- प्रवासी कामगारों का बीच में नहीं छूटने पायेगा इलाज
- स्थानांतरण की स्थिति में क्षयरोग केंद्र को सूचित करना जरूरी
कानपुर - टीबी या क्षयरोग लाइलाज बीमारी नहीं है। नियमित उपचार, सही खानपान और बेहतर देखभाल से टीबी का मरीज पूरी तरह से स्वस्थ हो सकता है। इसके अलावा अगर परिवार के भरण पोषण के उद्देश्य से अपने शहर या राज्य से कहीं बाहर भी जाना पड़े तो घबराने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि वह जहाँ जायेगा वहीँ उसको इलाज मुहैया कराया जाएगा | इसके लिए जरूरी यह है कि वह अपने वर्तमान केंद्र को अवगत करा दे कि अब वह इस नए पते पर रहने जा रहा है | ऐसे में उसकी दवा की निरन्तरता बनी रहेगी जो कि बीमारी से उबरने के लिए बहुत जरूरी है। यह कहना है जिला क्षयरोग अधिकारी डॉ एपी मिश्रा का।
डॉ मिश्रा बताते हैं कि काम-धंधे की तलाश में शहर आने वाले प्रवासी मजदूरों के सामने कई तरह की चुनौतियाँ होती हैं जिसके चलते कई बार वह अपनी सेहत का ध्यान नहीं रख पाते और बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। इन बिमारियों में से टीबी या क्षयरोग भी एक है। नए शहर में काम से जुड़ी और अन्य परेशानियों का सामना करते हुए प्रवासी मजदूर किसी तरह टीबी का इलाज शुरू भी करते हैं पर व्यापार में मुनाफा न होने के कारण जैसे ही शहर के दूसरे हिस्से में या दूसरे शहर या राज्य में प्रवास करते है तो इलाज अधूरा छोड़ देते हैं। ऐसे में बीमारी गंभीर रूप ले लेती है | इससे मरीज़ दवाओं के प्रति रजिस्टेंट हो जाता है। नतीजतन टीबी की सामान्य दवाएं बेअसर हो जाती हैं जिसकी वजह से टीबी और भी ज्यादा गंभीर और कष्टदायी हो जाती है जिसका इलाज भी लम्बा होता है ।
जिला कार्यक्रम समन्वयक राजीव सक्सेना बताते हैं कि अब घर, शहर या राज्य छोड़ने या बदलने पर भी टीबी का इलाज बीच में नहीं छूटेगा। टीबी से ग्रसित व्यक्ति का इलाज शुरू होने पर लगातार छह महीने इलाज पूरा करना जरूरी है जिससे वह पूरी तरह स्वस्थ हो सके। काम-धंधे की मजबूरी में यदि क्षयरोगी अपने क्षेत्र से कहीं बाहर जा रहें हैं तो ऐसे में उनको परेशान होने की जरुरत नहीं है क्योंकि पूरे देश में टीबी की इलाज की पूरी व्यवस्था है। बस जरुरत है क्षयरोग विभाग को सूचित किया जाये।
जिला कार्यक्रम समन्वयक ने बताया कि अगर एक ही शहर या जिले में कोई क्षयरोगी प्रवास कर रहा है तो इसकी सूचना विभाग को देने पर उस क्षयरोगी का निक्षय पोर्टल पर नया पता फीड कर दिया जाता है और विभाग द्वारा उस क्षेत्र के निकट टीबी यूनिट में सूचित कर दिया जाता है। इसके बाद उस क्षेत्र की टीबी यूनिट द्वारा क्षयरोगी को ट्रेस करके इलाज जारी कर दिया जाता है। यदि क्षयरोगी को अपना जिला छोड़कर किसी अन्य जिले में प्रवास करना पड़ रहा है या राज्य छोड़कर दूसरे राज्य में प्रवास करना पड़ रहा है ऐसे में भी स्वास्थ्य विभाग को सूचना दें और विभाग द्वारा जहाँ भी उस क्षयरोगी का नया क्षेत्र होगा वहाँ की केंद्रीय क्षयरोग इकाई में सूचित करके इलाज जारी करवा दिया जायेगा। नये सिरे से कोई भी जांच या एक्स-रे नहीं करवाया जाता है, पुरानी जांच को आधार मानकर ही दवायें दी जाती हैं।
जिला कार्यक्रम समन्वयक ने प्रवासी मजदूरों और क्षयरोगियों से अपील है कि प्रधानमंत्री के वर्ष 2025 तक क्षय रोग मुक्त भारत बनाने के निर्धारित लक्ष्य में सहयोग करें और स्थानांतरण की स्थिति में विभाग को सूचना अवश्य दें क्योंकि टीबी मरीजों को ढूंढ कर उन्हें इलाज से जोड़ना अति आवश्यक है। टीबी का सम्पूर्ण इलाज संभव है, बशर्ते मरीज बीच में दवा न बंद करें और दवा की पूरी डोज लें। इलाज चलने तक 500 रुपये प्रति माह पोषण के लिए भी दिये जाते हैं। अगर किसी को दो सप्ताह से अधिक समय से खांसी आ रही हो, रात में बुखार, पसीने के साथ बुखार, तेजी से वजन घटने, भूख न लगने जैसी दिक्कत हो तो वह संभावित टीबी रोगी हो सकता है। इन लक्षण वाले लोगों को प्रोत्साहित कर टीबी की जांच जरूर करवाएं। उनका कहना है की परिवार का पेट आप तभी भर पायेंगे जब खुद स्वस्थ होंगे।