- एमडीआर का छह माह तो एक्सडीआर का नौ माह चलेगा उपचार
- विश्व क्षय रोग दिवस (24 मार्च) पर खास
लखनऊ - टीबी के इलाज को और सरल व सुगम बनाने को लेकर लगातर नए-नए शोध किये जा रहे हैं। ट्रंकेट स्टडी में यह निकलकर आया है कि निकट भविष्य में ड्रग सेंसिटिव टीबी का इलाज दो से तीन माह में पूरा हो जायेगा जो कि अभी छह माह चलता है। इसी तरह से एमडीआर टीबी का इलाज जो अभी नौ महीने से डेढ़ साल तक चलता है, वह छह माह का किया जाएगा। एक्सडीआर टीबी के इलाज को भी दो साल से घटाकर नौ माह का किया जाएगा। इसके अलावा यूनिवर्सल ट्रीटमेंट पर भी विचार चल रहा है, जिसके तहत सभी तरह की टीबी का इलाज एक ही रेजिमेन से संभव हो सकेगा।
इन्डियन जर्नल ऑफ़ ट्यूबरक्लोसिस-2022 और इंडियन जर्नल ऑफ़ चेस्ट डिजीज-2020 में प्रकाशित नेशनल टीबी टास्क फ़ोर्स के वाइस चेयरमैन डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के लेख के मुताबिक़ भी आने वाले समय में टीबी की दवाओं की संख्या और समयावधि को घटाया जाएगा। यह इसलिए किया जा रहा है क्योंकि जब कोई इलाज लम्बे समय तक चलता है तो लोगों के उसको छोड़ने की संभावना अधिक रहती है। यही सबसे बड़ी वजह टीबी के इलाज के मामले में भी है कि कुछ दिन के इलाज के बाद लोग जब थोड़ा आराम महसूस करने लगते हैं तो वह इलाज बीच में छोड़ देते हैं जबकि बीच में इलाज छोड़ना टीबी की गंभीरता को बढ़ाना है। इस बारे में मरीज को बार-बार हिदायत दी जाती है कि टीबी के इलाज का पूरा कोर्स करें और चिकित्सक के कहने पर ही दवा बंद करें। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी दवाओं की समयावधि को घटाने का ऐलान कर चुका है, जिस पर भारत सरकार भी गंभीरता से विचार कर रही है। टीबी मुक्त देश बनाने में यह सबसे कारगर साबित होगा।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का कहना है कि वर्ष 1960 से पहले जब टीबी की ज्यादा दवाएं नहीं मौजूद थीं तो बहुत से लोग इस बीमारी से दम तोड़ देते थे लेकिन जब वर्ष 1962 में कंट्रोल प्रोग्राम शुरू हुआ तो एक से दो साल तक इलाज चलता था। 1980 के बाद इसे घटाकर छह से नौ माह किया गया और अब इस समयावधि को आधा या उससे भी कम किया जा रहा है। यह सब पिछले 10-15 वर्षों में शोध पर खास फोकस करने के बाद ही संभव हो पाया है। इसके साथ ही नई-नई असरकारक दवाओं को ईजाद किया गया है। जांच की अत्याधुनिक तकनीक विकसित हुई है। पहले जो कई दिन बाद जाँच रिपोर्ट का पता चल पाता था, तो आज महज एक-दो दिन में जाँच रिपोर्ट मिल जाती है।
पोस्ट टीबी लंग डिजीज के मामले बढ़े : डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का कहना है कि टीबी का इलाज पूरा होने के बाद भी करीब एक तिहाई मरीजों के फेफड़ों में कमजोरी देखी जा रही है। इस पर भी रिसर्च चल रहा है कि इस समस्या को कैसे दूर किया जाए। इस बारे में अभी तक के रिसर्च यही बताते हैं कि यह समस्या उन्हीं लोगों में सामने आ रही है जिनका डायबिटिक अनियंत्रित है या वह सीओपीडी या अस्थमा से ग्रसित रहे हैं। स्मोकिंग करने वालों में यह समस्या और बढ़ सकती है, इसलिए धूम्रपान से बचें। टीबी मरीजों को यही बताया जाता है कि टीबी की बीमारी को तो छह माह के इलाज के बाद तो ठीक किया जा सकता है किन्तु दिनचर्या को ठीक न रखने और शारीरिक श्रम से विमुख होने के बाद अनियंत्रित डायबिटिक का इलाज जीवनपर्यंत करना पड़ सकता है।
टीबी से ठीक हुए लोगों का फालोअप जरूरी : डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का कहना है कि क्षय उन्मूलन कार्यक्रम की गाइड लाइन में यह व्यवस्था की गयी है कि टीबी मरीज का इलाज बंद होने के बाद दो साल तक फालोअप जरूर किया जाए। कोई लक्षण या समस्या न आने पर भी छह-छह माह बाद मरीज का फालोअप किया जाए क्योंकि डायबिटीज कंट्रोल न करने के कारण लोग दुबारा से टीबी से ग्रसित हो रहे हैं।
कोविड के बाद बदलीं स्थितियां : डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का कहना है कि कोविड के कारण लम्बे समय तक लाकडाउन आदि कारणों से लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हुआ है। इस कारण कुपोषण बढ़ा है और टीबी सबसे पहले कुपोषितों और कमजोर इम्यूनिटी वालों को ही अपनी गिरफ्त में लेती है। इसके अलावा कोविड ने भी लोगों के फेफड़ों पर ही अटैक किया जिसके कारण फेफड़ों में कमजोरी आई और वह लोग भी संवेदनशील की श्रेणी में शामिल हो गए।