फाइलेरिया के दवा सेवन कार्यक्रम का हिस्सा बनेगा मरीज सहायता समूह नेटवर्क



  • पिपराइच ब्लॉक के आठ पीएसजी नेटवर्क से बने कलस्टर फोरम को दिया गया प्रशिक्षण
  • फाइलेरिया से बचाव, रोग प्रबंधन और एमडीए अभियान के बारे में दी गयी जानकारी

गोरखपुर - पिपराइच ब्लॉक के आठ गांवों में बना मरीज सहायता समूह (पीएसजी) नेटवर्क इस बार अगस्त में प्रस्तावित सर्वजन दवा सेवन (एमडीए) कार्यक्रम का हिस्सा बनेगा। नेटवर्क के सभी सदस्य दवा सेवन के प्रति लोगों को जागरूक करेंगे। साथ ही वह लोगों को बीमारी संबंधी आप बीती सुनाएंगे। जो लोग दवा खाने के लिए राजी नहीं होंगे, उन्हें भी समझाएंगे । इस बारे में इन सदस्यों के कलस्टर फोरम को स्वास्थ्य विभाग, सीफार व पाथ संस्था ने बुधवार को प्रशिक्षित किया।

जिला मलेरिया अधिकारी अंगद सिंह ने बताया कि पिपराईच ब्लॉक के आठ गांवों (उसका, महराजी, सिंहौली दूबौली, कुसम्ही कोठी, उनौला, सरण्डा व भैंसही ) में हाथीपांव व हाइड्रोसील से पीड़ित मरीजों ने समूह बनाया है। इस समूह के लोग हर महीने बैठक कर बीमारी के प्रबंधन आदि पर चर्चा करते हैं। समूह के लोग गांव के लोगों को भी छोटे छोटे समूहों में जागरूक कर रहे हैं। सीएचसी के अधीक्षक डॉ मणि शेखर की अगुवाई में नेटवर्क के लोगों का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में नेटवर्क सदस्यों को जिला मलेरिया विभाग ने बताया गया कि 10 से 27 अगस्त तक जिले में एमडीए कार्यक्रम चलेगा। इस कार्यक्रम के तहत दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती और अति गंभीर तौर पर बीमार लोगों को छोड़ कर सभी को दवा का सेवन करना है। अभी से अपने गांव के लोगों को इस अभियान के बारे में जागरूक करना शुरू कर दें। यह भी समझाना है कि दवा का सेवन आशा कार्यकर्ता के सामने ही करना है। जिन लोगों में माइक्रोफाइलेरिया होते हैं उन्हें दवा से मामूली चक्कर, उल्टी जैसे लक्षण आ सकते हैं। इससे घबराना नहीं है। दवा सुरक्षित और असरदार है।

सीएचसी के अधीक्षक डॉ मणि शेखर ने बताया कि नेटवर्क के सदस्यों का सक्रिय योगदान एमडीए अभियान के दौरान लिया जाएगा । नेटवर्क के प्रयासों से कई नये फाइलेरिया मरीज भी सिस्टम से जुड़े हैं जिन्हें किट व दवाइयां दी गयी हैं । फाइलेरिया रोधी दवा के सेवन में सबसे बड़ी बाधा यह है कि स्वस्थ लोग कहते हैं कि जब उन्हें कोई बीमारी नहीं है तो दवा का सेवन क्यों करें । ऐसे लोगों को नेटवर्क के जरिये समझाना होगा कि एक बार बीमारी हो जाने पर दवा सेवन का कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि फाइलेरिया लाइलाज है । हाथीपांव को सिर्फ नियंत्रित किया जा सकता है, पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है । नेटवर्क के संचालन में सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) संस्था सराहनीय भूमिका निभा रहा है । अन्य गांव में भी नेटवर्क गठित करने की प्रक्रिया चल रही है ।

सीफार संस्था के राज्य कार्यक्रम प्रबन्धक डॉ एसके पांडेय ने पीएसजी नेटवर्क के सदस्यों से संवाद किया और फाइलेरिया से जुड़े मिथकों और भ्रांतियों के बारे में चर्चा की । उन्होंने बताया कि यह बीमारी न तो चोट लगने से होती है और न ही अनुवांशिक रोग है । यह क्यूलेक्स नामक मच्छर के काटने से होता है । पंद्रह साल से कम उम्र के बच्चों में भी यह बीमारी देखी गयी है । इस मच्छर के काटने से संक्रमित मरीज में लक्षण दिखने में कई बार पांच से पंद्रह साल तक का समय लग जाता है । इसलिए समुदाय को प्रेरित करें कि दो साल से अधिक उम्र के सभी लोग (गर्भवती और अति गंभीर बीमार लोगों को छोड़ कर) दवा का सेवन अवश्य करें ।  

पाथ संस्था की प्रतिनिधि डॉ नाहिदा ने बताया कि फाइलेरिया प्रभावित अंगों के साफ सफाई और देखरेख से इसके एक्यूट अटैक की आशंका कम हो जाती है । मरीज को नंगे पांव नहीं चलना चाहिए । खेतों में जाते समय जूते का प्रयोग करना चाहिए । रात को सोने से पहले कम से कम पंद्रह बार व्यायाम करना चाहिए । प्रभावित अंग को प्रति दिन साफ और सामान्य पानी के टब में रख कर मग से पानी गिरा कर धुलना चाहिए। फिर हल्के हाथ से साबुन लेकर अंग को साफ करना चाहिए । प्रभावित अंग को रगड़ना नहीं है । फिर साफ कॉटन के तौलिये से थपकी देकर प्रभावित अंग को सूखाना है । अगर कहीं कटा पिटा है तो मरहम लगाना है । ऐसा करने और व्यायाम करने से प्रभावित अंग का सूजन या घाव बढ़ने नहीं पाता है और आराम मिलता है ।

कार्यक्रम में सहायक मलेरिया अधिकारी सीपी मिश्रा, एचआई रमेश, सीफार की जिला समन्वयक रेखा व अन्य सहयोगी और बीस नेटवर्क मेंबर मौजूद रहे।

भ्रम दूर करेंगे : तीस साल से फाइलेरिया का दर्द झेल रहीं सिंहौली की नेटवर्क मेम्बर तलीमुननिशा (55) ने बताया कि प्रशिक्षण के दौरान कई उपयोगी वीडियो दिखाए गये । नाटक के जरिये दवा सेवन के महत्व के बारे में बताया गया । यह संदेश लेकर हम लोग समुदाय के बीच जाएंगे और सभी को दवा सेवन के लिए प्रेरित करेंगे । लोगों को बताया जाएगा कि फाइलेरिया से बचाव के लिए पांच साल तक लगातार साल में एक बार दवा का सेवन जरूरी है । लोगों को यह भी बताएंगे कि दवा का सेवन करने से उन्हें व उनके परिवार को वह दिक्कत नहीं झेलनी पड़ेगी जो तलीमुनिशा खुद झेल रही हैं । कार्यक्रम में फाइलेरिया के रोगियों को रोग प्रबन्धन किट भी दिया गया ।