फाइलेरिया रोगियों के क्लस्टर फोरम के सदस्यों की बैठक हुई आयोजित



लखनऊ - स्वास्थ्य विभाग के तत्वावधान में स्वयंसेवी संस्था सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च( सीफार) के सहयोग से फाइलेरिया रोगियों के क्लस्टर फोरम के सदस्यों की बैठक बक्शी का तालाब ब्लॉक (बीकेटी) के कठवारा पंचायत भवन में आयोजित हुई |

इस मौके पर कठवारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डा. अवधेश ने कहा कि फ़ाइलेरिया जिसे हाथी पाँव भी कहते हैं | यह मच्छरजनित बीमारी है जो कि गंदे ठहरे पानी में मच्छरों के पनपने से होती है | इस बीमारी से बचाव ही इसका इलाज है |  इस बीमारी में लिम्फ़ नोड प्रभावित होते हैं और एक बार जब यह रोग हो जाता है तो यह पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाता है | दवा के सेवन से इस रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है | यह बीमारी व्यक्ति को आजीवन विकलाँग बना देती है | फ़ाईलेरिया रोगियों के क्लस्टर फोरम के सदस्य  इस बीमारी को रोकने में अहम भूमिका निभा सकते हैं | वह ग्राम या स्थानीय स्तर, ब्लॉक स्तर और जिला स्तर पर फाइलेरिया रोग के जांच, उपचार, कारण और भ्रांतियों को दूर करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं |

इस मौके पर स्वयंसेवी संस्था पाथ के प्रतिनिधि डा. शोएब ने कहा कि फ़ाईलेरिया से बचाव के लिए सरकार द्वारा साल में एक बार सामूहिक दवा सेवन(एमडीए) अभियान चलाया जाता है | इसके तहत स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को एल्बेंडाज़ोल और डाईइथाइलकार्बामजीन (डीईसी) की गोलियाँ खिलाते हैं | इन दवाओं का लगातार पाँच साल तक साल में एक बार सेवन करने से इस बीमारी से बचा जा सकता है | दो साल से कम आयु के बच्चों, गर्भवती और गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों को इस दवा का सेवन नहीं करना होता है |  इन दवाओं के सेवन का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है | कुछ लोगों में  दवा के सेवन के बाद चक्कर आना, जी मिचलाना जैसे दुष्प्रभाव दिखाई देते हैं जिससे परेशान होने की ज़रूरत नहीं है  | यह अपने आप ठीक हो जाता है | इसका मतलब यह होता है कि उसके शरीर में फाइलेरिया के जीवाणु हैं | फाइलेरिया के जीवाणु व्यक्ति के शरीर में पाँच से 15 साल तक सुप्तावस्था में रहते हैं | अनुकूल परिस्थिति आने में सक्रिय हो जाते हैं |

डा. शोएब ने बताया कि फाइलेरिया रोगियों की पहचान के लिए साल में एक बार नाइट ब्लड सर्वे किया जाता है | रात में लोगों के खून के नमूने की जांच कर संक्रमण की स्थिति का पता लगाया जाता है क्योंकि फाइलेरिया के जीवाणु, जिन्हें हम माइक्रोफाइलेरिया कहते हैं वह रात में सक्रिय होते हैं। इसलिए फाइलेरिया के मरीजों को चिन्हित करने का काम रात में ही किया जाता है |

बैठक में समूह को विभिन्न अभ्यासों  के माध्यम से फाइलेरिया पर जागरूक किया गया | उन्हें व्यायाम का अभ्यास व सूजन वाली जगह की साफ़-सफाई कैसे रखनी है इसके बारे में भी विस्तार से बताया गया | इस मौके पर कठवारा के ग्राम प्रधान अशोक कुमार, पंचायत सहायक विनय कुमार , सीफार के प्रतिनिधि और क्लस्टर फोरम के 13 सदस्य उपस्थित रहे |