लखनऊ - अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के पूर्व आज “ज्ञान और अनुभव का संगम: योग” विषय पर अंतर्राष्ट्रीय योग संगोष्ठी का आयोजन संस्थान परिसर में किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रो० मांडवी सिंह, कुलपति भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय, मुख्य वक्ता अनन्तश्री विभूषित महामंडलेश्वर स्वामी अभयानन्द सरस्वती जी महराज, श्रीलंका से डॉ. जुलाम्पिटिये पुण्यासार महास्थविर, संत प्रमोद दास, संस्थान के सदस्य भिक्षु शील रतन, भिक्षु देवानंद वर्धन, तरुणेश बौद्ध, सरदार मंजीत सिंह, अलोक, निदेशक संस्थान डॉ राकेश सिंह, डॉ धीरेंद्र सिंह, अमरेन्द्र त्रिपाठी सहित बौद्ध भिक्षु, छात्र-छात्राएं, अध्यापक, गणमान्य नागरिक एवं बौद्ध विद्वान तथा पत्रकार बंधु उपस्थित थे।
कार्यक्रम का आरंभ भगवान बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन से हुआ। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रो. मांडवी सिंह ने बताया कि प्राचीन समय में अपनी संस्कृति और समृद्धता के आधार पर भारत विश्व गुरु कहलाता था। भारत को विश्व गुरु बनाने में योग का महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे ज्ञान और शिक्षा का आधार योग ही है। योग सीधे-सीधे ज्ञान से जुड़ा था। जब ऋषि परम्परा में ज्ञान दिया जाता था तब उसके साथ विद्यार्थियों एवं शिक्षार्थियों को अनुभव कराया जाता था। आज हम शिक्षा तो दे रहे हैं, उनको उपाधि मिल रही है, इसके साथ-साथ शिक्षा एवं ज्ञान के साथ विद्यार्थियों एवं शिक्षार्थियों को अनुभव भी दिया जाना चाहिए।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता परमपूज्य अनन्तश्री विभूषित महामंडलेश्वर स्वामी अभयानन्द सरस्वती महाराज ने अपने आशीर्वचन में बताया कि ज्ञान और अनुभव के संयोग का नाम योग है। मन दुखी है, मन विक्षिप्त है तो मन को शांत करने की सबसे बड़ी दवाई योग है। मन के कारण ही हम दुखी होते हैं, जैसे हम सो गए तो मन शांत हो जाता है तब हमको सुख एवं दुःख का अनुभव नहीं होता अर्थात कर्मों में कुशलता का मतलब योग है साथ ही उन्होंने योग का स्वरुप क्या है, योग के मार्ग पर क्यों जायें और योग के मार्ग पर कैसे चलें इस पर विस्तार से प्रकाश डाला।
संस्थान के निदेशक डॉ राकेश सिंह जी ने संस्थान के गतिविधियों का संक्षिप्त परिचय देने के साथ-साथ पतंजलि के अष्टांग योग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि पर विस्तार से प्रकाश डाला और बताया कि विपश्यना और योग से मन पर नियंत्रण किया जा सकता है तथा यह भी बताया कि ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से आम जनमानस तक योग एवं विपश्यना पहुँचाने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के पूर्व कार्यक्रमों का शुभारम्भ किया गया है।
श्रीलंका से वेन डॉ जुलाम्पिटिये पुण्यासार महास्थविर जी ने विपश्यना विषय पर अपने विचारों में व्यक्त करते हुए बताया की मन को नियंत्रण में करना ही योग है, विपश्यना और योग से ही हम अपने मन में चल रहे सही और गलत धारणा का पता लगा सकते हैं और अपने मन को शांति की ओर ले जा सकते हैं।
वहीं सदस्य भिक्षु शील रतन ने बताया कि अगर हमारे कर्मों के द्वारा किसी को मन, कर्म, या वचन से दुःख हो रहा है या किसी को ठेस पहुँच रही है तो हमको ऐसे कर्मों से बचना चाहिए। अंतर्मन की शुद्धता ही योग है। योग परंपरा आज की नहीं, सदियों से ऋषि मुनियों द्वारा अपने सांसों को देखते हुए स्वयं का निरीक्षण किया है। आपने बताया की अज्ञानता के कारण आपसे जो भी बुरे कर्म हुए है उनको भी अपने ज्ञान और योग के माध्यम से अनुभव करके अज्ञानता के काले बादल को हटाया जा सकता है अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो।
इसके अलावा सदस्य भिक्षु देवानंद वर्धन ने ज्ञान और अनुभव पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस मन में ही सारे अच्छे-बुरे विचार उत्पन्न होते हैं और जब हम अपने दूषित मन में राग, द्वेष, मोह से प्रेरित होकर कोई काम शरीर या वाणी से करते हैं तो निश्चित रूप से हम दुःख की ओर जाते है इसलिए मन पर नियंत्रण रखने के लिए योग अथवा विपश्यना ध्यान किया जाता है।
अंत में सदस्य संस्थान श्री तरुणेश बौद्ध ने कार्यक्रम में आए हुए गणमान्य अतिथियों, बौद्ध भिक्षुओं, वक्ताओं, मीडिया कर्मियों एवं विद्वानों, छात्र-छात्राओं के प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।