रमेश ने समझदारी दिखाई और नसबंदी अपनाई



  • परिवार नियोजन में पुरुषों की सहभागिता जरूरी
  • महिला नसबंदी की अपेक्षा अधिक सरल व सुरक्षित   

लखनऊ - “मेरे दो बच्चे हैं, यदि ज्यादा बच्चे होंगे तो बच्चों की परवरिश ठीक से नहीं पाएगी और उनकी पढ़ाई - लिखाई में भी दिक्कत आएगी | इसके साथ ही  आशा कार्यकर्ता ने बताया था कि महिला नसबंदी की अपेक्षा पुरुष नसबंदी ज्यादा आसान होती है | यह सब सोचकर  मैंने खुद की नसबंदी करवाई | मुझे कोई भी समस्या नहीं हुई | मैं बिल्कुल स्वस्थ हूँ |”  यह कहना है – चाँदगंज निवासी 33 वर्षीय रमेश कुमार का |

परिवार कल्याण कार्यक्रम की नोडल अधिकारी और अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अभिलाषा ने बताया कि  पुरुष नसबंदी पूरी तरह सुरक्षित है | इसके असफल  होने की संभावना बहुत ही कम या न के बराबर होती है | नसबंदी कराने के दो दिन बाद ही नियमित काम - काज शुरू कर सकते हैं और एक हफ्ते बाद से भारी काम शुरू कर सकते हैं:- जैसे साइकिल चलाना आदि  | नसबंदी कराने के बाद अगर कोई समस्या होती है तो चिकित्सक से संपर्क करें | नसबंदी कराने के बाद भी पहले जैसा ही वैवाहिक सुख का आनंद ले सकते हैं | इसलिए परिवार नियोजन में पुरुषों की सहभागिता बहुत ही जरूरी है |

पुरुष नसबंदी आपरेशन के तीन  माह बाद ही पूरी तरह प्रभावशाली होती है क्योंकि शुक्रवाहिनी नलिका में पहले से मौजूद शुक्राणु को वीर्य के साथ बाहर आने में कम से कम तीन माह का समय लगता है | पुरुष नसबंदी से जुड़ी सेवायें सरकारी जिला अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, चयनित स्वास्थ्य केंद्र के साथ ही  कुछ निजी अस्पतालों में मुफ्त प्राप्त की जा सकतीं हैं | नसबंदी  कराने पर लाभार्थी को 2,000 रुपए की धनराशि तथा सेवा प्रदाता आशा को 300 रुपए मिलते हैं | नसबंदी के विफल होने पर 30,000 रुपए की धनराशि दी जाती  है | नसबंदी के बाद सात  दिनों के अंदर मृत्यु हो जाने पर दो  लाख रुपए की धनराशि दी जाती है | नसबंदी के 8 से 30 दिन के अंदर मृत्यु हो जाने पर 50,000 रुपए की धनराशि दिये जाने का प्रावधान है | नसबंदी के बाद 60 दिनों के अंदर जटिलता होने पर इलाज हेतु 25,000 रुपए की धनराशि  दी जाती है | डॉ. अभिलाषा ने बताया- जनपद में अप्रैल माह से आठ दिसम्बर तक 237 पुरुषों ने नसबंदी की सेवा प्राप्त की है |