गर्भावस्था के दौरान हो सकता है जेस्टेशनल डायबिटीज़ का जोखिम



  • गर्भावस्था में माँ एवं गर्भस्थ शिशु के लिये मधुमेह को लेकर सतर्कता जरूरी
  • सभी गर्भवती महिलाओं की गर्भावस्था मधुमेह जांच बहुत आवश्यक

कानपुर नगर - जनपद के त्रिवेणी नगर क्षेत्र की निवासी 25 वर्षीय हिमांशी अग्रवाल पहली बार माँ बनी हैं। पिछले माह जिला महिला अस्पताल में बेटा हुआ। वह और उनका बच्चा पूरी तरह स्वस्थ हैं। हिमांशी ने बताया – प्रसव के समय वह जेस्टेशनल डायबिटीज़ का शिकार हो गयी थीं। चिकित्सकों की सलाह पर पूरी तरह अमल और प्रसव पूर्व नियमित जांच कराने का ही नतीजा रहा कि बच्चा पूरी तरह स्वस्थ पैदा हुआ।  

हिमांशी बताती हैं “जब मैं गर्भवती हुई थी तब अपने मायके लखनऊ में थी और गर्भावस्था के छ्ठ्वें माह में मुझे जेस्टेशनल डायबिटीज़ के बारें में पता चला, शुरुआत में खान पान और दवाइयों से स्थिति को संभाला, लेकिन अंततः मुझे खून में शुगर के स्तर को कम करने के लिए इंसुलिन लेना पड़ा।

चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण की अपर निदेशक डॉ अंजू बताती हैं कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में कई तरह के बदलाव होते हैं, जिसमें एक खून में शुगर की मात्रा बढ़ना भी है, इस स्थिति को गर्भकालीन डायबिटीज़ यानि जेस्टेशनल डायबिटीज़ कहा जाता है। हालांकि यह बीमारी महिलाओं में बच्चे के जन्म के बाद खत्म हो जाती है और भविष्य में उन्हें डायबिटीज़ होने का ख़तरा रहता है। लेकिन इससे गर्भावस्था में कई तरह की परेशानियाँ हो सकती हैं। इससे गर्भ में पल रहे शिशु की जान को भी खतरा हो सकता है।

क्यों बढ़ जाती है रक्त में शुगर की मात्रा : केपीएम चिकित्सालय की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ दीप्ति गुप्ता बताती हैं कि गर्भकालीन डायबिटीज़ के दौरान पेंक्रियाज़ से बनने वाला इंसुलिन ब्लड शुगर के स्तर को नीचे नहीं ला पाता है। हालांकि इंसुलिन प्लेसेंटा (गर्भनाल) से होकर नहीं गुजरता, जबकि ग्लूकोज व अन्य पोषक तत्व गुजरते हैं। ऐसे में गर्भ में पल रहे बच्चे का भी ब्लड शुगर स्तर बढ़ जाता है, क्योंकि बच्चे को जरूरत से ज्यादा ऊर्जा मिलने लगती है, जो फैट के रूप में जमा हो जाती है। इससे बच्चे का वजन बढ्ने लगता है और समय से पहले ही बच्चे के जन्म का खतरा बढ़ जाता है। वह बताती हैं आज के समय में 10 से 17 प्रतिशत गर्भवती को जेस्टेशनल डायबिटीज़ होती है।

बच्चे पर होने वाले दुष्प्रभाव : अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आरवी सिंह का कहना है कि गर्भ में पल रहे बच्चे को माँ से ही पोषण मिलता है। ऐसे में अगर माँ का शुगर का स्तर बढ़ता है तो इसका असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी पड़ता है। इससे बच्चा कमजोर या ज्यादा वजन का हो सकता है, गर्भपात, या पेट में बच्चा खत्म होने का खतरा रहता है। प्रसव के बाद कुछ समय के लिए सांस की तकलीफ हो सकती है, या बच्चे के दिल में छेद की संभावना हो सकती है, समय से पूर्व प्रसव हो सकता है, यदि बच्चे का प्रसव सही से हो गया तो उसके मोटापा बढ़ने और साथ ही उसे भी शुगर होने की संभावना बढ़ जाती है।

ऐसे बचें : गर्भावस्था में डायबिटीज़ से बचने के लिए सही तरह का खानपान, सक्रिय जीवन शैली, चिकित्सीय देखभाल, ब्लड शुगर स्तर की कड़ी निगरानी जरूरी है। जिला मातृ स्वास्थ्य परामर्शदाता हरिशंकर मिश्रा ने बताया कि जीडीएम कार्यक्रम (जस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान में सम्लित है जो कि प्रति माह की 1, 9, 16 व 24 तारिख को एचआरपी दिवस के रूप में मनाया जाता है।  उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों व उपकेन्द्रों पर गर्भवती की ओरल ग्लूकोज टरोल्वेंस टेस्ट (ओजीटीटी) होता है।

क्या कहते हैं जनपद के आंकड़े : स्वास्थ्य विभाग से मिले आकड़ों के अनुसार वर्ष 2023 -24 में अप्रैल से अक्टूबर तक 26411 महिलाओं ने डायबिटीज़ की जांच करायी, जिसमें 429 में जेस्टेशनल डायबिटीज़ मिली।