दूरदर्शन दिवस के मौके पर 15 सितंबर को संसदीय व्यवस्था को बेहतर ढंग से जनता तक ले जाने की शुरुआत हुई। इस चैनल का शुभारंभ उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने किया था । विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के जन-जन को समर्पित संसद टीवी की शुरुआत आजादी के अमृत महोत्सव के तहत हुई है जो हमारी संसद की श्रेष्ठ परंपराओं को बढ़ावा देता है। संसद टीवी देश के नागरिकों तक संसदीय गतिविधियों और महत्वपूर्ण जानकारियों को प्रभावी तरीके से पहुंचाएगा। साथ ही, अपने एकीकृत स्वरूप में संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करेगा। इससे जहां एक ओर गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार होगा, वहीं दूसरी ओर खर्च में भी कमी आएगी। नए कार्यक्रमों की श्रृंखला लोगों को देश की सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक पहलू से रू-ब-रू कराएगी तो देश की विकास यात्रा से लेकर विश्व परिदृश्य की जानकारियों से भी जोड़ेगी।
इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत लोकतंत्र की जननी है जहां लोकतंत्र केवल एक व्यवस्था नहीं बल्कि विचार है। संसद टीवी की महत्ता पर प्रधानमंत्री का कहना था कि जहां बेहतर व तथ्यपरक विषय वस्तु होती है, वहां लोग खुद ही जुड़ जाते हैं। यह बात जितनी मीडिया पर लागू होती है, उतनी ही देश की संसदीय व्यवस्था पर भी लागू होती है। उन्होंने इसे “कन्टेंट इज कनेक्ट” की संज्ञा दी। उनका मानना है कि यह बेहद जरूरी है कि सदन की कार्यवाही से आमजन खुद को जोड़ें। इसी सोच को ध्यान में रखकर संसद टीवी का खाका भी तैयार हुआ है और यह प्रयास निश्चित तौर से देश की लोकतांत्रिक जड़ों को और भी मजबूत करेगा।
Source : New India Samachar