लखनऊ - "क्षय (टीबी) रोग का इलाज इतना कष्टदायी नहीं है जितना क्षय रोग के इलाज के दौरान आस पास के लोगों का व्यवहार दुखदायी होता है। यह मरीज को मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है। मैनें इस भेदभाव को झेला है " यह कहना है टीबी से ठीक हो चुकी टीबी चॅम्पियन सोनम कुमारी का।
सोनम बताती हैं लोग टीबी से बचने के लिए सावधानी बरतते हैं लेकिन उनका व्यवहार अनियमित हो जाता है। इसलिए जब टीबी चॅम्पियन के तौर पर काम करने के लिए कहा गया तो वह तुरंत ही तैयार हो गई जिससे लोगों में टीबी को लेकर सही जानकारी दे सके। वह फरवरी 2022 से टीबी चॅम्पियन के तौर पर काम कर रही हैं।
सोनम ने अपने साथ हुए भेदभाव के बारे में बताया कि पल्मोनरी टीबी की पुष्टि होने के बाद उसके साथ दोस्तों, सहयोगियों का रवैया भेदभाव वाला था। जैसे हाथ में चाय नहीं देना, बात कम करना, दूरी बना लेना लेकिन परिवार का पूरा सहयोग रहा। सोनम बताती हैं कि वह काउंसलिंग करते समय अपना उदाहरण ही सामने रखते हुए बताती समझाती है कि वह स्वस्थ है। खुद का उदाहरण देना लोगों को प्रभावित करता है। टीबी को लेकर लोगों में भ्रांतियाँ भी हैं। पढ़े लिखे लोग भी भेदभाव करने से नहीं चूकते हैं।
एक महिला की कहानी बताते हुए वह बताती हैं कि जब उस महिला में टी बी की पुष्टि हुई तो पति ने उसे मायके छोड़ दिया और वह दिल्ली में काम करने चला गया। मायके में भी उसके साथ भेदभाव हो रहा था। "ऐसे में जब हमें पता चला तो पहले तो पति से स्वयं बात की फिर इसके बाद स्वास्थ्य विभाग और अपनी संस्था वर्ल्ड विजन के लोगों की मदद ली | पति को दिल्ली से बुलवाया और उसे समझाया | खुद का उदाहरण दिया | उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और वह अपनी पत्नी को साथ में ले गए। "
सोनम बताती हैं वह क्षय रोगियों और उनके परिवार के सदस्यों को टीबी के इलाज, उपचार के दौरान पौष्टिक और प्रोटीनयुक्त भोजन करने और भ्रांतियों को लेकर काउंसलिंग करती है। अगर जरूरत पड़ती है तो वह उनके घर भी जाती है।
सोनम को जब पता लगा कि उसे टीबी है तो लगा कि अब उसका क्या होगा और वह मर जाएगी क्योंकि उसे खुद भी नहीं पता था कि टीबी का इलाज संभव है। उन्हें एक माह तक बुखार आया और उसका वजन तेजी से गिरा लेकिन उसने उस पर ध्यान नहीं दिया और न ही अस्पताल गयी। जब वह बिस्तर से उठने लायक भी नहीं रही तब उसके ऑफिस के विभाग प्रमुख ने उन्हें अस्पताल में दिखाया और उनकी जांच करायी जिसमें टीबी की पुष्टि हुई और नौ माह तक टीबी का इलाज चला।
सोनम के पिता किसान हैं। उसके परिवार के सदस्यों और स्वास्थ्य विभाग का काफी सहयोग मिला। उसका कहना है कि टीबी को लेकर लोगों में बहुत भ्रांतियाँ हैं जिन्हें दूर करना बहुत जरूरी है।