कुपोषण का कारण बनते हैं पेट के कीड़े - जिलाधिकारी



  • एल्बेंडाजाल की एक गोली से खत्म होंगे पेट के कीड़े
  • राष्ट्रीय कृमि मुक्ति अभियान शुरू, 13 से 15 फरवरी तक चलेगा मॉप अप राउंड

औरैया - पेट के कीड़े बच्चों के शारीरिक विकास को प्रभावित करते हैं। समय से उपचार नहीं होने पर कीड़ों के कारण बच्चे कुपोषण का भी शिकार हो जाते हैं। इसी समस्या के निदान को लेकर कृमि मुक्ति अभियान चलाया जाता है। यह बातें जिलाधिकारी प्रकाश चंद्र श्रीवास्तव ने औरैया शहर के प्राथमिक विद्यालय एवं आँगनवाड़ी केंद्र तुर्कीपुर में राष्ट्रीय कृमि मुक्ति अभियान के शुभारम्भ पर कहीं। उन्होंने वहां बच्चों को दवा खिलाकर अभियान की शुरूआत कराई। साथ ही सैम/मैम बच्चों को फल, पोषण पोटली और गर्भवती व धात्री माताओं को ड्राई राशन भी वितरित किया।

कार्यक्रम में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ अर्चना श्रीवास्तव ने कहा कि पेट में कीड़े होने से कुपोषण व खून की कमी होती है। इस कारण हमेशा थकावट रहती है। उन्होंने कहा कि संपूर्ण शारीरिक और मानसिक विकास नहीं होता इसलिए हर छह महीने में एक साल से 19 साल तक के सभी बच्चों को कृमि की गोली खानी चाहिए। आमतौर पर 1 से 6 वर्ष के बच्चों को एल्बेंडाजोल की टेबलेट आंगनबाड़ी केंद्र और 6 से 19 वर्ष के बच्चों को विद्यालयों के माध्यम से एल्बेंडाजोल की दवा खिलाई जाती है।

अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ शिशिर पुरी ने कहा कि बीमार बच्चे को कृमि मुक्ति की दवा नहीं खिलाई जाएगी। उन्होंने बताया की कृमि (पेट में कीड़े) के संक्रमण से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है। इससे बचने के लिए स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना जरूरी है। उन्होंने बताया की शुक्रवार को जनपद के कुल 1265 स्कूल, 289 कॉलेज और 1789 आंगनबाड़ी केंद्रों में कृमि से मुक्ति (पेट के कीड़े निकालने) के लिए एल्बेंडाजोल की दवा खिलाई गयी । इसके बाद 13 से 15 फरवरी तक मॉप अप राउंड स्कूलों और आंगनबाड़ी केन्द्रों में आयोजित होंगे ।

इस दौरान जिला कार्यक्रम अधिकारी, सीडीपीओ, डीपीएम, डीसीपीएम, स्वास्थ्य केंद्र प्रभारी, शहरी स्वास्थ्य समन्वयक, फार्मेसिस्ट, यूनिसेफ प्रतिनधि सहित एएनएम, आशा व आंगनबाड़ी कार्यकर्ता उपस्थित रहीं।

कृमि नियंत्रण के ये हैं फायदे : जिला सामुदायिक प्रक्रिया प्रबंधक अजय पांडेय ने बताया कि कृमि नियंत्रण किए जाने से बच्चों में खून की कमी में सुधार होगा, पोषण स्तर बेहतर होगा। इसके अलावा स्कूल आंगनबाड़ी केंद्र में उपस्थिति तथा सीखने की क्षमता में सुधार होगा। वहीं बच्चे की भविष्य में कार्य क्षमता और औसत आय में बढ़ोतरी होगी। वातावरण में कृमि की संख्या कम होने पर समुदाय को लाभ मिलता है।

बच्चे खुले में शौच ना जाएं : जिला कार्यक्रम अधिकारी वीरेंद्र कुमार बताते हैं कि बच्चों को खुले में शौच जाने से अस्वच्छता के कारण बच्चों के आंतों में कीड़े उत्पन्न हो जाते हैं जिसके कारण बच्चे जल्दी-जल्दी बीमार पड़ते हैं। इस कारण बच्चों में खून की कमी (एनिमीया) कुपोषण से ग्रस्त हो जाते हैं। कृमि मुक्ति दवा खिलाने से बच्चों के पेट में कृमि नहीं होते हैं। बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास पूर्ण रूप से होता है। कृमि नाशक गोली बच्चों को खिलाई जानी चाहिए, जिसमें निजी विद्यालयों की भी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए।