एमडीआर व एक्सडीआर टीबी के इलाज में नई दवाएं आशा की किरण : डॉ. सूर्यकान्त



  • एक्सडीआर टीबी पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित
  • एक्सडीआर टीबी का इजाज़ दुनिया के सामने चुनौती : डॉ. पॉलीन हॉवेल
  • एक्सडीआर टीबी से लड़ने के लिए तैयार है यूपी : डॉ. शैलेन्द्र भटनागर

लखनऊ । रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग-केजीएमयू, लखनऊ चेस्ट क्लब और इंडियन चेस्ट सोसायटी के यूपी चैप्टर के तत्वावधान में एमडीआर टीबी प्रबंधन पर अंतरराष्ट्रीय सिम्पोजियम का आयोजन स्थानीय एक होटल में किया गया। कार्यक्रम के संयोजक डा. सूर्यकान्त ने बताया कि टीबी दो प्रकार की होती है साधारण टीबी एवं जटिल टीबी। साधारण टीबी छह के इलाज माह में ठीक हो जाती है, जबकि जटिल टीबी का उपचार कठिन होता है एवं एक से दो वर्ष तक चलता है।

डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि टीबी के इलाज में प्रयोग होने वाली दवाएं जब किसी मरीज पर बेअसर हो जाती हैं तो उसे एमडीआर टीबी (मल्टी ड्रग रेसिसटेन्ट) कहते हैं। एमडीआर मरीजों में फलोरोक्विनोलोन दवा के लिए भी प्रतिरोध उत्पन्न हो जाता है उसे प्री. एक्सडीआर टीबी कहते हैं। एमडीआर के ऐसे मरीज जिनमें फ्लोरोक्विनोलोन के अलावा टीबी की नई और प्रभावी दवाओं के विरुद्ध भी प्रतिरोध उत्पन्न हो जाता है ऐसे मरीजों को एक्स.डी.आर. टीबी कहते हैं। पिछले कुछ वर्षो में जटिल टीबी (एमडीआर एवं एक्सडीआर टीबी) के उपचार हेतु नई दवाओं के प्रयोग पर पूरी दुनिया में अनुसंधान चल रहें हैं। ऐसे ही अनुसंधानों में से एक इंडियन काउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा किया जा रहा बीपाल नाम का अनुसंधान है। पूरे देश में इस शोध के सात केन्द्र हैं, जिनमें से दो (केजीएमयू लखनऊ व एस एन मेडिकल कालेज आगरा) उत्तर प्रदेश में हैं। इस शोध से मल्टी ड्रग रेसिसटेन्ट टीबी (एम.डी.आर. टीबी) तथा एक्सटेन्सिव ड्रग रेसिसटेन्ट टीबी (एक्स.डी.आर. टीबी) का उपचार दो वर्ष से घटकर तीन माह होने की सम्भावना है।

स्टेट टीबी ऑफिसर डॉ. शैलेन्द्र भटनागर ने राज्य टीबी कार्यक्रम की प्रमुख गतिविधियों, दवा प्रतिरोधी टीबी की जाँच, इलाज, रोकथाम करने और जनजागरुकता के बारे में एक विस्तृत विचार विमर्श का प्रस्तुतिकरण दिया। उन्होंने बताया कि 2023 में यूपी में अब तक सर्वाधिक 5.65 लाख टीबी की अधिसूचनाएं हासिल हुई हैं, जो कि 2023 के प्रदेश के लक्ष्य से अधिक हैं। उप्र में 24 नोडल ड्रग रेसिसटेन्ट टीबी सेन्टर हैं, जिन पर एमडीआर एवं एक्सडीआर टीबी की जांच एवं उपचार की सुविधा उपलब्ध है।   

अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी में जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रिका से आईं डॉ. पालीन हावेल (जो कि पिछले 10 वर्षों से एम.डी.आर. एवं एक्स.डी.आर. टीबी के उपचार में शोध कर रही हैं), विशेष वक्ता के रूप में उपस्थित रहीं। डॉ. पालीन हावेल ने दक्षिण अफ्रीका में दवा प्रतिरोधी टीबी के उपचार की प्रगति, क्लीनिकल ट्रायल्स, बीपाल रेजिमेन के साथ उनके अनुभव के बरे में विस्तृत चर्चा की। उन्होंने बताया कि उपचार के नये तरीके बीपाल से उपचार की अवधि और गोलियों का बोझ दोनों कम हो जाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कुपोषण से टीबी के मरीजों में मृत्यु दर बढ़ जाती है, इसको दूर करने के लिए भारत सरकार की ओर से निःक्षय पोषण योजना की शुरुआत की गई है, जिसमें टीबी के सारे मरीजो को इलाज के दौरान प्रतिमाह 500 रूपये उनके खाते में भेजे जाते हैं। यह बहुत ही सराहनीय योजना है।

अंत में डॉ. सूर्यकान्त ने कुछ दिलचस्प दवा प्रतिरोधी टीबी के मामलों के साथ दवा प्रतिरोधी टीबी के इलाज पर एक स्पष्ट, आकर्षक केस आधारित प्रस्तुति दी। उन्होंने दर्शाया कि कैसे केजीएमयू एक प्रमुख उपचार संस्थान के रूप में दवा प्रतिरोधी टीबी के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व कर रहा है। ज्ञात रहे कि केजीएमयू का रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग पूरे प्रदेश में प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत का नेतृत्व करता है, मुख्यमंत्री द्वारा प्रारम्भ किये गये निःक्षय दिवस का आयोजन करता है, राज्यपाल द्वारा प्रारम्भ की गयी टीबी के रोगियों को गोद लेने की योजना में भी प्रमुख भूमिका निभाता है, जिसके अन्तर्गत विभाग ने एक ग्राम पंचायत, एक स्लम एरिया तथा 100 से अधिक टीबी के रोगी टीबी मुक्त करने हेतु गोद ले रखें है। इसके साथ ही केजीएमयू का रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग प्रदेश के 75 जिलों के एम.डी.आर. एवं एक्स.डी.आर. टीबी के जटिल रोगियों हेतु डिफीकल्ट टू ट्रीट टीबी क्लीनिक (ऑनलाईन) का भी नेतृत्व करता है।

इस अवसर पर डिप्टी एसटीओ डॉ. ऋषि सक्सेना, लखनऊ जिला टीबी अधिकारी डॉ. अतुल कुमार सिंघल, डॉ. अजय कुमार वर्मा, डॉ. ज्योति बाजपाई, रेजिडेन्ट डॉक्टर्स, विश्व स्वास्थ्य संगठन के परामर्शदाता, व्याट्रिस एवं टीबी एलर्ट के प्रतिनिधि एवं अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन, कार्यक्रम के एजूकेशनल पार्टनर व्याट्रिस के विवेक सिंह ने दिया ।